संतान की मंगलकामना के लिए इस दिन रखें अहोई अष्टमी का व्रत, जानिए जरूरी नियम
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संतान की मंगलकामना के लिए इस दिन रखें अहोई अष्टमी का व्रत, जानिए जरूरी नियम

अपनी संतान की मंगलकामना और लंबी उम्र के लिए रखा जाने वाला अहोई अष्टमी (Ahoi Ashtami) व्रत इस वर्ष 8 नवंबर, रविवार को है. इस दिन माताएं पूरे विधि-विधान से अपने बच्चों के लिए व्रत रखकर पूजा करती हैं. इस व्रत का संबंध एक पौराणिक कथा से है, जिसे इसी दिन सुना व सुनाया जाता है.

अहोई अष्टमी व्रत

नई दिल्ली: अहोई (Ahoi), अनहोनी शब्द का अपभ्रंश है. अनहोनी को टालने वाली माता देवी पार्वती हैं. इसलिए इस दिन मां पार्वती की पूजा-अर्चना का भी विधान है. अपनी संतानों की दीर्घायु और अनहोनी से रक्षा के लिए महिलाएं ये व्रत रखकर साही माता एवं भगवती पार्वती से आशीष मांगती हैं.

  1. इस साल 8 नवंबर, रविवार को अहोई अष्टमी का व्रत है
  2. इस दिन माताएं अपने बच्चों की दीर्घायु के लिए व्रत रखती हैं
  3. इस व्रत का संबंध एक बेहद पौराणिक कथा से है

किस दिन है अहोई अष्टमी
अहोई अष्टमी (Ahoi Ashtami) का व्रत करवा चौथ (Karwa Chauth) के चार दिन बाद और दीपावली (Deepawali) से 8 दिन पहले होता है. कार्तिक मास की आठवीं तिथि को पड़ने के कारण इसे अहोई आठे भी कहा जाता है. कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को माताएं अपने वंश के संचालक पुत्र अथवा पुत्री की दीर्घायु व प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए यह व्रत रखती हैं. इस दिन महिलाएं अहोई माता का व्रत रखती हैं और विधि-विधान से पूजा-अर्चना करती हैं.

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क्यों रखें अहोई अष्टमी का व्रत
यह व्रत संतान के खुशहाल और दीर्घायु जीवन के लिए रखा जाता है. इससे संतान के जीवन में संकटों और कष्टों से रक्षा होती है. अहोई अष्टमी का व्रत महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण होता है. अपनी संतान की मंगलकामना के लिए वे अष्टमी तिथि के दिन निर्जला व्रत रखती हैं. मुख्यत: शाम के समय में अहोई माता की पूजा की जाती है. फिर रात्रि के समय तारों को करवे से अर्घ्य देती हैं और उनकी आरती करती हैं. इसके बाद वे संतान के हाथों से जल ग्रहण करके व्रत का समापन करती हैं.

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पौराणिक मान्यता है कि अहोई अष्टमी के दिन व्रत रखने से संतान के कष्टों का निवारण होता है एवं उनके जीवन में सुख-समृद्धि व तरक्की आती है. ऐसा माना जाता है कि जिन माताओं की संतान को शारीरिक कष्ट हो, स्वास्थ्य ठीक न रहता हो या बार-बार बीमार पड़ते हों अथवा किसी भी कारण से माता-पिता को अपनी संतान की ओर से चिंता बनी रहती हो तो माता द्वारा विधि-विधान से अहोई माता की पूजा-अर्चना व व्रत करने से संतान को विशेष लाभ होता है.

अहोई अष्टमी मुहूर्त:
रविवार 8 नवंबर- शाम 5.26 बजे से शाम 6.46 बजे तक
अवधि- 1 घंटा 19 मिनट
अष्टमी तिथि आरंभ- 8 नवंबर, सुबह 7.28 बजे से

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ऐसे करें अहोई अष्टमी की पूजा
व्रत के दिन प्रात: उठकर स्नान किया जाता है और पूजा के समय ही संकल्प लिया जाता है कि “हे अहोई माता, मैं अपने पुत्र की लंबी आयु एवं सुखमय जीवन हेतु अहोई व्रत कर रही हूं. अहोई माता मेरे पुत्रों को दीर्घायु, स्वस्थ एवं सुखी रखें।” अनहोनी से बचाने वाली माता देवी पार्वती हैं इसलिए इस व्रत में माता पर्वती की पूजा की जाती है. अहोई माता की पूजा के लिए गेरू से दीवार पर अहोई माता का चित्र बनाया जाता है और साथ ही स्याहु और उसके सात पुत्रों का चित्र भी निर्मित किया जाता है. माता जी के सामने चावल की कटोरी, मूली, सिंघाड़े रखते हैं और सुबह दिया रखकर कहानी कही जाती है.

