Antarctica Ice Sheets Tipping Point: पृथ्वी के दक्षिणी ध्रुव पर जमा बर्फ पिघलने के 'टिपिंग पॉइंट' तक पहुंच गई है. परिभाषा के मुताबिक, टिपिंग पॉइंट वह सीमा रेखा है जहां एक छोटा सा परिवर्तन किसी सिस्टम को पूरी तरह से नई स्थिति में पहुंचा सकता है. वैज्ञानिकों ने मंगलवार को छपी एक स्टडी में अंटार्कटिक क्षेत्र से जुड़ी यह चेतावनी दी है. उनका कहना है कि अंटार्कटिक की बर्फ और जमीन के बीच में महासागरों का गर्म पानी घुस रहा है. अंटार्कटिक क्षेत्र में अंटार्कटिका महाद्वीप, केर्गुएलन पठार, और अंटार्कटिका प्लेट पर स्थित अन्य द्वीप शामिल हैं.
स्टडी में कहा गया है, 'समुद्र के तापमान में इजाफे के चलते एक टिपिंग पॉइंट पार हो सकता है, जिसके बाद समुद्र का पानी बर्फ की चादर के नीचे अनियंत्रित तरीके से प्रवेश कर जाता है, और बर्फ पिघलने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है.' अंटार्कटिका में बर्फ की चादरें आधार के ऊपर स्थित हैं और तट से आगे तक फैली हुई हैं. ये समुद्र पर तैरती रहती हैं.
इस तरह बर्फ पिघलने पर पहले भी कई बार स्टडी हुई है. लेकिन अंटार्कटिका पर ग्लोबल वार्मिंग के असर का अंदाजा लगाने के लिए जलवायु परिवर्तन पर बने संयुक्त राष्ट्र अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) के विभिन्न मॉडलों में अभी तक इस घटना को फैक्टर नहीं किया गया है. नेचर जियोसाइंस पत्रिका में छपी स्टडी में कहा गया है कि IPCC ने अब तक पिघली बर्फ को भी कम करके आंका है.
पिछली कई स्टडीज बताती हैं कि गर्म समुद्री पानी 'ग्राउंडिंग जोन' - जहां जमीन और बर्फ मिलते हैं - में रिस रहा है. यह पानी तैरती बर्फ के नीचे से और भी अंदर की ओर आ रहा है. रिसर्च के मुताबिक, अगर पानी थोड़ा सा भी गर्म होता है तो इस घुसपैठ का दायरा 100 मीटर जैसी छोटी दूरियों से बढ़कर दसियों किलोमीटर तक फैल जाता है. यह पानी बर्फ को नीचे गर्म करते हुए पिघलाता रहता है.
समुद्रों का जलस्तर बढ़ने का खतरा तब पैदा होता है जब बर्फ पिघलने की गति नई बर्फ के निर्माण की गति से अधिक हो जाती है. रिसर्च के मुताबिक, अंटार्कटिका के कुछ हिस्सों को इस प्रक्रिया से ज्यादा खतरा है क्योंकि उनके नीचे जमीन का आकार अलग है. कहीं-कहीं घाटियां और कैविटीज हैं जहां समुद्र का पानी बर्फ के नीचे जमा हो सकता है.
फिलहाल समुद्री जलस्तर में बढ़ोतरी में अंटार्कटिका का पाइन आइलैंड ग्लेशियर का सबसे ज्यादा योगदान है. वैज्ञानिकों के अनुसार, इस आइलैंड के पिघलने का खतरा काफी ज्यादा है क्योंकि भूमि की ढलान के कारण समुद्र का पानी अधिक मात्रा में अंदर आता है.
ग्लोबल वार्मिंग और कुछ नहीं, इंसान की अपनी करनी का फल है. जैसे-जैसे महासागरों का तापमान बढ़ रहा है, अंटार्कटिक में बर्फ की परतें पिघलने लगी हैं. इससे वैश्विक स्तर पर समुद्रों का जलस्तर बढ़ने का खतरा है. जलस्तर में मामूली इजाफा भी तटीय इलाकों को डुबो सकता है.
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