Knowledge News: कीबोर्ड पर क्यों इधर-उधर लगे हैं A to Z के बटन? जानें इसके पीछे की असली वजह
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Knowledge News: कीबोर्ड पर क्यों इधर-उधर लगे हैं A to Z के बटन? जानें इसके पीछे की असली वजह

Knowledge News: अक्सर हम उन चीजों से बेहद अनजान होते हैं, जोकि बेहद कॉमन या फिर हमारे आस-पास होती हैं. चलिए हम आपको नॉलेज की इस खबर में बताते हैं बेहद ही रोचक बातें.

Knowledge News: कीबोर्ड पर क्यों इधर-उधर लगे हैं A to Z के बटन? जानें इसके पीछे की असली वजह

बचपन में जब नया-नया कंप्यूटर चलाना सीखा था, तो कीबोर्ड पर अक्षर ढूंढने में कुछ सेकंड लग जाते थे. ढूंढते-ढूंढते 10 वर्ड टाइप करने में हम बहुत समय गवां देते थे. तब सबने जरूर सोचा होगा कि कीबोर्ड बनाने वाला कितना नासमझ था. अगर उसने ये अल्फाबेट्स इधर-उधर लिखने के बजाय लाइन से ABCD... में लिखे होते तो टाइपिंग करना कितना आसान हो जाता! लेकिन बड़े होकर, जब बिना कीबोर्ड की तरफ देखे धड़ाधड़ टाइपिंग शुरू की, तब समझ आया कि कीबोर्ड के अक्षरों का उलटफेर कोई भूल नहीं, बल्कि कई सालों की सोच-समझ का नतीजा है, जिसकी वजह से आज हमारे लिए टाइपिंग मिनटों का खेल हो गई है.

  1. कीबोर्ड का कुछ ऐसा था अजीबोगरीब इतिहास
  2. QWERTY मॉडल ही सबसे ज्यादा पसंद आया
  3. कीबोर्ड के लिए आखिर इस फर्मेट को क्यों चुना?

कीबोर्ड का कुछ ऐसा था अजीबोगरीब इतिहास

दरअसल कीबोर्ड का इतिहास टाइपराइटर से जुड़ा है. यानी कंप्यूटर या कीबोर्ड आने से पहले ही QWERTY Format चला आ रहा है. साल 1868 में Christopher Latham Sholes, जिन्होंने टाइपराइटर का इन्वेंशन किया था, उन्होंने पहले ABCDE... फॉर्मेट पर ही कीबोर्ड बनाया. लेकिन उन्होंने यह पाया कि जितनी स्पीड और सुविधाजनक टाइपिंग की उन्होंने उम्मीद की थी, वह नहीं हो पा रहा है. इसके साथ ही Keys को लेकर कई और दिक्कतें भी सामने आ रही थीं.

कीबोर्ड के लिए आखिर इस फर्मेट को क्यों चुना?

ABCD वाले कीबोर्ड की वजह से टाइपराइटर पर लिखना मुश्किल हो रहा था. मुख्य कारण तो यह था कि उसके बटन एक दूसरे के इतने करीब थे कि मुश्किल से टाइपिंग होती थी. इसके अलावा, अंग्रेजी में कुछ अक्षर ऐसे हैं, जिनका इस्तेमाल ज्यादा किया जाता है (जैसे E,I,S,M) और कुछ शब्दों की बहुत कम ही जरूरत पड़ती है (जैसे Z, X, आदि). ऐसे में, ज्यादा इस्तेमाल में आने वाले अक्षरों के लिए उंगली को पूरे कीबोर्ड पर घुमाना पड़ता था और टाइपिंग स्लो हो जाती थी. इसलिए कई नाकाम एक्सपेरिमेंट्स के बाद 1870 के दशक में आया QWERTY Format. जिसने जरूरी अक्षरों को उंगलियों की रीच में रख दिया.

QWERTY मॉडल ही सबसे ज्यादा पसंद आया

इन एक्सपेरिमेंट्स के बीच एक और फॉर्मेट आया था- Dvorak Model. यह मॉडल अपनी Keys से फेमस नहीं हुआ था, बल्कि इसके इन्वेंटर August Dvorak के नाम पर पड़ा था. हालांकि, यह कीबोर्ड बहुत दिन तक चर्चा में नहीं रहा. क्योंकि यह अल्फाबेटिकल तो नहीं था लेकिन आसान भी नहीं था. लोगों को QWERTY मॉडल ही सबसे ज्यादा पसंद आया इसलिए यही प्रचलित हुआ.

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