China: चीन में नई नई बीमारियां जन्म क्यों ले रही हैं? इस सवाल को लेकर हमने काफी रिसर्च की और ये रिसर्च दो बिंदुओं पर हमारा ध्यान केन्द्रित करती है.
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नई दिल्ली: आज हम बीमारियों के नए एड्रेस यानी पते का विश्लेषण करेंगे. पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाला देश चीन अब नई नई बीमारियों का घर बन गया है. यानी पते की बात ये है कि बीमारियों का नया पता अब चीन खुद बन गया है. वर्ष 2019 में कोरोना वायरस की उत्पत्ति चीन के वुहान शहर में हुई थी, लेकिन शायद आपको ये जानकारी होगी कि कोरोना अकेली महामारी नहीं है, जो चीन से निकल कर पूरी दुनिया में फैली. ये सूची बहुत लंबी है. हम आपको इनमें से कुछ उदाहरण बताते हैं.
-वर्ष 1956 में एशियन फ्लू की उत्पत्ति चीन में हुई थी.
-पहली बार बर्ड फ्लू यानी H5N1 वायरस का मामला वर्ष 1997 में चीन में मिला था.
-फिर वर्ष 2002 में SARS यानी Severe Acute Respiratory Syndrome वायरस भी चीन से फैला.
-और 2019 में कोरोना वायरस की शुरुआत भी चीन से हुई.
यहां एक और जानकारी ये है कि अब चीन में एक नई बीमारी और देखी गई है. चीन के नेशनल हेल्थ कमीशन ने बताया है कि वहां के जिआंगसू प्रांत में पहली बार कोई इंसान बर्ड फ्लू के H10N3 स्ट्रेन से संक्रमित हुआ है. यानी दुनिया का ये पहला ऐसा मामला है. WHO के मुताबिक, इससे पहले तक दुनिया में कभी कोई इंसान बर्ड फ्लू के इस स्ट्रेन से संक्रमित नहीं हुआ, लेकिन इस मामले ने सभी देशों की चिंता बढ़ा दी है.
सोचिए चीन का कोरोना वायरस अब तक गया नहीं है और ये दूसरी बीमारी आ गई है.
चीन के नेशनल हेल्थ कमीशन अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर जानकारी दी है कि बर्ड फ्लू के इस स्ट्रेन से संक्रमित होने वाले व्यक्ति की उम्र 41 वर्ष है और ये व्यक्ति मुर्गी पालन करने से इस वायरस से संक्रमित हुआ. हालांकि चीन का दावा है कि ये वायरस एक इंसान से दूसरे इंसान में नहीं फैल सकता, लेकिन हमारा मानना है कि चीन की बातों पर भरोसा करना मुश्किल है क्योंकि, यही बात उसने तब कही थी, जब उसने पहली बार WHO को कोरोना वायरस के बारे में स्थिति स्पष्ट की थी.
तब चीन के वैज्ञानिकों ने झूठ बोला था कि कोरोना वायरस एक इंसान से दूसरे इंसान में नहीं फैल सकता और तब दुनिया चीन के इस दावे को लेकर आश्वस्त थी, लेकिन चीन का झूठ पूरी दुनिया को भारी पड़ा और ये वायरस अब तक करोड़ों लोगों को संक्रमित कर चुका है और लाखों लोगों की जान ले चुका है.
बड़ी बात ये है कि बर्ड फ्लू की उत्पत्ति भी चीन से हुई थी और इसके H10N3 स्ट्रेन से किसी इंसान के संक्रमित होने का पहला मामला भी चीन में मिला है.
अब सवाल ये है कि चीन में नई नई बीमारियां जन्म क्यों ले रही हैं? इस सवाल को लेकर हमने काफी रिसर्च की और ये रिसर्च दो बिंदुओं पर हमारा ध्यान केन्द्रित करती है.
पहला कारण हैं, चीन के बड़े Wet Markets, ये वेट मार्केट्स वो होते हैं, जहां जानवरों का फ्रेश यानी ताज़ा मीट मिलता है.
और दूसरा कारण है, चीन में खतरनाक वायरस पर अध्ययन करने वाली लैबोरटरीज यानी प्रयोगशालाएं.
हम आपको एक एक करके इन दोनों कारणों के बारे में बताएंगे. पहले Wet Markets के बारे में बताते हैं.
चीन में जानवरों के फ्रेश मीट की बिक्री के लिए ऐसे कई बाजार हैं और ये बाजार नए नहीं हैं. वर्ष 2019 में जब कोरोना वायरस चीन के वुहान शहर में फैला था, तब ये खबरें थीं कि ये वायरस वुहान के सी फूड मार्केट से फैला. ये भी एक Wet Market है.
इस तरह के मार्केट्स में जानवरों को मारा जाता है और फिर वहीं लोग इसे खरीद लेते हैं. यहां चमगादड़, सांप, Beavers, साही, मगरमच्छ और दूसरे जानवरों का मीट बेचा जाता है और ये काम बड़े स्तर पर होता है. यहां लोगों की भीड़ होती है और ऐसी स्थिति में इंसानों के वायरस के संपर्क में आने की संभावनाएं रहती हैं.
विशेषज्ञ मानते हैं कि ये मार्केट्स जानवरों से फैलने वाले वायरस का एक गोदाम बन जाते हैं और ये काफी खतरनाक होता है.
-उदाहरण के लिए H5N1 वायरस यानी बर्ड फ्लू और SARS इन दोनों की उत्पत्ति जानवरों से ही हुई है.
-बर्ड फ्लू की उत्पत्ति जीवित या मृत मुर्गे से हुई.
-और SARS वायरस चमगादड़ से पहले Civet Cats में फैला, जो एक छोटा स्तनधारी जानवर होता है और फिर इसने इंसानों को संक्रमित किया.
