संसद पर हमले को उच्चतम न्यायालय ने माना था दुस्साहसिक हमला
Advertisement

संसद पर हमले को उच्चतम न्यायालय ने माना था दुस्साहसिक हमला

उच्चतम न्यायालय ने संसद पर 2001 में हुए आतंकी हमला मामले में अफजल गुरु की मौत की सजा बरकरार रखते हुए अगस्त, 2005 में कहा था कि लोकतंत्र के सर्वोच्च स्थान पर यह दुस्साहसिक हमला था।

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने संसद पर 2001 में हुए आतंकी हमला मामले में अफजल गुरु की मौत की सजा बरकरार रखते हुए अगस्त, 2005 में कहा था कि लोकतंत्र के सर्वोच्च स्थान पर यह दुस्साहसिक हमला था।
न्यायमूर्ति पी वी रेड्डी और न्यायमूर्ति पी पी नौलेकर की खंडपीठ ने चार अगस्त, 2005 को अफजल गुरु की अपील खारिज करते हुए कहा था कि सबसे अधिक पाशविक तरीके से आतंकी हमले को अंजाम देने वाले आतंकवादियों के साथ अफजल गुरु की सांठगांठ के बारे में ठोस सबूत हैं।
न्यायालय ने कहा था कि संसद भवन पर हमला करने की आपराधिक साजिश में अफजल गुरु की भूमिका को लेकर जरा भी संदेह नहीं है और सबूतों से पता चलता है कि इस वारदात को अंजाम देने में उसने सक्रिय भूमिका निभाई थी।
न्यायाधीशों ने कहा था,‘सभी सबूत बगैर किसी चूक के मुख्य साजिशकर्ता अफजल गुरु की ओर इशारा करते हैं जिसने सक्रिय भूमिका निभाई थी।’
न्यायाधीशों ने कहा कि किसी भी मापदंड से उसके कृत्य को हानि रहित करार नहीं दिया जा सकता है।
न्यायाधीशों ने कहा था,‘निश्चित ही विस्फोटक पदार्थों के साथ संसद पर हमला करने की साजिश में वह शामिल था। संसद भवन पर हमले की भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में कोई दूसरी मिसाल नहीं है।’
न्यायालय ने अफजल गुरु की मौत की सजा को न्यायोचित ठहराते हुए कहा था कि संसद भवन पर हमला सबसे संगीन अपराध है और यह ‘बिरलों में भी बिरले’ मामले की श्रेणी में आता है।
न्यायालय ने कहा था कि अफजल गुरु को मौत की सजा देने पर ही समाज के सामूहिक अंत:करण को संतुष्टि मिलेगी। न्यायालय ने कहा था कि जिस तरह से उसने राष्ट्र के खिलाफ युद्ध छेड़ने की साजिश की और इस आपराधिक साजिश को अंजाम देने के लिए सहयोग दिया, उसने इसे समाज के लिए खतरा बना दिया।
संसद भवन पर 13 दिसंबर, 2001 को हुए आतंकी हमले के मामले में निचली अदालत ने शौकत, अफजल और जिलानी को मौत की सजा सुनाई थी जबकि अफसान को पांच साल की कैद की सजा दी गयी थी। इस हमले के कारण भारत पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ गया था और सीमा पर दोनों देशों की सेनाओं ने मोर्चेबंदी कर ली थी।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने हत्या, देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने और पोटा कानून के तहत अफजल और शौकत की मौत की सजा बरकरार रखी थी जबकि उसने जिलानी और अफसान को बरी कर दिया था। (एजेंसी)

Trending news