नई दिल्लीः वाराणसी के राजा जगदीश चौधरी का मंगलवार को निधन हो गया. वह लंबे समय से जांघ में घाव की समस्या से पीड़ित थे. उनके निधन पर जहां वाराणसी में अपनी संस्कृति के वाहक के जाने का दुख है, वहीं पीएम नरेंद्र मोदी ने भी उनके निधन पर शोक प्रकट किया है. यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी शोक जताया है.
सनातन संस्कृति में यह है महत्व
वाराणसी में हरिश्चंद्र घाट और मणिकर्णिका घाट अंतिम संस्कार के लिए जाने जाते हैं. राजा जगदीश चौधरी जिस समुदाय से आते हैं वह वाराणसी में हिदुओं का अंतिम संस्कार करवाने का काम करते हैं.इन दोनों ही घाटों पर राजा जगदीश चौधरी का परिवार ही अग्नि देने का कार्य करता है. यह परंपरा पीढ़ियों से जारी है और सनातन संस्कृति का हिस्सा है. अगर इनका परिवार अग्नि न दे तो अंतिम संस्कार नहीं हो सकता है.
पुराणों ंमें भी है जिक्र, राजा हरिश्चंद्र से भी जुड़ा इतिहास
सनातन परंपरा में राजा हरिश्चंद्र आज भी धर्म और सत्य के पर्याय हैं. चक्रवर्ती राजा का जीवन जी रहे हरिश्चंद्र के काल में समय ऐसा मोड़ लेता है कि उन्हें श्मशान पर कर वसूलने का काम करना पड़ता है. पौराणिक आख्यानों के मुताबिक, ऋषि विश्वामित्र ने उनके सत्य और धर्म की परीक्षा ली थी.
एक रात सपने में उन्होंने ऋषि विश्वामित्र को दान में अपना सारा राजपाट दे दिया. अगली सुबह ऋषि उनके द्वार पर दक्षिणा लेने पहुंचे. जैसे ही राजा ने अपने कोष से दक्षिणा देनी चाही, ऋषि ने उन्हें स्वप्न .याद दिलाया.
स्वप्न में दिया था दान
स्वप्न याद आते है राजन, सिंहासन से उतर गए और अपनी पत्नी तारा (जिन्हें शैव्या भी कहते हैं) और पुत्र रोहित को लेकर नगर के बाजार में पहुंचे. वहां अपनी पत्नी और पुत्र को एक सेठ की दासी बनने के लिए बेच दिया और राजा ने खुद को एक डोम के हाथ बेचकर ऋषि विश्वामित्र को दक्षिणा दी.
एक दिन रोहित सेठानी के लिए पूजा के फूल चुनने गए तो एक विषधर सर्प ने उसे डंस लिया. इससे रोहित की ंमृत्यु हो गई. बेचारी महारानी से दासी बनी तारा अपने पुत्र का शव लिए अंतिम संस्कार करने उसी घाट पर पहुंची जहां हरिश्चंद्र बिकने के बाद सेवा दे रहे थे.
अपने पुत्र के अंतिम संस्कार के लिए मांग लिया कर
तारा ने पुत्र के अंतिम संस्कार के लिए अग्नि की मांग की. राजन से श्मशान रक्षक बने हरिश्चंद्र ने पत्नी और पुत्र को पहचान तो लिया, लेकिन शोक करने के बजाय अपने धर्म पर अड़े रहे. उन्होंने अंतिम संस्कार से पहले कर की मांग की और इस पर डिगे रहे.
रानी तारा के पास कुछ था तो नहीं, लेकिन उनके हाथ में एक कड़ा जरूर पड़ा था. वह उसे ही उतारकर देने लगी. राजा ने जैसे ही उसे लिया, तुरंत ही आकाश से पुष्प वर्षा होने लगी, और देवराज इंद्र, ऋषि विश्वकर्मा और खुद महादेव शिव प्रगट हो गए.
महादेव-पार्वती से भी जुड़ा है पौराणिक इतिहास
हिन्दू पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान शिव और पार्वती एक बार वाराणसी आए. पार्वती मणिकर्णिका घाट के पास स्नान करने लगीं. उनका एक कुंडल गिर गया जिसे कालू नाम के एक राजा ने अपने पास छिपा लिया.
कई लोग कालू को राजा की जगह एक ब्राह्मण बताते हैं. शिव और पार्वती को तलाश करने पर यह कुंडल नहीं मिला तो शिव ने गुस्से में आकर कुंडल को अपने पास रखने वाले को नष्ट हो जाने का श्राप दे दिया.
महादेव ने दिया है अंतिम संस्कार कराने का अधिकार
इस श्राप के बाद कालू ने आकर शिव से क्षमा याचना की. शिव ने नष्ट होने के श्राप को वापस लेकर उसे श्मशान का राजा बना दिया. उसे श्मशान में आने वाले लोगों की मुक्ति का काम करवाने और इसके लिए उनसे धन लेने का काम दिया गया.
कालू के वंश का नाम डोम पड़ गया. डोम में हिन्दू मान्यताओं के पवित्र शब्द ओम की ध्वनि होती है.
पीएम मोदी ने किया ट्वीट
प्रधानमंत्री मोदी ने मंगलवार को ट्वीट करते हुए कहा कि 'वाराणसी के राजा जगदीश चौधरी जी के निधन से अत्यंत दुख पहुंचा है. वे काशी की संस्कृति में रचे-बसे थे और वहां की सनातन परंपरा के संवाहक रहे. उन्होंने जीवनपर्यंत सामाजिक समरसता के लिए काम किया. ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे और परिजन को इस पीड़ा को सहने की शक्ति दे.
Prime Minister Narendra Modi expresses grief over the demise of erstwhile 'Dom Raja' of Varanasi Jagdish Chaudhary. pic.twitter.com/bqnxygT3G2
— ANI (@ANI) August 25, 2020
2019 चुनाव में बने थे प्रस्तावक
राजा जगदीश चौधरी 2019 लोकसभा चुनाव में चर्चा में आए थे. इस दौरान चुनाव में जगदीश चौधरी पीएम नरेंद्र मोदी के प्रस्तावक भी बने थे. यह भी अपने आप में पहली बार बना इतिहास था जब किसी राजनीतिक दल ने डोम राजा परिवार के सदस्य को चुनाव में प्रस्तावक बनाया था.
तब जगदीश चौधरी ने इस पर खुशी जाहिर की थी. प्रस्तावक बनाए जाने के फैसले पर उन्होंने कहा था, ‘पहली बार किसी राजनीतिक दल ने हमें यह पहचान दी है और वह भी खुद प्रधानमंत्री ने. हम बरसों से लानत झेलते आए हैं. हालात पहले से सुधरे जरूर हैं, लेकिन समाज में हमें पहचान नहीं मिली है और प्रधानमंत्री चाहेंगे तो हमारी दशा जरूर बेहतर होगी.’
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