समझने वाली बात ये है कि चीन में Civet Cats को स्वादिष्ट भोजन की सूची में गिना जाता है. चीन में SARS फैलने से पहले तक वहां के एक प्रांत में इस जानवर को पाला जाता था और लोग फिर इसे खाते थे. सोचिए पूरी दुनिया के लिए चीन के ये बाजार कितना बड़ा खतरा हैं.
Wet Markets के बाद अब आपको वायरस पर अध्ययन करने वाली लैबोरेटरीज यानी प्रयोगशालाओं के बारे में बताते हैं.
-ऐसे कई मामले हैं, जिनसे पता चलता है कि इन प्रयोगशालाओं से वायरस इंसानों में फैला है. सबसे बड़ा उदाहरण SARS वायरस ही है.
-WHO मान चुका है कि 2004 का SARS वायरस भी बीजिंग की वायरोलॉजी लैब से लीक हुआ था. तब WHO ने ये कहा था कि ये वायरस इस लैब से एक नहीं, दो दो बार लीक हुआ था.
-वर्ष 2003 में जब SARS वायरस फैला था, उसके लिए भी WHO ने सिंगापुर की एक लैब को ज़िम्मेदार माना गया था. ये सिंगापुर की BSL3 लैब थी. कहने का मतलब ये है कि वायरस का लैब से लीक होना नया नहीं है.
-एक सच्चाई ये भी है कि चीन में वायरस पर अध्ययन करने वाली लैबारेटरीज का रिकॉर्ड अच्छा नहीं है.
वर्ष 2018 में अमेरिका के दो बड़े अधिकारी चीन की वुहान लैब पहुंचे थे. ये वही लैब है, जहां से कोरोना वायरस के इंसानों में फैलने की आशंका जताई जाती है. महत्वपूर्ण बात ये है कि वुहान का ये वायरोलॉजी इंस्टीट्यूट लगभग 60 वर्ष पुराना है. इसकी स्थापना वर्ष 1956 में हुई थी. उस समय इस इंस्टीट्यूट का नाम था— Wuhan Microbiology Laboratory.
इस इंस्टीट्यूट की जिस लैब में कोरोना वायरस को विकसित करने का शक है, वो वर्ष 2003 में 44 मिलियन डॉलर यानी साढ़े तीन सौ करोड़ की लागत से तैयार हुई थी. ये चीन की अकेली BSL 4 लैब है- इसका मतलब है Bio Safety Level 4. इस लेवल की लैब में सबसे खतरनाक वायरस पर अध्ययन किया जाता है.
लेकिन वर्ष 2018 में जब अमेरिका के दो बड़े अधिकारी इस लैब में पहुंचे, तो उन्होंने पाया कि इस लैब में वैसे इंतजाम और तैयारियां नहीं हैं, जो वायरस को रोकने में पुख़्ता हों. तब उन्होंने वुहान की इस लैब को लेकर चेतावनी भी दी थी और कहा था कि ये लैब किसी बड़े संकट का कारण बन सकती है और फिर वही हुआ. ये वो दो कारण हैं, जो चीन को नई नई बीमारियों का घर बना रहे हैं, लेकिन इसे लेकर पूरी दुनिया में झूठ बोलता है.
आज जब चीन की बात हो ही रही है, तो हम आपको एक ऐसी खबर के बारे में बताते हैं, जिस पर अमेरिका में खूब हंगामा हो रहा है. अमेरिका के एक अखबार द वॉशिंगटन पोस्ट ने 866 पन्नों का एक लीक ई-मेल प्रकाशित किया है. ये ई-मेल 28 मार्च 2020 को Chinese Center for Disease Control and Prevention के डायरेक्टर Gao Fu ने अमेरिकी राष्ट्रपति के चीफ मेडिकल एडवाइजर एंथनी फाउची को भेजा था.
यानी दावा है कि उस समय एंथनी फाउची चीन के वैज्ञानिकों के संपर्क में थे.
इस ई-मेल से पता चला है कि वर्ष 2000 के आसपास अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट्स ऑफ हेल्थ से चीन की वुहान लैब के लिए फंडिंग भी हुई थी. इस कनेक्शन को समझिए, जिस वुहान लैब से कोरोना वायरस के निकलने का दावा किया जाता और अमेरिका जिसकी जांच चाहता है, उसे अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट्स ऑफ हेल्थ से आर्थिक फंडिंग मिल चुकी है. एंथनी फाउची ने खुद इस बात को माना है. हालांकि वो ये कहते हैं कि ये फंडिंग SARS वायरस पर रिसर्च के लिए दी गई थी.
लीक हुए इस ईमेल में एंथनी फाउची ने बिल और मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के एक एग्जक्यूटिव के साथ भी बातचीत की थी. जिसके बाद इस मामले में बिल गेट्स का भी नाम शामिल हो गया है. बड़ी बात ये है कि जब पिछले वर्ष अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इसे लेकर वुहान पर गंभीर आरोप लगा रहे थे, तब एंथनी फाउची ने वुहान लैब से वायरस की उत्पत्ति को सिरे से खारिज किया था. लेकिन कुछ दिन पहले वो अपने बयान से पलट गए और अब उनका मानना है कि वुहान लैब को लेकर जांच की जरूरत है.
यानी कोरोना की लैब लीक थ्योरी अब गहराती जा रही है. एक लाइन में कहें तो इस मामले में अमेरिका की भूमिका भी संदिग्ध हो गई है और चीन को लेकर संदेह और सवाल पहले से हैं. ऐसे में जरूरी है निष्पक्ष जांच हो और इसके लिए WHO ही प्रयास कर सकता है. हालांकि अभी तो WHO भी चीन की कठपुतली बना हुआ है.