Bihar CM Nitish Kumar: जनता दल यूनाइटेड की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की दो दिन की बैठक दिल्ली में 29 दिसंबर से शुरू होने वाली है. उससे ठीक पहले नीतीश कुमार और जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह दोनों दिल्ली पहुंच चुके हैं. जंतर मंतर के पास स्थित पार्टी दफ्तर नीतीश कुमार के पोस्टर भी चिपकाए गए हैं जिस पर लिखा है प्रदेश ने पहचाना अब देश भी पहचानेगा. इस स्लोगन को इंडिया गठबंधन में उनकी भूमिका से जोड़कर देखा जा सकता है. लेकिन इन सबके बीच अहम सवाल यह है कि जेडीयू के अंदरखाने क्या हो रहा है. ऐसा माना जा रहा है कि ललन सिंह की जगह किसी दूसरे चेहरे को कमान दी जा सकती है. ललन सिंह के इस्तीफे पर सस्पेंस बना हुआ है. क्या नीतीश कुमार और ललन सिंह के बीच दूरी कुछ अधिक बढ़ गई है या इसका वास्तविकता से नाता है.उस सस्पेंस से पर्दा उठ ही जाएगा. लेकिन यहां बात हम कुछ उन चेहरों की करेंगे जो नीतीश कुमार के खासमखास हुआ करते थे. हालांकि समय के साथ वो उनसे दूर हो गए या नीतीश कुमार ने खुद पल्ला झाड़ लिया था.
जेडीयू के नए अवतार में आने से पहले नीतीश कुमार की पार्टी का नाम समता पार्टी था. इसे खड़ा करने में फर्नांडिस की भूमिका अहम थी. दिग्विजय सिंह और शिवानंद तिवारी के साथ मिलकर उन्होंने पार्टी खड़ी की. बड़ी बात यह कि नीतीश, फर्नांडिस को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे. लेकिन 2004 के आम चुनाव में जब नीतीश कुमार ने फर्नांडिस को मुजफ्फरपुर से टिकट नहीं दिया तो उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा और यहीं से दूरी ऐसी बढ़ी कि दोनों एक दूसरे के साथ कभी नहीं आ सके.
जीतन राम मांझी को जब नीतीश कुमार ने बिहार का सीएम बनाया तो हर कोई दंग था. लेकिन कुर्सी पर काबिज होने के बाद जब मांझी की राजनीतिक महत्वाकांक्षा ने और हिलोरे मारने शुरू किए तो जेडीयू के भीतर ही विरोध के सुर सुनाई देने लगे. नीतीश ने इशारों में समझाने की कोशिश की. लेकिन मांझी उनकी अनदेखी करते रहे और एक दिन ऐसा आया जब ना वो सीएम रहे ना पार्टी का हिस्सा. हाल ही में नीतीश कुमार ने कहा भी था कि अरे इसको सीएम तो मैंने ही बनाया था. लेकिन वो बड़ी भूल थी.
वैसे तो शरद यादव की जन्म स्थली मध्य प्रदेश थी. लेकिन बिहार की राजनीति से करीबी नाता रहा. बिहार की राजनीति में वो नीतीश के करीबी भी रहे. 2013 में जब जेडीयू और एनडीए के रिश्ते में मजबूती आई वहीं से शरद यादव और नीतीश में दूरी बढ़ने लगी थी और यह दूरी तब और बढ़ी जब नीतीश ने एक बार फिर 2017 में एनडीए से नाता जोड़ा. इसके बाद दोनों के रिश्ते में जो दरार आई वो नहीं भर सकी.
नीतीश कुमार और आरसीपी सिंह के रिश्ते के बारे में कहा जाता था कि यह ऐसा अटूट गठबंधन है जो शायद ही टूटे. जेडीयू में किसी भी फैसले का मतलब कि वो आरसीपी सिंह के सुझाव के बगैर नहीं होता. लेकिन जब ललन सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने की खबरें आने लगी तो दोनों के संबंधों में खटास का दौर आया. आरसीपी सिंह ने जेडीयू छोड़ बीजेपी का दामन थाम लिया.
प्रशांत किशोर को कोई कैसे भूल सकता है. नीतीश कुमार के बेहद खास, थिंकटैंक जेडीयू की जीत में अहम भूमिका निभाने वाले रहे. लेकिन मौके मौके पर प्रशांत किशोर के कुछ बयान उन्हें रास नहीं आए और आगे क्या हुआ. नीतीश ने अपने पार्टी के उपाध्यक्ष पद से ना सिर्फ हटाया बल्कि बाहर का भी रास्ता दिखा दिया.
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