China military base outside mainland: अमेरिका की नाक के नीचे चीन ने अपना दूसरा मिलिट्री बेस बनाकर वैश्विक शांति के लिए नया खतरा पैदा कर दिया है. विस्तारवादी चीन, भारत को घेरने के नए मिलिट्री बेस बनाना चाहता है. ऐसे में वो कभी मालदीव तो कभी श्रीलंका और अब बांग्लादेश में नई सैन्य छावनी बनाने की फिराक में है. शी जिनपिंग अपने कार्यकाल में दुनिया की कई रणनीतिक जगहों पर सीक्रेट सैन्य अड्डे बनवा चुके हैं.
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चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग ने ग्लोबल मिलिट्री ग्लोब पर भारत और अमेरिका के खिलाफ मज़बूत होने के लिए अपने मिलिट्री बेसों (China Military Bases) का फैलाव उसी ठीक उसी तर्ज़ पर किया है, जैसा कि वो सीमाओं को लेकर अपने विस्तारवादी एजेंडे पर चलते हैं. भारत के जानी दुश्मन पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट पर एक तरह से चीन का कब्जा है. इससे इतर 'ड्रैगन' भारत को हिंद महासागर में पूरी तरह से घेरना चाहता है.
चीन दुनियाभर में कई मिलिट्री बेस बना चुका है. इस बार तो उसने जिस जगह अपनी फौज बिठाई है, वहां वो 2014 से एक्टिव था. इस बार तो अमेरिका तक को भनक नहीं लगी कि बीजिंग 'कोरल रीफ' का सैन्यीकरण कर रहा है. चीन की नई फौजी बसावट अमेरिका का नया सिरदर्द है तो फिलीपींस के लिए चिंताजनक है. क्योंकि ये पूरा इलाका क्षेत्रीय विवादों के लिए मशहूर रहा है. फिलीपींस और चीन के बीच जब तनाव चरम पर है. ऐसे में बेहद अहम फिलिपिनो द्वीप से चंद मील की दूरी पर पर्याप्त चीनी सैन्य उपस्थिति ने शांति प्रिय देशों की चिंता बढ़ा दी है.
चीनी सैन्य बेस विदेशी ज़मीनों (China Military Base) पर भी हैं. इन्हें लेकर अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन हर साल रिपोर्ट जाती करता है. अमेरिकी चिंता बताती है कि चीन (PLA) दुनिया की सबसे बड़ी नेवी बन चुका है. अमेरिका की रिपोर्ट में कई बार चिंता जताई जा चुकी है चीन दुनिया भर में अपने सैन्य बेस बढ़ा रहा है.
एशिया, अफ्रीका और यहां तक कि चीनी मिलिट्री बेस अमेरिका के बेहद करीब स्थापित हो चुके हैं. हैरान करने वाली बात यहां ये है कि सुपरपावर अमेरिका चीन के सैन्य ठिकानों के डाटा को बढ़ने से रोक नहीं पा रहा है.
चीन ने कुछ सैन्य अड्डे इतने गुपचुप बनाए हैं कि उनका होना एक राज़ बना हुआ है. अर्जेंटीना के पैटागोनिया में चीनी सेना तैनात है. वैसे तो ये जगह स्पेस रिसर्च के लिए है. लेकिन यहां चीनी सेना की मौजूदगी संदिग्ध रही है. वहीं अफ्रीका के जिबूटी में चीन का मिलिट्री बेस है. म्यांमार के ग्रेट कोको आइलैंड में उसका नेवी बेस जगजाहिर है. चीन के कुछ मिलिट्री बेस तो हिंदुस्तान के नजदीक हैं, जिन्हें जियोपॉलिटिकल एक्सपर्ट्स उन्हें चीन का ही मानते हैं भले ही वो श्रीलंका या पाकिस्तान में हों.
अर्जेंटीना के खूबूसरत कुदरती नजारों के लिए मशहूर पैटागोनिया के न्यूकेन में चीन का मिलिट्री बेस है. ये बेस शुरुआत से ही अमेरिका की चिंता का सबब रहा है. हालांकि ये लोकेशन एक्चुअल में है तो चीन के लिए स्पेस स्टेशन से जुड़ा मामला, लेकिन इसे पीपुल्स लिबरेशन आर्मी संचालित करती है. यहां इस स्टेशन के लिए चीन और अर्जेंटीना के बीच जो समझौता हुआ है, उसके अनुसार चीन को 50 सालों तक यहां कोई टेंशन नहीं होगी. अमेरिका इस स्टेशन के ज़रिये जासूसी करने और सैन्य मौजूदगी बढ़ाने के आरोप चीन पर लगा चुका है.
तजाकिस्तान के दक्षिणपूर्वी गोर्नो-बदख्शां में एक सैन्य बेस बनाया था. चीन के इस विदेशी मिलिट्री बेस के ऑपरेशनल होने का खुलासा 2019 में हुआ था.
जिबूती में चीनी नौसेना का बेस स्टेशन ड्रैगन का पहला विदेशी सैन्य अड्डा भी है. कुछ समय पहले आई सैटेलाइट तस्वीरों से पता चला था कि चीन ने जिबूती में अपनी वारशिप यानी युद्धपोतों को तैनात किया है.
भारत को चारों तरफ से घेरने के लिए चीन कोई मौका नहीं छोड़ता. म्यामांर हो, श्रीलंका हो या अब बांग्लादेश का सैन्य तख्तापलट उसके एजेंडे में बस भारत को घेरना है क्योंकि एशिया में चीन का मुकाबला अगर कोई कर सकता है तो सिर्फ भारत. मालदीव में चीन के मिलिट्री बेस को 'स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स' की थ्योरी से समझा जाता है. मैनलैंड चीन से लेकर मध्य पूर्व तक हिंद महासागर क्षेत्र में अपने सैन्य नेटवर्क को फैलाना चीन की स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स नीति है.
चीन (China) मध्य पूर्व, दक्षिण पूर्व एशिया, आर्कटिक रीजन और पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र समेत अब पूरी दुनिया का दारोगा बनने की चाहत में जगह-जगह सैन्य बेस बनाने को उतावला है. स्वतंत्र थिंक टैंक मानते हैं कि फिलहाल तो चीनी फौज के जनरल 'बेल्ट एंड रोड' प्रोजेक्ट की हर लोकेशन में मौका लगते ही मिलिट्री बेस बनाने की हसरत रखते हैं.
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