Jagan Nath Azad: क्या आप जानते हैं मोहम्मद अली जिन्ना ने एक हिंदू कवि से पाकिस्तान का कौमी तराना क्यों लिखवाया था. उनका नाम था जगन्नाथ आजाद और वजह बेहद दिलचस्प है. जिन्ना खुद को जवाहरलाल नेहरू की तरह सेक्युलर दिखाना चाहते थे.
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भारत में आज की पीढ़ी शायद यह जानकर हैरान रह जाए लेकिन यह सच है. धर्म के आधार पर जिस पाकिस्तान का जन्म हुआ, उसका पहला राष्ट्रगान किसी मुस्लिम ने नहीं बल्कि एक हिंदू ने लिखा था. उनका नाम था जगन्नाथ आजाद. वह मशहूर कवि और शायर तब लाहौर में रहा करते थे. बंटवारे की खबर चारों तरफ फैल चुकी थी. 1947 का अगस्त का महीना शुरू भी हो चुका था. मोहम्मद अली जिन्ना मुसलमानों के लिए अलग राष्ट्र बनाने वाले थे. ऐसे उन्हें कौम के लिए एक कौमी तराने की जरूरत महसूस हुई.
'मुस्लिम देश' का कौमी तराना हिंदू से क्यों?
मुस्लिम हितैषी बातें करने वाले जिन्ना ने तब अपनी इमेज चमकाने के लिए अलग रणनीति अपनाई. खुद को धर्म निरपेक्ष दिखाने के लिए उन्होंने हिंदू शायर की तलाश शुरू कराई जो पाकिस्तान का कौमी तराना लिख सके. हालांकि उनके इस फरमान से मुस्लिम समाज में एक नफरत सी फैल गई. कई वरिष्ठ लोगों ने ऐतराज भी जताया पर जिन्ना ने 24 घंटे में पाकिस्तान के उम्दा हिंदू शायर को तलाशने का हुक्म दे दिया.
पाकिस्तान की सियासत में ऊंचे रसूख वाले लोग इस बात से नाराज हो गए कि एक हिंदू हमारा राष्ट्रगान कैसे लिख सकता है. फिर भी लाहौर के काबिल हिंदू कवि जगन्नाथ आजाद को ढूंढा गया. उर्दू में उनके सामने मुस्लिम विद्वान भी नहीं टिकते थे. उस समय उन्होंने ठान रखा था कि बंटवारे के बाद भी वह लाहौर में ही रहेंगे. आगे सुनिए जगन्नाथ आजाद द्वारा लिखित पाकिस्तान का पहला राष्ट्रगान.
जिन्ना ने पाकिस्तान को सेक्युलर राष्ट्र बनाने का सोचा था और इसीलिए खुद को नेहरू के बराबर में खड़ा करना चाहते थे. वह जगन्नाथ आजाद से मिले और कहा कि पांच दिन के अंदर आप नए मुल्क के लिए तराना लिखें. पाकिस्तान रेडियो ने इसे कंपोज किया और जिन्ना सुने तो उछल पड़े. आखिरकार 14 अगस्त की आधी रात रेडियो लाहौर से यही प्रसारित हुआ. यह करीब डेढ़ साल तक चला. बाद में मुस्लिम नेताओं के दबाव में जिन्ना की मौत के बाद राष्ट्रगान बदल दिया गया.
उन्होंने सोचा था कि मैंने तराना लिखा है तो मेरे लिए पाकिस्तान में सब ठीक ही होगा लेकिन वहां रामनगर में कोई नहीं बचा. सभी हिंदुओं को मार दिया. आखिरकार दोस्तों के कहने पर जगन्नाथ आजाद को लाहौर छोड़ना पड़ा. बाद में वह दिल्ली आकर शरणार्थी शिविर में रहे. आगे चलकर सूचना प्रसारण मंत्रालय की उर्दू पत्रिकाओं के लिए काम किया.