नींव के ईंटेः कोठारी बंधुओं का अक्स धर्म मंदिर की धर्म ध्वजा बनकर लहराएगा

मंदिर निर्माण में नींव की जो ईंट आधार बनीं वह आज के बाद नहीं दिखेंगीं. संघर्ष की इस मंजिल में भी ऐसी ही कई नींव की ईंटें हैं जो सबसे गहराई में जाकर समाईं तब उस पर आज का विजय स्तंभ खड़ा हुआ. जी हिंदुस्तान ऐसी ही शख्सियतों की कहानी नींव की ईंटे श्रृंखला में प्रस्तुत कर रहा है. पढ़िए कोठारी बंधुओं के बलिदान की कहानी

Written by - Vikas Porwal | Last Updated : Aug 5, 2020, 05:43 PM IST
    • 200 किमी की पैदल यात्रा करके अयोध्या पहुंचे थे कोठारी बंधु
    • रामकुमार कोठारी और शरद कोठारी के बलिदान के कभी भुलाया नहीं जा सकेगा
नींव के ईंटेः कोठारी बंधुओं का अक्स धर्म मंदिर की धर्म ध्वजा बनकर लहराएगा

अयोध्याः 5 अगस्त का ऐतिहासिक दिन, जब भूमि पूजन और नींव में शिला रखने के साथ 500 सालों का संघर्ष विजय मुस्कान में तब्दील हो गया. प्रधानमंत्री मोदी ने वैदिक रीति से मंत्र ध्वनियों के बीच 9 शिलाओं का पूजन किया. इस दौरान लोगों के हाथ श्रद्धा से जुड़े थे और सिर विनम्रता से झुके थे. 

कोठारी बंधुओं का आभार
श्रीराम चरणों का ध्यान करने वाली इन कई जोड़ी आंखों के बीच दो आंखें ऐसी भी थीं जो सजल थीं, रह-रहकर छलक आती थीं और उनमें घूम जाती थी वर्षों पुरानी वह चिट्ठी जिसमें लिखा था हम जल्द ही लौट आएंगे. 

ऐसा लिखने वाले कभी लौट तो नहीं सके लेकिन उनकी आंखों में बसा सपना आज पूरा हो रहा था, जिसकी साक्षी यह सजल आंखें बन रही थीं. यह आंखें थी कोठारी बंधुओं की बहन की आंखें. अयोध्या भूमि पूजन में जिन्हें आभार स्वरूप निमंत्रण मिला था. 

बच्चा-बच्चा राम का
इन आंखों में झांकें तो खुलता अतीत का वह झरोखा, जिसमें नजर आ रही एक गुम्बद दो जोशीले युवा खड़े हैं. उन्होंने वहां भगवा फहराया दिया. लेकिन बाद में प्रशासन की ओर से हुई गोलीबारी में वीरगति को प्राप्त हो गए. फिजा में तब नारे गूंज रहे थे,

बच्चा-बच्चा राम का, जन्मभूमि के काम का. राम और शरद कोठारी अपनी जान देकर इन नारों को अर्थ दे गए थे.  

बैतूल में की पढ़ाई
कोलकाता की वीरभूमि ने पहले भी कई रणबांकुरों को जन्म दिया है. आजादी के बाद इसी धरा पर जन्मे राम और शरद कोठारी. पिता हीरालाल कोठारी और मां सुमित्रा देवी की यह दोनों संतान साल भर के बड़े छोटे थे. इसलिए दोनों में मित्रता का भाव अधिक था,

लिहाजा वे अक्सर साथ ही रहते थे. कुछ बड़े हुए तो शिक्षा-दीक्षा के लिए उन्हें बैतुल (मध्य प्रदेश) के भारत भारती आवासीय विद्यालय में भेजा गया. यहां से दोनों ने 5वीं तक की पढ़ाई की. 

