WB Raj Bhawan controversy: पश्चिम बंगाल के राज्यपाल पर यौन उत्पीड़न जैसे गंभीर आरोप लगे तो चर्चा तेज हुई कि आम आदमी पर ऐसे आरोप लगे तो पुलिस दो मिनट में घर से उठा लेती है लेकिन राज्यपाल को मिली संवैधानिक इम्युनिटी की वजह से सख्त कार्यवाही नहीं हो रही है. बात निकली तो दूर तक यानी सुप्रीम कोर्ट पहुंची. सुप्रीम कोर्ट राज्यपालों को आपराधिक मामलों में मुकदमे से छूट देने वाले संवैधानिक प्रावधानों पर पुनर्विचार करेगा. सर्वोच्च अदालत पश्चिम बंगाल राजभवन में संविदा पर काम करने वाली पूर्व कर्मचारी की याचिका को सुनने के लिए तैयार हो गया है. हालांकि ये कोई पहला मौका नहीं है जब देश के किसी राज्यपाल पर ऐसे गंभीर आरोप लगे हों, इससे पहले मेघालय, आंध्र प्रदेश, राजस्थान और तमिलनाडु के राज्यपालों पर गंभीर आरोप लग चुके हैं. किस राज्यपाल पर क्या आरोप लगे, आइए बताते हैं.
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ममता बनर्जी राजभवन की एक कर्मी की शिकायत के बाद से राज्यपाल बोस के खिलाफ मोर्चा खोले बैठी हैं. उन्होंने आरोप लगाने वाली महिला को इंसाफ दिलाने तक चुप न बैठने की बात कही है. लोग उनके फैसले का खूब समर्थन कर रहे हैं. ये मामला सुप्रीम कोर्ट की चौखट तक पहुंचा तो शीर्ष अदालत राज्यपालों को आपराधिक मामलों में मुकदमे से छूट देने वाले संवैधानिक प्रावधानों पर पुनर्विचार करने के लिए तैयार हो गई.
बंगाल के राज्यपाल का कहना है कि उनकी छवि खराब करने के लिए उन्हें निशाना बनाया जा रहा है.
राज्यपालों पर यौन शोषण जैसे गंभीर आरोपों की बात करें तो ऐसा पहला ज्ञात केस आंध्र प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल एनडी तिवारी का आता है. 2009 में एक तेलुगु चैनल ने तिवारी का एक VIDEO क्लिप ऑन एयर किया था. जिसमें वो तीन-तीन महिलाओं संग आपत्तिजनक स्थिति में दिख रहे थे. मामला हाईकोर्ट तक पहुंचा था. उस दौरान हाईकोर्ट ने वीडियो क्लिप के प्रसारण पर फौरन रोक लगा दी थी. तिवारी जी भी उसी कांस्टीट्यूशनल इम्युनिटी यानी आर्टिकल 361 की वजह से बच गए थे. उनके खिलाफ कोई एक्शन नहीं हुआ था. इस कांड के बाद उनके खिलाफ भारी आंदोलन हुआ था और उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा था.
संवैधानिक इम्यूनिटी का दूसरा मामला यौन शोषण का तो नहीं था लेकिन एक ऐसा मामला था जो सदियों से विवाद का विषय था. यहां बात राजस्थान के पूर्व राज्यपाल कल्याण सिंह की जिन्हें उस समय कई आरोपों से छूट मिली थी. दरअसल कल्याण सिंह बाबरी मस्जिद विध्वंस में शामिल थे. 2017 में जब उन पर मुकदमा चला तब अनुच्छेद 361 के तहत उन्हें छूट मिली थी.
2017 में मेघालय के तत्कालीन राज्यपाल शनमुगनाथन के खिलाफ भी ऐसी शिकायतें हुई थीं. तब राजभवन कर्मियों ने प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को शिकायती पत्र भेजकर आरोप लगाया था कि यहां पर राज्यपाल ने राजभवन के कामों के लिए केवल महिलाओं को सलेक्ट किया गया है और एक तरह से राजभवन को ‘यंग लेडीज क्लब’ बना दिया गया है. उन पर छेड़छाड़ के आरोप भी लगे तो उन्होंने इस्तीफा दे दिया था.
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