संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) ने पूर्व में जिसे आतंकवादियों की सूची में डाला था, उसे पाकिस्तान ने अपने कार्यक्रम में बुलाया.
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नई दिल्ली: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) ने पूर्व में जिसे आतंकवादियों की सूची में डाला था, उसे पाकिस्तान ने अपने कार्यक्रम में बुलाया. ये कार्यक्रम जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटने की वर्षगांठ के मौके पर पाकिस्तान के विरोध के रूप में आयोजित किया था. अफगानिस्तान में पाकिस्तानी मिशन (Pakistani mission) ने एक वर्चुअल मीट आयोजित की जिसमें गुलबदीन हेकमतयार (Gulbadin Hekmatyar) भी था. इसे काबुल के कसाई के रूप में भी जाना जाता है और तीन साल पहले तक वह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा आतंकी के तौर पर सूचीबद्ध भी था. 1990 के दशक में अफगान गृहयुद्ध के दौरान उसे इस्लामाबाद से मिले समर्थन और उसके पाकिस्तान (Pakistan) के साथ संबंध भी जगजाहिर हैं.
बता दें कि इस अवसर पर काबुल में पाकिस्तान के राजदूत जाहिद नसरुल्ला खान भी मौजूद थे.
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वहीं संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के स्थायी मिशन के गुलाम नबी फई को न्यूयॉर्क में एक वर्चुअल इवेंट के लिए आमंत्रित किया गया. बता दें कि फई का पिछला रिकॉर्ड पाक-साफ नहीं है. उन्हें अमेरिकी सरकार में कश्मीर के मुद्दे पर लॉबिंग करने के लिए पाकिस्तान की कुख्यात जासूसी एजेंसी इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) से मिले 3.5 मिलियन डॉलर के फंड को छिपाने के लिए अमेरिका ने दो साल की सजा दी थी. फई के साथ इस कार्यक्रम में संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तानी दूत मुनीर अकरम मौजूद थे.
5 अगस्त को ऐसे ही एक पाकिस्तानी मिशन द्वारा मलेशिया में आयोजित की गई एक वर्चुअल मीट में प्रोफेसर मुहम्मद रोजलान, शान सईद को आमंत्रित किया गया था. इस मीट के बाद ठीक तीसरे दिन ही मलेशिया के पूर्व प्रधानमंत्री महाथिर मोहम्मद तथाकथित "कश्मीर पर एकजुटता दिवस" के कार्यक्रम में उपस्थित थे.
बता दें कि जम्मू और कश्मीर का विशेष दर्जा हटाए जाने की वर्षगांठ पर पाकिस्तान ने इसके विरोध में कई आयोजन किए थे. इसमें ज्यादातर घरेलू स्तर के थे-जैसे इस मौके के लिए नए गीत बनाना, इस्लामाबाद में एक प्रमुख राजमार्ग का नाम बदलकर श्रीनगर राजमार्ग करना और देश का एक नए राजनीतिक मानचित्र बनाकर उसमें भारतीय क्षेत्रों को अपने हिस्से के रूप में दिखाना.
हालांकि भारत ने पाकिस्तान के नए नक्शे को 'राजनीतिक मूर्खता की एक कवायद' और 'हास्यास्पद दावा' कहकर खारिज कर दिया, क्योंकि इसकी ना तो कोई 'कानूनी वैधता है और न ही अंतर्राष्ट्रीय विश्वसनीयता' है.