अब होगी ‘आप’ की अग्निपरीक्षा
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अब होगी ‘आप’ की अग्निपरीक्षा

दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) ने अपने प्रदर्शन से सभी को चौंका दिया है। चुनावी सर्वेक्षणों, मीडिया, राजनीति के जानकारों किसी ने यह उम्मीद नहीं की थी कि वह इस चुनाव में ऐतिहासिक प्रदर्शन करने जा रही है। ‘आप’ पार्टी को कुछ सीटें मिलने की बात तो जरूर कही जा रही थी लेकिन कांग्रेस दहाई का आंकड़ा भी पार नहीं करेगी, यह किसी ने नहीं सोचा था।

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आलोक कुमार राव
दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) ने अपने प्रदर्शन से सभी को चौंका दिया है। चुनावी सर्वेक्षणों, मीडिया, राजनीति के जानकारों किसी ने यह उम्मीद नहीं की थी कि वह इस चुनाव में ऐतिहासिक प्रदर्शन करने जा रही है। ‘आप’ पार्टी को कुछ सीटें मिलने की बात तो जरूर कही जा रही थी लेकिन कांग्रेस दहाई का आंकड़ा भी पार नहीं करेगी, यह किसी ने नहीं सोचा था।
‘आप’ पार्टी को यदि कुछ और समय और अन्ना हजारे का समर्थन मिला होता तो ‘आप’ पार्टी शायद दिल्ली में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर सकती थी। बहरहाल, दिल्ली में खंडित जनादेश मिला है, सरकार कैसे बनेगी, दोबारा चुनाव होगा अथवा राष्ट्रपति शासन लगेगा यह अभी समय के गर्भ में है।
दिल्ली विस चुनावों में मोटे तौर पर माना जा रहा था कि शीला सरकार के खिलाफ एंटी इन्कम्बैंसी फैक्टर काम करेगा और इसका लाभ भाजपा को मिलेगा। चुनाव में ‘आप’ पार्टी न होती तो दिल्ली में भाजपा को साधारण बहुमत आसानी से प्राप्त हो जाता। लेकिन सवाल है कि कांग्रेस के खिलाफ लोगों में जो जनाक्रोश था उसे भाजपा अपने लिए वोटों में क्यों नहीं बदल सकी। कांग्रेस और शीला सरकार के खिलाफ जबर्दस्त आक्रोश का बड़ा हिस्सा ‘आप’ पार्टी के हिस्से में जाना संकेत करता है कि अवसर मिलने पर जनता अन्य विकल्पों पर विचार कर सकती है।
सवाल है कि अन्ना आंदोलन के गर्भ और उसकी ऊर्जा से पैदा हुई ‘आप’ पार्टी ने इतने कम समय में लोगों के बीच अपनी पैठ कैसे बना ली। इसका जवाब ‘आप’ पार्टी में ही खोजा जा सकता है। आप पार्टी पारंपरिक राजनीति से अलग तरह की राजनीति की बात करती है। भारत में राजनीति के जो गढ़े हुए सिद्धांत (वोट बैंक की राजनीति) पर ‘आप’ पार्टी ने सीधा प्रहार किया है। वह ‘पैसे से सत्ता और सत्ते से पैसे’ की राजनीति को खारिज करती है। वह व्यवस्था बदलने, साफ-सुथरी और पारदर्शी राजनीति की बात करती है। उसने वादा किया है कि सत्ता में आने पर उसके नेता अपनी गाड़ियों पर लाल बत्ती नहीं लगाएंगे और भारी-भरकम सुरक्षा नहीं लेंगे।

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‘आप’ पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल भ्रष्टाचार से किसी तरह का समझौता न करने की बात करते हैं। अपने चुनावी खर्चे का ब्यौरा वेबसाइट पर डालना, चुनाव के लिए 20 करोड़ रुपए जुटने के बाद चंदा लेने से मना कर देना, जनहित के मुद्दों-बिजली, पानी को अपने चुनावी एजेंडे में प्रमुखता से जगह देकर ‘आप’ पार्टी ने एक अलग तरह की राजनीति के सपने दिखाए हैं। दिल्ली की जनता ने राजनीति में इस प्रयोग को पंसद किया है और उस पर अपनी मुहर भी लगाई है। जन प्रतिनिधियों और जनता के बीच संवाद की दूरी को ‘आप’ ने पाटने की कोशिश की है। जन सरोकार के मुद्दों पर वह सीधे जनता से जुड़ी और उससे संवाद किया।
दिल्ली देश की राजधानी है। देश भर के लोग यहां रहते हैं। दिल्ली की प्रति व्यक्ति आय देश में सबसे अधिक है। राजनीतिक हलचल का यह केंद्र है। दिल्ली कम मतदान करती है, इस मिथक को तोड़ते हुए इस बार यहां 66 फीसदी रिकॉर्ड वोटिंग हुई है। लोगों में राजनीतिक जागरूकता बढ़ी है। मतदान से ज्यादातर परहेज करने वाला युवा वर्ग एवं उच्च मध्यम वर्ग इस बार मतदान केंद्रों तक गया। व्यवस्था में बदलाव और परिवर्तन की चाहत सबके अंदर हिलोरें मार रही हैं। इस हिलोर और आकांक्षा को निकलने का सही अवसर नहीं मिल पा रहा था। लोगों में व्यवस्था में बदलाव की अगर चाहत नहीं होती तो नई दिल्ली सीट से मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की हार नहीं होती। इस इलाके में सरकारी महकमा रहता है, यानी सरकारी महकमा भी मौजूदा व्यवस्था से खुश नहीं है, वह भी बदलाव चाहता है।
जब व्यवस्था में बदलाव की बात करना अपराध हो और धन-बल विहीन लोगों के लिए राजनीति अछूत घोषित कर दी गई हो तो ऐसे समय में राजनीतिक गलियारे में आम आदमी को मिलने वाली थोड़ी सफलता भविष्य के लिए संभावनाओं के द्वार खोलती है। दिल्ली में इस बार अलग तरह का एक राजनीतिक कंपन हुआ है जिसकी अनुगूंज दूर तक और देर तक सुनाई देगी। साथ ही अब यहां से ‘आप’ पार्टी के लिए चुनौतियों एवं मुश्किलों का दौर शुरू होगा। ‘आप’ पार्टी ने लोगों को जो रोमैंटीसिज्म दिखाया है उसे प्रेग्मैटिज्म (व्यावहारिकता) में तब्दील करना एक बड़ी चुनौती होगी। आने वाले समय में ‘आप’ पार्टी सत्ता और व्यवस्था का हिस्सा होगी। राजनीति की जो बुराइयां हैं, वे उस पर धावा बोलेंगी। ‘आप’ पार्टी को सत्ता और व्यवस्था की विद्रुपताओं से खुद को बचाना होगा क्योंकि सत्ता भ्रष्ट करती है और संपूर्ण सत्ता पूरी तरह से भ्रष्ट करती है।

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