Weird Tribes: यहां की महिलाएं कम उम्र के मर्दों से करती हैं शादी, पति बन जाते हैं बंधुआ मजदूर
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Weird Tribes: यहां की महिलाएं कम उम्र के मर्दों से करती हैं शादी, पति बन जाते हैं बंधुआ मजदूर

Weird Tribes: बोंडा जनजाति, जिसे रेमो के नाम से भी जाना जाता है, ओडिशा के मलकानगिरी जिले के पहाड़ी क्षेत्रों में बसने वाली एक आदिवासी जनजाति है. यह जनजाति भारत की सबसे अलग-थलग और प्राचीन जनजातियों में से एक मानी जाती है.

 

Weird Tribes: यहां की महिलाएं कम उम्र के मर्दों से करती हैं शादी, पति बन जाते हैं बंधुआ मजदूर

Weird Tribes In India: बोंडा जनजाति, जिसे रेमो के नाम से भी जाना जाता है, ओडिशा के मलकानगिरी जिले के पहाड़ी क्षेत्रों में बसने वाली एक आदिवासी जनजाति है. यह जनजाति भारत की सबसे अलग-थलग और प्राचीन जनजातियों में से एक मानी जाती है. बोंडा जनजाति भारत के 75 प्राचीन आदिवासी समूहों में से एक है और अपनी सांस्कृतिक धरोहर को बनाए रखने में सफल रही है. बोंडा जनजाति के दो मुख्य समूह होते हैं: ऊपरी बोंडा और निचले बोंडा.

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ऊपरी और निचले बोंडा जनजाति में अंतर

ऊपरी बोंडा जनजाति बाहरी दुनिया से लगभग पूरी तरह से कटी हुई है और वे अपनी पारंपरिक जीवनशैली को पूरी तरह से बनाए रखते हैं. इसके विपरीत, निचले बोंडा जनजाति में बाहरी दुनिया से कुछ संपर्क हो सकता है, लेकिन ऊपरी बोंडा अपने सामाजिक और सांस्कृतिक रीति-रिवाजों को अब भी दृढ़ता से बनाए रखते हैं.

भाषा और सांस्कृतिक धरोहर

बोंडा लोग रेमो नामक एक ऑस्ट्रो-एशियाटिक बोली बोलते हैं, जो गुतोब भाषा से निकटता रखती है. यह भाषा उनके समुदाय की सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और उनकी पहचान का प्रतीक है. बोंडा जनजाति का जीवन उनके पारंपरिक कृषि कार्यों पर निर्भर है, जिसमें वे शिफ्टिंग कल्टीवेशन (क्लुंडा चास) की विधि का पालन करते हैं. इसके अलावा, उनका जीवन पशुपालन और मौसमी वन उपज संग्रहण द्वारा भी संपन्न होता है.

पारंपरिक वस्त्र और गहनों का महत्व

बोंडा जनजाति के पुरुष एक संकरी धोती (गोसी) पहनते हैं, जबकि महिलाएं भारी धातु की हार और आभूषण पहनती हैं. महिलाओं की पारंपरिक पहचान उनके बड़े भारी गोल आकार के गहनों (गला हार) और कांस्य और एल्युमिनियम के पट्टियों से होती है. इन गहनों और आभूषणों का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है.

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बोंडा जनजाति में एक विशेष प्रकार की श्रमिक व्यवस्था है, जिसे "गुफाम" या गोटी प्रथा कहा जाता है. इसके तहत एक महिला अपने पति के साथ बंधुआ श्रमिक के रूप में जीवन व्यतीत करती है. बोंडा समाज में मातृसत्ता का शासन है, जिसमें महिलाएं आमतौर पर ऐसे पुरुषों से विवाह करती हैं जो उनसे 5 से 10 साल छोटे होते हैं. इस परंपरा का उद्देश्य यह है कि जब महिलाएं उम्रदराज हो जाएं, तब उनके पति उनके लिए काम करने के लिए सक्षम बने रहें.

धार्मिक विश्वास और पूजा पद्धति

बोंडा लोग बहुदेववादी होते हैं और मानते हैं कि कई देवता और आत्माएं होती हैं. वे मुख्य रूप से प्रकृति के देवताओं की पूजा करते हैं और उनके जीवन में प्राकृतिक शक्तियों का एक महत्वपूर्ण स्थान होता है. उनकी पूजा प्रणाली में खासतौर पर जंगल, पहाड़, नदी और सूर्य जैसी प्राकृतिक शक्तियों की पूजा की जाती है.

बोंडा जनजाति के गांव पारंपरिक रूप से स्वायत्त होते हैं. इन गांवों में सामाजिक व्यवस्था और अनुशासन बनाए रखने के लिए पारंपरिक कार्यकर्ता होते हैं. इनमें से प्रमुख हैं - "नाइक" (गांव के प्रमुख), "चल्लान" (गांव की बैठक का आयोजक) और "बरिक" (गांव का संदेशवाहक). ये सभी कार्यकर्ता गांव के निर्णयों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और गांव में शांति और व्यवस्था बनाए रखते हैं.

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