नई दिल्लीः अक्षय तृतीया, यानी वह तिथि जो कभी नष्ट न होने वाले भंडार का आशीर्वाद देती है. सनातन परंपरा में प्रत्येक तिथि का अपना अलग महत्व है, लेकिन अक्षय तृतीया इनमें भी विशिष्ट स्थान रखती है. श्रीहरि को प्रिय होने के कारण यह विष्णु प्रिया लक्ष्मी को भी प्रिय है, इसलिए इस दिन वह भी धन-धान्य से परिपूर्ण होने का वरदान देती हैं. अक्षय तृतीया केवल भौतिक वस्तुओं के अक्षय वरदान का दिन नहीं है, बल्कि ज्ञान-सिद्धि के भी अक्षय और अक्षुण्ण होने का भी दिन है. यह तिथि कल यानी 26 अप्रैल को है. इस दिन सोना खरीदने का भी चलन है.
महाभारत कथा से जुड़े हैं तार
अक्षय तृतीया का पौराणिक इतिहास महाभारत काल में मिलता है. जब पाण्डवों को 13 वर्ष का वनवास हुआ था तो एक दुर्वासा ऋषि उनकी कुटिया में पधारे थे. द्रौपदी को उसके सतीत्व के कारण भगवान सूर्य ने प्रसन्न होकर एक अक्षय पात्र दिया था. जब तक द्रौपदी न खा ले तब तक उस पात्र से अन्न प्राप्त होता ही रहता था. इसलिए प्रतिदिन दान-व्रत करने के बाद और पांचों पांडवों के खा लेने के बाद ही द्रौपदी भोजन ग्रहण करती थी. एक दिन दुर्योधन ने षड्यंत्र के तहत ऋषि दुर्वासा को वन में पांडवों का सत्कार ग्रहण करने भेजा.
श्रीकृष्ण ने लगाया अक्षय भोग
दोपहर का समय था द्रौपदी प्रतिदिन की तरह आज भी दान-व्रत संपन्न कर पांचों पांडवों को खिला चुकी थी और खुद भी भोजन ग्रहण कर चुकी थी. इधर तब तक ऋषि दुर्वासा अपने एक हजार शिष्यों के साथ वन में पहुंच गए. उन्होंने एक शिष्य के जरिए सूचना भिजवाई कि वह पांचों पांडवों को दर्शन देंगे और भोजन भी करेंगे.
यह सुनकर पांडव द्रौपदी चिंता में पड़ गए. फिर द्रौपदी ने गोविंद को याद किया.तब तक कृष्ण आए और भूख लगी है, कहकर भोजन कराने को कहने लगे. द्रौपदी ने वही अक्षय पात्र आगे कर दिया और कहा कि आज अक्षय तृतीया है. इसमें चावल का एक दाना है. यही मैं आपको समर्पित करती हूं. श्रीकृष्ण ने वही एक दाना खाया और जोर की डकार ली. उसके बाद तो सारी सृष्टि की भूख मिट गई.
श्रीहरि की पूजा का विशेष महत्व
देवर्षि नारद ने इस दिन की व्याख्या और महत्व बताते हुए कहा था कि आज के दिन धरती पर जो भी श्रीहरि विष्णु की विधि विधान से पूजा अर्चना करेगा. उनको चने का सत्तू, गुड़, मौसमी फल, वस्त्र, जल से भरा घड़ा तथा दक्षिणा के साथ श्री हरी विष्णु के निमित्त दान करेगा, उसके घर का भण्डार सदैव भरा रहेगा. उसके धन-धान्य का क्षय नहीं होगा, उसमें अक्षय वृद्धि होगी. यह दिन भगवान विष्णु के छठवें अवतार भगवान परशुराम का जन्मदिवस भी है.
मांगलिक कार्यों के लिए विशेष फलदायी
सनातन परंपरा में अक्षय तृतीया तिथि का मांगलिक कार्यों के लिए विशेष महत्व है. इस तिथि को विवाह करना अच्छा माना जाता है. अक्षय तृतीया के दिन स्वर्ण आभूषण की खरीद करना शुभ माना जाता है, इससे धन संपत्ति में अक्षय वृद्धि होती है. दरअसल इस दिन अबूझ मुहूर्त भी होता है.
कहते हैं कि इस दिन बिना मुहूर्त के बहुत से अच्छे-शुभ कार्य किए जाते हैं. इस दिन शुभ फल और सौभाग्य का कभी क्षय नहीं होता है. लोग अपने शुभ कार्यों को इस दिन ही करने के लिए रोककर रहते हैं. और यज्ञ, तर्पण ,या कोई मंगल कार्य इसी दिन करते हैं. इस दिन किसी भी किए कार्य में सफलता मिलती है.ॉ
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कल 26 अप्रैल को है अक्षय तृतीया
हिन्दू पंचांग के अनुसार बैसाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को अक्षय तृतीया मनाई जाती है. ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार इस दिन को आखा तीज मनाया जाता है और यह हर साल के अप्रैल महीने में आता है. इस साल 2020 में अक्षय तृतीया 26 अप्रैल रविवार को है.
तृतीया तिथि आज शनिवार दोपहर से ही लग रही है, लेकिन उदया तिथि में रविवार को होने के कारण तिथि योग रविवार को ही मान्य है. इसलिए व्रत-पूजन विधान रविवार को ही किए जाएंगे.
अक्षय तृतीया की कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक गांव में धर्मदास नाम का व्यक्ति अपने परिवार के साथ रहता था. वह बहुत गरीब था. एक बार उसने अक्षय तृतीया का व्रत करने की सोची. स्नान करने के बाद उसने भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की. इसके बाद उसने सामर्थ्य के अनुसार जौ, सत्तू, चावल, नमक, गेहूं, एक ब्राह्मण को अर्पित कर दिए. यह सब देखकर उसकी पत्नी ने उसे रोकने की कोशिश की. लेकिन धर्मदास विचलित नहीं हुए. इसके बाद उसने हर साल अक्षय तृतीया का व्रत किया और अपनी सामर्थ्य के अनुसार ब्राहम्ण को दान भी दिया. बुढ़ापे और दुख-बीमारी में भी उसने यही किया.
अगले जन्म में दानी राजा बना ब्राह्मण
इस जन्म के पुण्य प्रभाव से धर्मदास ने अगले जन्म में राजा कुशावती के रूप में जन्म लिया. उनके राज्य में सभी प्रकार का सुख-वैभव और धन-संपदा थी. अक्षय तृतीया के प्रभाव से राजा को यश की प्राप्ति हुई, लेकिन उन्होंने कभी लालच नहीं किया. राजा पुण्य के कामों में लगे रहे और उन्हें हमेशा अक्षय तृतीया का फल मिलता रहा.
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