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Wayanad Landslide: 8 घंटे, 7KM की दूरी, 4 वन अधिकारी; आदिवासी परिवार के हैरतअंगेज रेस्क्यू की कहानी

Wayanad forest officers rescue operation: 'जाको राखे साईया मार सके ना कोए...' ये कहावत एक बार फिर सच साबित हुई है. आपदा चाहे कैसी भी हो, कहीं पर भी आई हो, अगर ऊपरवाला बचाना चाहता है तो कैसे भी बचा लेता है. केरल के वायनाड में हुई त्रासदी (Wayanad landslides tragedy) से भी एक ऐसी मानवीय कहानी सामने आई है, जो आपकी आखें भिगो देगी. यहां फॉरेस्ट विभाग के चार अफसरों ने देवदूत बनकर एक असंभव से दिख रहे रेस्क्यू ऑपरेशन को पूरा करके एक आदिवासी परिवार की जान बचा ली. 

खास है ये तस्वीर

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खास है ये तस्वीर

वायनाड में हुए विनाशकारी भूस्खलन के बीच, एक जंगल में फंसे चार बच्चों सहित एक आदिवासी परिवार को वन अधिकारियों ने दिलेरी दिखाते हुए सुरक्षित निकाल लिया. कलपेट्टा रेंज के फारेस्ट अधिकारी के. हशीस की अगुवाई में चार सदस्यीय टीम ने एक आदिवासी परिवार को बचाने के लिए अपनी जान जोखिम में डाली और जंगल के भीतर खतरनाक रास्तों पर निकल पड़ा. 

गुफा में फंसा था आदिवासी परिवार

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गुफा में फंसा था आदिवासी परिवार

वायनाड के पनिया समुदाय से ताल्लुक रखने वाला यह परिवार पहाड़ी पर स्थित एक गुफा में फंस गया था, जिससे लगी एक गहरी खाई थी. परिवार में एक से चार साल के चार बच्चे भी थे. वन अधिकारियों के दल को गुफा तक पहुंचने में साढ़े चार घंटे से अधिक का वक्त लग गया. केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने सोशल मीडिया पर, वन अधिकारियों के डेयरिंग अटैप्ट की तारीफ की. 

इनपुट मिलते ही एक्शन

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इनपुट मिलते ही एक्शन

फॉरेस्ट आफिसर हशीस ने हमारी टीम को बताया कि उन्हें बृहस्पतिवार को एक महिला और चार साल का बच्चा वन क्षेत्र के निकट मिला. उनसे पूछताछ करने पर पता चला कि तीन और बच्चे और उनका पिता एक गुफा में फंसे हुए हैं और उनके पास खाने तक के लिए भी कुछ नहीं है. 

साहस को सलाम

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साहस को सलाम

रिपोर्ट के मुताबिक फॉरेस्ट अफसर हशीस के साथ, खंड वन अधिकारी बी.एस जयचंद्रन, बीट वन अधिकारी के अनिल कुमार और त्वरित प्रतिक्रिया दल ​​के सदस्य अनूप थॉमस ने आदिवासी परिवार को बचाने के लिए सात किलोमीटर से अधिक की दूरी तय की. 

 

रुकने का तो सवाल ही नहीं था....

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रुकने का तो सवाल ही नहीं था....

हशीस ने बताया कि परिवार जनजातीय समुदाय के एक विशेष वर्ग से ताल्लुक रखता है, जो आमतौर पर बाहरी लोगों से घुलना-मिलना पसंद नहीं करता. ऐसे में ये रेस्क्यू ऑपरेशन और चुनौतीभरा हो गया था. दरअसल ये ऐसी आदिवासी कम्युनिटी है जो आम तौर पर वनोंत्पादों पर निर्भर रहते हैं और उन चीजों को लोकल मार्केट में बेचकर चावल जैसे खाद्ध पदार्थ खरीदते हैं. 

 

अफसर हो गए इमोशनल

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अफसर हो गए इमोशनल

रेस्क्यू ऑफिसर्स के मुताबिक वायनाड में आई आपदा के बाद लेकिन ऐसा लगता है कि भूस्खलन और भारी बारिश के कारण उनके पास खाने के लिए कुछ नहीं बचा था. ऐसे में ये परिवार आपदा में फंस गया. अफसरों ने इस परिवार के बच्चों को कपड़े से अपने शरीर पर बांधी और रस्सों की मदद से उन्हें सही सलामत यानी जिंदा रेस्क्यू कर लिया. इस रेस्क्यू ऑपेरेशन की कहानी और तस्वीरें आपको इमोशनल कर सकती हैं.

असंभव सा था ऑपरेशन

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असंभव सा था ऑपरेशन

मिशन इंपासिबल को मुमकिन बनाने वाले इस ऑपरेशन में देवदूत बने वन विभाग के अफसरों ने भारी बारिश के बीच, फिसलन भरी और खड़ी चट्टानों पर चढ़ाई की. नाले से बहते पानी को पार किया. दुर्गम इलाके में फंसे बच्चे काफी डरे, सहमे और थके हुए थे. ऐसे में फॉरेस्ट टीम जो कुछ भी साथ ले गई थी, उसे उन बच्चों को खाने के लिए दिया गया. काफी समझाने-बुझाने के बाद बच्चों के मां-बाप फारेस्ट टीम के साथ सुरक्षित स्थान पर जाने को तैयार हुए. इसके बाद टीम ने बच्चों को अपने शरीर से बांध लिया और नीचे उतरना शुरू कर दिया. बाद में उन्हें अट्टमाला में बने सेंटर में ढंग से खाना खिलाया गया और कपड़े तथा जूते दिए गए. फिलहाल उस आदिवासी परिवार के बच्चे सुरक्षित हैं’. 

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शुक्रवार को सोशल मीडिया पर, एक अधिकारी द्वारा एक बच्चे को गोद में उठाए जाने की फोटो वायरल हो गई. कहते हैं कि मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है. वायनाड भूस्खलन के बाद कई घंटों से भूखे बच्चे परेशान थे. ऐसे में वन विभाग की ये टीम ने अपनी वीरता और साहस की ऐसी मिसाल पेश करी कि दुनिया देखती रह गई. लोग इन्हें सलाम कर रहे हैं. 

 

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