दोनों भाई संघ में हुए शामिल
इन्हीं दिनों दोनों भाइयों का संघ से जुड़ाव हो चुका था. कोलकाता वापस पहुंचकर वह पूरी तरह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़ गए. जैसे-जैसे उम्र बढ़ती गई, राष्ट्रभक्ति, संस्कृति के प्रति प्रेम आकार लेता गया. दोनों भाइयों ने संघ की शाखा का द्वितीय वर्ष का प्रशिक्षण भी प्राप्त कर लिया. समय बढ़ रहा था और 1990 की दहलीज पर पहुंच चुका था. 

बहन की शादी होने वाली थी
देशभर में मंदिर निर्माण की लहर तेजी से उठने लगी थी और फैलने भी लगी थी. जब 1990 में अयोध्या का राम मंदिर आंदोलन हुआ तो राम और शरद ने भी विहिप के कारसेवकों की ही तरह अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण कारसेवा में शामिल होने का फैसला किया. 

कोठारी परिवार में इस दौरान बहन की शादी की तैयारियां चल रही थीं. दिसंबर 1990 में उनकी बहन की शादी होने वाली थी. लेकिन कोठारी भाइयों ने लौट आने का वादा करते हुए अयोध्या की राह ली.

सरकार की घोषणा नहीं आई काम
उस दौरान उत्तर प्रदेश में सपा सरकार थी. मुलायम सिंह यादव सीएम थे और उनकी घोषणा थी कि मस्जिद को कोई नुकसान नहीं होना चाहिए. उनके निर्देश पर तब के फैजाबाद और लखनऊ में कारसेवकों को रोकने के लिए सीमाएं सील की गई थीं,

साथ ही कई प्रयास किए गए थे. बनारस, मऊ, आजमगढ़, इलाहाबाद में भी कारसेवकों को रोकने के लिए आदेश थे. 

पैदल ही की 200 किमी की यात्रा
जगह-जगह रोके जाने के बाद कोठारी बंधुओं ने काशी से पैदल यात्रा करने का निर्णय लिया.  दोनों भाई अपने एक और साथी के साथ 200 किलोमीटर की पदयात्रा करके बनारस से 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुंचे. इसके 3 दिन बाद कार्तिक पूर्णिमा के दिन हनुमानगढ़ी के पास इकट्ठा उत्साही कारसेवकों में राम और शरद कोठारी भी शामिल थे. 

ध्वजा फहराकर मचाई सनसनी
30 अक्टूबर तक अयोध्या में लाखों कारसेवक इकट्ठा हो चुके थे. इसी बीच बंगाल के इन दो युवकों ने बाबरी मस्जिद के गुंबद पर भगवा लहरा दिया और कारसेवकों में सनसनी मचा दी. इससे कारसेवकों में और उत्साह आ गया.

इसके बाद प्रशासन अपनी कार्रवाई करने लगा. खोज-खोजकर कारसेवक गिरफ्तार किए जाने लगे और गोलीबारी होने लगी. इसी गोलीबारी में दोनों बंधुओं को अपनी जान गंवानी पड़ी. 

अंतिम संस्कार में रोया देश
दिसंबर में बहन की शादी थी, लेकिन कोठारी बंधु तो अब दूसरे संसार की यात्रा पर जा चुके थे. बहन के लिए वे हर रोज चिट्ठी लिखते थे. ऐसी ही एक चिट्ठी में उन्होंने जल्द लौट आने का वादा किया था. एक महीने बाद वह चिट्ठी उनके घर पहुंची थी.  4 नवंबर 1990 को जब  दोनों भाईयों का अंतिम संस्करा सरयू तट पर हुआ तब पूरे राष्ट्र की आंखें नम थीं. 

भूमि पूजन में शामिल उनकी बहन अपनी नम आंखों में उसी दिन का ताप महसूस कर रही थीं. राम मंदिर निर्माण के बाद जब इसके शिखर पर धर्मध्वजा फहराई जाएगी तो उसकी लहर में कोठारी बंधुओं का अक्स हमेशा नजर आएगा. उन्हें नमन. 

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