दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल कई महत्वपूर्ण यात्राएं कीं. इनमें अमेरिका की यात्रा भारतीय इतिहास में हमेशा याद की जाएगी क्योंकि मोदी ने 'हाउडी मोदी' नामक एक ऐसा प्रोग्राम किया था जो दोनों देशों के रिश्तों पर अमिट छाप छोड़ गया. इसके अलावा पीएम ने ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भी शिरकत की. मोदी ने संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), बहरीन, फ्रांस, ब्राजील, थाईलैंड, सऊदी अरब, रूस, जापान, भूटान, मालदीव, श्रीलंका, किर्गिस्तान आदि देशों की ऐतिहासिक यात्राएं करके भारत का दुनिया भर में सम्मान बढ़ाया.
अमेरिका का 'हाउडी मोदी' कार्यक्रम
अमेरिका के ह्यूस्टन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वागत में ऐतिहासिक कार्यक्रम हुआ और पूरी दुनिया में उसकी चर्चा हुई क्योंकि अमेरिकी ज़मीन पर किसी विदेशी राजनीतिक के लिए इतने बड़े स्तर पर पहले कभी ऐसा आयोजन नहीं हुआ था. सिर्फ यही नहीं, इस कार्यक्रम के बहाने भारत और अमेरिका के बीच संबंधों की एक नई इबारत लिखी गई. इस कार्यक्रम में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी मौजूद रहे और प्रधानमंत्री मोदी के सम्बोधन को बहुत ध्यान से सुना. इस कार्यक्रम में 50 हजार से भी ज्यादा लोग मोदी को सुनने पहुंचे थे. ऐसा ऐतिहासिक कार्यक्रम अमेरिका के इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ था.
BRICS सम्मेलन में हुए शामिल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्राजील (Brazil) में 11वें ब्रिक्स सम्मेलन में भाग लिया और बिजनेस फोरम को संबोधित किया. उन्होंने इस दौरान अपने संबोधन में कहा कि, ब्रिक्स राष्ट्र, दुनिया के आर्थिक विकास में 50 फीसदी का योगदान करते हैं. वैश्विक मंदी के बावजूद ब्रिक्स राष्ट्रों ने आर्थिक विकास में योगदान दिया है और करोड़ों लोगों को गरीबी से बाहर निकाला है. इस दौरान चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भी मोदी को 2020 में चीन में होने वाले तीसरे अनौपचारिक शिखर सम्मेलन के लिए आमंत्रित किया.
SCO समिट के लिये बिश्केक गये थे मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शंघाई कॉरपोरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO) में होने वाले शिखर सम्मेलन में बिश्केक गये थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मेादी इस सम्मेलन से अलग किर्गिस्तान के राष्ट्रपति सूरोनबे जीनबेकोव और ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी से भी मुलाकात कर कई अहम मुद्दों पर चर्चा की थी. इस यात्रा की रोचक बात ये है कि इस यात्रा के लिये पाकिस्तान को अपने हवाई मार्ग मोदी के लिये खोलना पड़ा था. एयरस्ट्राइक के बाद पाकिस्तान ने भारत के लिये अपना हवाई मार्ग बंद कर दिया था. भारत की अतंर्राष्ट्रीय छवि के आगे पाकिस्तान मजबूर हो गया था.
मोदी की रूस यात्रा
रूस भारत का पुराना मित्र रहा है और वैश्विक पटल पर हमेशा रूस ने भारत का समर्थन किया है फिर चाहे वह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद हो या अन्य उभरते हुए अंतरराष्ट्रीय संगठन हों. इस साल पीएम मोदी ने रूस जाकर लहा भी भारत का परचम लहराया. मौजूदा दौर में जिस तरह का अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य बना हुआ है, उसमें कोई भी बड़ा देश किसी एक देश के साथ ही बहुत ज़्यादा करीबी संबंध या ख़ास रिश्ते नहीं रखता है. इसके बावजूद रूस ने भारत को अपने घनिष्ट मित्र देश के रूप में गले लगाया. मोदी ने सितंबर में रूस के व्लादिवोस्तोक में 5वें ईस्टर्न इकोनॉमिक फोरम में हिस्सा लिया था और लोगों को संबोधित भी किया था. रूस ने पीएम मोदी को अपने सर्वोच्च सम्मान ऑर्डर ऑफ सेंट ऐंड्रू से सम्मानित किया.
सऊदी अरब में भी रचा इतिहास
इस साल अक्टूबर में पीएम मोदी ने सउदी अरब का दौरा किया था. जम्मू कश्मीर से धारा 370 समाप्त करने के बाद सउदी अरब ने पाकिस्तान के बजाय भारत का साथ दिया था. मुस्लिम देश होने के बावजूद सऊदी अरब ने पीएम मोदी को अपने सर्वोच्च सम्मान ऑर्डर ऑफ जायेद से नवाजा जिसे मोदी भारत की जनता को समर्पित किया था और कहा था कि मेरा नहीं हिंदुस्तान की जनता का सम्मान है.
जी-20 शिखर सम्मेलन में मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी G-20 समिट में हिस्सा लेने के लिए जापान गये थे. इनमें पीएम मोदी की फ्रांस, जापान, इंडोनेशिया, अमेरिका और तुर्की के साथ वार्ता हुई थी. इस दौरान रूस, भारत और चीन के बीच भी आपसी बैठक 28 जून को हुई थी जिसमें पुतिन भी शामिल हुए थे. इस शिखर सम्मेलन में पूरी तरह भारत का दबदबा दिखा और भारत के कई प्रस्तावों पर दुनिया शीर्ष देशों ने मुहर लगाई.
पीएम मोदी ने थाईलैंड यात्रा में लिया ऐतिहासिक फैसला
गत चार नवम्बर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने थाईलैंड के बैंकाक में आयोजित आसियान देशों के समम्मेलन में हिस्सा लिया. नरेंद्र मोदी के बारे में कहा जाता है कि मोदी है तो मुमकिन है. इस बात को प्रधानमंत्री मोदी अपने क्रिया कलापों से अक्सर चरितार्थ भी करते रहते हैं. मोदी ने एक बार फिर अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय देकर देश की जनता का दिल जीतते हुए RCEP (क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी व्यापार समझौते) में शामिल होने से इनकार कर दिया था. आरसीईपी में शामिल देश 2012 से भारत को इस समझौते में शामिल होने का दबाव डाल रहे थे.
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