Ramnani Tribe History: अयोध्या में 550 साल के इंतजार के बाद भगवान रामलला अपने जन्मस्थान पर विराजमान (Ram Mandir Pran Pratishtha) होने जा रहे हैं. इस बीच, भगवान श्रीराम के अनन्य भक्तों से जुड़ी कई सारी कहानियां भी सामने आ रही हैं. इसी कड़ी में, रामनामी जनजाति (Ramnami Tribe) की भी खूब चर्चा हो रही है. रामनामी जनजाति की श्रद्धा और भक्ति के बारे में जानकर हर कोई हैरान है. बता दें कि रामनामी जनजाति के लोग भगवान श्रीराम के इतने बड़े भक्त हैं कि वो अपने पूरे शरीर पर भी प्रभु का नाम लिखवा लेते हैं. रामनामी जनजाति से जुड़े तमाम हैरान करने वाले फैक्ट्स हैं, आइए उनके बारे में जानते हैं.
बता दें कि रामनामी जनजाति के लोग सिर्फ हाथ या मुंह पर ही नहीं बल्कि लगभग पूरे शरीर पर भगवान श्रीराम के नाम का परमानेंट टैटू करा लेते हैं. ऐसा करके राम का नाम का जिंदगीभर उनके साथ रहता है. कई लोग जो माता-पिता या चाहने वाले का नाम अपनी बॉडी पर टैटू कराते हैं. रामनामी जनजाति वाले उनसे कहीं आगे हैं. वह अपनी पूरी बॉडी को एक तरह से भगवान श्रीराम को ही समर्पित कर देते हैं और उसपर प्रभु राम का नाम लिखवा लेते हैं.
कहा जाता है कि इस जनजाति के लोगों ने 1890 के दशक में शरीर पर राम का नाम लिखवाना शुरू किया था. रामनामी जनजाति की स्थापना की श्रेय परशुराम को जाता है. रामनामी जनजाति के लोग भगवान श्रीराम में अटूट श्रद्धा रखते हैं. माना जाता है कि भारत में रामनामी जनजाति के करीब 1 लाख लोग रहते हैं.
हालांकि, रामनामी जनजाति के लोग भारत में कहां-कहां रहते हैं, इसका कोई आधिकारिक डेटा तो नहीं है. लेकिन यह छत्तीसगढ़ में महानदी नदी के किनारे बसे हैं. इसके अलावा रामनामी जनजाति के कुछ लोग ओडिशा और महाराष्ट्र में भी हैं.
रामनामी जनजाति के लोगों के पहनावे की बात करें तो ये लोग पूरी बॉडी पर राम नाम लिखवाने के साथ ही राम नाम की शॉल या कपड़ा भी ओढ़े रहते हैं. इसके अलावा रामनामी जनजाति के लोग मोर पंख से बना मुकुट भी अपने सिर पर पहने हुए दिख जाते हैं. ये लोग कभी सिगरेट-शराब नहीं पीते हैं. इससे परहेज करते हैं.
गौरतलब है कि रामनामी जनजाति के लोगों के अपने पूरे शरीर पर भगवान के नाम को लिखवाने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है. रिपोर्ट के मुताबिक, परशुराम ने ही अपनी जनजाति में शरीर पर राम नाम लिखवाने की शुरुआत की थी. दावा किया जाता है कि उन्हें मंदिर में जाने से रोका गया था. तब उन्होंने ऐसा किया था. एक दूसरे दावे में बताया गया कि अपनी जनजाति के हिंदू धर्म से दूर होता देख परशुराम ने ऐसा किया था. वहीं, एक अन्य दावे में कहा जाता है कि रामनामी जनजाति 1890 से भी पुरानी है. मुगलों ने जब इस जनजाति के लोगों को भगवान राम से अलग करने की कोशिश की थी तो उन्होंने अपने पूरे शरीर पर प्रभु श्रीराम का नाम लिखवा लिया था.
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