Mayawati Plan for Lok Sabha Chunav: बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने तमाम सियासी अटकलों को खारिज करते हुए अकेले लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान किया तो UP के सियासी पंडित अब उनके कांफिडेंस और ओवर कांफिडेंस की चर्चा कर रहे हैं. मायावती ने कहा, 'BSP के अकेले चुनाव लड़ने के कारण विरोधी लोग बेचैन थे, इसीलिए अफवाह फैला रहे थे. अखिलेश यादव ने इस पर रिएक्शन देते हुए उन्हें थैंक्यू कहा. मायावती ने मजबूती से लड़ने और जीत का दावा कर तो दिया लेकिन क्या वाकई ऐसा हो पाएगा? क्योंकि लोगों का कहना है कि उनके सामने सियासी जनाधार बचाने की चुनौती है.
दिल्ली की सत्ता का रास्ता यूपी होते हुए ही जाता है. मायावती ने अकेले लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान कर तो दिया लेकिन जानकारों का कहना है कि उनकी राह आसान नहीं है. ऐसे में पार्टी को कई मोर्चों पर खुद को साबित करना बड़ी चुनौती होगी. आंकड़े बताते हैं कि 1996 के लोकसभा चुनावों के बाद से पार्टी का जनाधार लगतार घटता जा रहा है. वर्ष 2009 में भले ही पार्टी के सबसे ज्यादा 21 उम्मीदवार जीते, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर उसका मत प्रतिशत 6.17% ही रहा.
1996 में बीएसपी का वोट शेयर 11.21% (11 सीट), 1998 में 4.67% (5 सीट), 1999 में 4% (14 सीट), 2004 में 5.33% (19 सीट) , 2009 में 6.17% (21 सीट), 2014 में 4.19% (0 सीट) और 2019 के लोकसभा चुनावों में 2.44% वोट शेयर हासिल किया लेकिन यूपी में उसे 10 सीटें जीती थीं. इतना ही नहीं एक सीट पर तो जीत का अंतर भी काफी कम रहा था. वहीं 2023 में हुए UP नगर निकाय चुनाव में BSP ने मुस्लिम कार्ड चला था लेकिन उसे कामयाबी नहीं मिली. मेयर की सीटों पर हुए चुनाव में बीएसपी को महज 11.5%वोट मिले थे.
लोकसभा चुनावों की बात करें तो राष्ट्रीय दल होने के नाते BSP यूपी, उत्तराखंड, हरियाणा, पंजाब, एमपी, छत्तीसगढ़ से लेकर राजस्थान में अपनी दमदार मजबूती का अहसास करा चुकी है. उसने कुछ राज्यों में विधानसभा के साथ लोकसभा सीटें भी हासिल कीं लेकिन अब BSP सिमट रही है. 2019 में 26 राज्यों से कैंडिडेट उतारने वाली BSP को आधे से ज्यादा राज्यों में 1% से कम वोट मिले. वहीं 7 राज्यों में ये आंकड़ा 2% के आसपास रहा. यूं तो 1990 से लगातार त्रिशंकु विधानसभा का मुंह देख रहे यूपी को BSP ने 2007 में पूर्ण बहुमत की सरकार प्रदान की. लेकिन 2014 लोकसभा चुनावों में वो शून्य हो गई. 2019 में उसने 10 सीटें जीतीं लेकिन उसके कुछ सांसद पार्टी का दामन छोड़ चुके हैं. ऐसे में पार्टी के सामने जनाधार बचाने की चुनौती है.
लोकसभा चुनावों में सीटों के आंकड़े में उतार-चढ़ाव के इतर BSP की राजनीति अपने कोर वोटर्स के इर्द गिर्द घूमती दिखती है. उन्होंने पिछला चुनाव SP-RLD के साथ लड़ा था. ऐसे में इस बार अकेले लड़ने से उसका वोट शेयर कम हो सकता है. यानी 2024 के नतीजे ही ये बता पाएंगे कि उसके पास हिंदी बेल्ट में कितना काडर वोट बचा है.
2019 के लोकसभा चुनावों में BSP ने पश्चिमी यूपी में अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराई थी. पूरब से लेकर पश्चिम तक हाथी ठीक ठाक लड़ा था. यूपी की जिन सीटों पर मायावती की बीएसपी जीती, उनमें, शाहरनपुर, बिजनौर, नगीना, अमरोहा, अंबेडकरनगर, श्रावस्ती, लालगंज, घोस और गाजीपर का नाम शामिल है. इसमें से गाजीपुर के सांसद अफजाल अंसारी को 16 साल पुराने मामले में चार साल की सजा सुनाई गई थी, जिसके बाद उनकी सांसदी चली गई थी. सांसद रितेश पांडे हाथी की सवार छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए. तब कहा गया था कि कुछ और नेता बीएसपी छोड़ सकते हैं. यानी पार्टी को एकजुट रखने की चुनौती भी मायावती के सामने है.
अकेले लड़ने का ऐलान करके मायावती ने इंडिया गठबंधन को झटका दिया है. यूपी में बीएसपी की निगाह 22 फीसदी दलित वोटर्स पर उसकी नजर रहती है. मायावती अपने इसी काडर वोट और अल्पसंख्यक मतों के सहारे यूपी की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं. 2024 के चुनावों में पिछड़ों से इतर सवर्ण मतदाता और अल्पसंख्यक उनका कितना साथ निभाएंगे ये देखना भी दिलचस्प होगा. मायावती की बसपा 'मिशन 24' के लिए पूरी तरह से जुट गई है, बीएसपी ने कुछ समय पहले 'वोट हमारा, राज तुम्हारा, नहीं चलेगा' का नारा देते हुए चुनावी शंखनाद फूंक दिया था. इस नारे से साफ है कि लोकसभा चुनाव में BSP का फोकस दलित और अतिपिछड़ा होंगे. वहीं सवर्ण मतदाताओं का मायावती को कितना समर्थन मिलेगा, ये भी देखना दिलचस्प होगा.
ट्रेन्डिंग फोटोज़