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नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने 15 साल पुराने विशाखा प्रकरण में दी गयी व्यवस्था का दायरा बढ़ाते हुए बार काउन्सिल ऑफ इंडिया और भारतीय चिकित्सा परिषद जैसी सभी नियामक संस्थाओं को शुक्रवार को निर्देश दिया कि कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के मामलों से निबटने के लिए वे अपने यहां समितियां गठित करें।
न्यायमूर्ति आरएम लोढा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने मेधा कोतवाल लेले की याचिका पर अपने फैसले में नियामक संस्थाओं और उनसे संबद्ध सभी संस्थानों को 1997 में विशाखा प्रकरण मे प्रतिपादित दिशा निर्देश दो महीने के भीतर लागू करने का निर्देश दिया है। इस याचिका में विशाखा प्रकरण के दायरे में अन्य संस्थाओं को भी शामिल करने का अनुरोध किया गया था। उच्चतम न्यायालय ने 1997 में सरकारी महकमों और सार्वजनिक उपक्रमों में महिलाओं के यौन उत्पीड़न की घटनाओं से निबटने के लिए दिशा निर्देश तैयार किए थे।
इन दिशा निर्देशों के अनुसार कार्यस्थलों और दूसरे संस्थानों पर यौन उत्पीड़न की घटनाओं की रोकथाम करना और ऐसे विवादों के समाधान तथा कानूनी कार्यवाही के लिए सभी उचित कदम उठाना नियोक्ता या अन्य जिम्मेदार व्यक्तियों का कर्तव्य होगा। दिशानिर्देशों में यह भी कहा गया था कि कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न निषेध करने के नियमों को अधिसूचित करने के साथ ही इनका प्रकाशन और वितरण भी किया जाना चाहिए। इसमें यौन उत्पीड़न करने वालों के खिलाफ दंड का भी प्रावधान होना चाहिए।
इस न्यायिक व्यवस्था के तहत निजी नियोक्ताओं को भी अपने आदेशों में यौन उत्पीड़न निषेध को शामिल करने का निर्देश दिया गया था। दिशा निर्देशों में ऐसे मामलों की जांच के लिए शिकायत समिति गठित करने की सिफारिश की गई थी। ऐसी समितियों का अध्यक्ष किसी महिला को बनाने और समिति में कम से कम आधी संख्या महिला सदस्यों की रखने की भी सिफारिश की गई थी। न्यायिक व्यवस्था में उच्च स्तर से किसी प्रकार के अनावश्यक प्रभाव की संभावना समाप्त करने के इरादे से समिति में तीसरे पक्ष के रूप में किसी गैर सरकारी संगठन या यौन उत्पीड़न के मामलों से परिचित किसी अन्य संस्था को भी इसमें शामिल करने की सिफारिश की गई थी। (एजेंसी)