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नई दिल्ली: शाहजहां (Shahjahan) और मुमताज (Mumtaz) की प्रेम की कहानी (Love Story) तो लगभग सभी जानते हैं. जब भी प्रेम की बात आती है शाहजहां और मुमताज की मिसाल दी जाती है. खूबसूरती की मल्लिका मुमताज मौत के बाद भी रहस्यों से साये में लिपटी रही. ऐसा ही एक रहस्य मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) के बुरहानपुर (Burhanpur) में मुमताज का शाही हमाम (Shahi Hammam) था, जिसे शाहजहां ने अपनी बेगम के लिए बड़े दिल से बनवाया था. ताप्ती नदी (Tapti River) के किनारे बने इस शाही हमाम के बारे में कहा जाता है कि यहां आज भी मुमताज की रूह बसती है.
शाहजहां ने लगभग 5 सालों तक बुरहानपुर के गर्वनर के रूपमें काम किया था. इस दौरान उन्होंने यहां कई निर्माण कार्य भी करवाए. दीवान-ए-आम (Deewan- E- Aam) और दीवान-ए-खास (Deewan- E- Khas) के अलावा उन्होंने अपनी प्रिय बेगम मुमताज के लिए यहां नदी के किनारे एक आलीशान और खूबसूरत शाही हमाम (Royal Bath) बनवाया था. गौरतलब है कि राजसी समय में स्नान केवल एक दिनचर्या नहीं बल्कि ये मनोरंजन से लेकर सौंदर्य निखार और प्रेम का भी विकल्प था.
शाहजहां के दौर में वास्तुकला और शिल्पकारी अपने चरम पर थी. शाहजहां ने भारत में एक से बढ़कर एक वास्तु का उदाहरण पेश किया है. हमाम बनवाते हुए भी वास्तुविदों ने शाहजहां और उनकी बेगम के लिए इसे सबसे खास बनाने की कोशिश की. शाहजहां कला प्रिय इंसान था .
ये हमाम दो हिस्सों में बंटा है. पहले हिस्से में एक संगमरमर का हौज है जहां फव्वारा लगा हुआ है. कहते हैं कि इस फव्वारे से इत्र का पानी निकलता था. इसके आसपास शाहजहां और मुमताज घंटों प्रेम के पल बिताया करते थे. हौज में मौसम के मुताबिक ठंडे और गर्म पानी से नहाने का इंतजाम किया गया था. पानी गर्म रह सके, इसके लिए हौज के आसपास विशालकाय भट्टियां थीं, जिसमें हर वक्त आग जलती रहती थी. यहीं बड़े कड़ाहों में पानी गर्म करके हौज में डाला जाता था और फिर ठंडा पानी मिलाया जाता था.
इस शाही हमाम के रख- रखाव के लिए महल में कई कर्मचारी हुआ करते थे. हौज के आसपास महिला सेविकाओं की फौज के अलावा हमाम में किन्नर सेवक भी रखे जाते थे ताकि किसी महिला कर्मचारी या मलिका को किसी किस्म का खतरा न रहे. साथ ही यहां के भारी कामों के लिए भी किन्नरों को रखा जाता था.
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शाही हमाम का दूसरा हिस्सा बेहद खास था. यहां तीन हौजें थीं, जिनमें इत्र से भरा पानी होता था. इन इत्रों में प्राकृतिक खुशबू होती थी, जैसे गुलाब, केवड़ा और खस का पानी. इसके पानी को सुंगधित बनाने के लिए ताजा फूलों की पंखुड़ियां चुन-चुनकर डाली जाती थीं. हमाम में कई खूबसूरत और आकर्षक चित्र भी लगाए गए थे, जो मुगल काल के सर्वश्रेष्ठ तस्वीरों में से थे.
शाही हमाम में रोशनी की कारीगरी अद्भुत थी . यहां चारों तरफ संगमरमर था, और हर तरफ कांच लगा हुआ था. इसे इस तरह से बनाया गया था कि हौज के आसपास एक दिया रखते ही चौतरफा रोशनी जगमगा जाती थी. रोशनी को परावर्तित करने के लिए यहां जगह-जगह हीरे जड़े हुए थे, जो कि रोशनी बिखेर देते थे. ये हमाम मुमताज महल और शाहजहां दोनों को ही बेहद प्रिय था.
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जून 1631 में प्रसव पीड़ा के दौरान मुमताज की मौत हो गई और उनके शव को ताप्ती नदी के किनारे जैनाबाग में अस्थाई पर दफन कर दिया गया. इसके बाद ही शाहजहां ने आगरा में ताजमहल का निर्माण शुरू करवाया. कहा जाता है कि मुमताज की रूह आज भी इसी शाही हमाम के खंडहर के इर्दगिर्द भटकती है
इसके लगभग 12 साल बाद मुमताज के शव को दोबारा निकाला गया और ताजमहल में दफन किया गया. लेकिन कहते हैं कि मुमताज की रूह आज भी इसी शाही हमाम के खंडहर के इर्दगिर्द भटकती है. स्थानीय लोगों के अनुसार उन्हें अक्सर महल से चीखने-चिल्लाने की आवाजें आती हैं. हालांकि कभी किसी ने इस आवाज से डरने की बात नहीं कही.
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