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कहानी कहते समय जो चावल हाथ में लिए जाते हैं, उन्हें साड़ी/ सूट के दुप्पटे में बांध लेते हैं. सुबह पूजा करते समय लोटे में पानी और उसके ऊपर करवे में पानी रखते हैं. ध्यान रखें कि यह करवा, करवा चौथ में इस्तेमाल हुआ होना चाहिए. इस करवे का पानी दिवाली के दिन पूरे घर में भी छिड़का जाता है. संध्या काल में इन चित्रों की पूजा की जाती है. पके खाने में चौदह पूरी और आठ पूयों का भोग अहोई माता को लगाया जाता है. उस दिन बयाना निकाला जाता है. बयाने में चौदह पूरी या मठरी या काज होते हैं. लोटे का पानी शाम को चावल के साथ तारों को आर्ध किया जाता है.

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अहोई पूजा में एक अन्य विधान यह भी है कि चांदी की अहोई बनाई जाती है, जिसे स्याहु कहते हैं. इस स्याहु की पूजा रोली, अक्षत, दूध व भात से की जाती है. पूजा चाहे आप जिस विधि से करें लेकिन दोनों में ही पूजा के लिए एक कलश में जल भर कर रख लें. पूजा के बाद अहोई माता की कथा सुनें और सुनाएं. पूजा के पश्चात अपनी सास के पैर छूएं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें. इसके पश्चात व्रती अन्न-जल ग्रहण करती है.

अहोई अष्टमी की कथा
प्राचीन समय में किसी नगर में एक साहूकार रहता था. उसके सात लड़के थे. दीपावली से पूर्व साहूकार की स्त्री घर की लीपा-पोती हेतु मिट्टी लेने खदान में गई और कुदाल से मिट्टी खोदने लगी. उसी जगह एक सेह की मांद थी. सहसा उस स्त्री के हाथ से कुदाल सेह के बच्चे को लग गई जिससे सेह का बच्चा तत्काल मर  गया. अपने हाथ से हुई ह्त्या को लेकर साहूकार की पत्नी को बहुत दुःख हुआ परन्तु अब क्या हो सकता था. वह शोकाकुल पश्चाताप करती हुई अपने घर लौट आई. कुछ दिनों बाद उसके बेटे का निधन हो गया. फिर अचानक दूसरा, तीसरा ओर इस प्रकार वर्ष भर में उसके सातों बेटे मर गए. महिला अत्यंत व्यथित रहने लगी.

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एक दिन उसने अपने आस-पड़ोस की महिलाओं को विलाप करते हुए बताया कि उसने जान-बूझकर कभी कोई पाप नही किया। हां, एक बार खदान में मिट्टी खोदते हुए अनजाने में उससे एक सेह के बच्चे की ह्त्या अवश्य हुई है और उसके बाद ही उसके सातों पुत्रों की मृत्यु हो गई. यह सुनकर औरतों ने साहूकार की पत्नी को दिलासा देते हुए कहा कि यह बात बताकर तुमने जो पश्चाताप किया है, उससे तुम्हारा आधा पाप नष्ट हो गया है. तुम उसी अष्टमी को भगवती पार्वती की शरण लेकर सेह ओर सेह के बच्चों का चित्र बनाकर उनकी आराधना करो और क्षमा-याचना करो. ईश्वर की कृपा से तुम्हारा पाप नष्ट हो जाएगा.

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साहूकार की पत्नी ने उनकी बात मानकर कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को उपवास व पूजा-याचना की. वह हर वर्ष नियमित रूप से ऐसा करने लगी. बाद में उसे सात पुत्रों की प्राप्ति हुई, तभी से अहोई व्रत की परम्परा प्रचलित हो गई. इस कथा से अहिंसा की प्रेरणा भी मिलती है.

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