सनातन परंपरा में दान का बहुत महत्व है. अलग-अलग इच्छाओं को पूरा करने से लेकर कुछ रस्मोरिवाजों और दोषों, पापों आदि को दूर करने तक के लिए हम अन्नदान, अंगदान, वस्त्रदान, द्रव्यदान, पुस्तकदान आदि करते हैं. तमाम चीजों के लिए दिए जाने वाले दान का एक आधार होता है.
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नई दिल्ली: सनातन परंपरा में दान का बहुत महत्व है. अलग-अलग इच्छाओं को पूरा करने से लेकर कुछ रस्मोरिवाजों और दोषों, पापों आदि को दूर करने तक के लिए हम अन्नदान, अंगदान, वस्त्रदान, द्रव्यदान, पुस्तकदान आदि करते हैं. तमाम चीजों के लिए दिए जाने वाले दान का एक आधार होता है. व्रत, पर्व, ऋतु और महीनों के अपने अलग-अलग दान होते हैं.
दान में बिल्कुल न करें अभिमान
दान हमेशा विनम्रता के साथ करना चाहिए. कभी भी अभिमान करते हुए या किसी को एहसास कराकर दान नहीं करना चाहिए. हमें सदैव इस भावना से दान करना चाहिए कि हम ईश्वर से मिली हुई चीज को उसी ईश्वर को अर्पण कर रहे हैं. ध्यान रहे कि बगैर श्रद्धा और विश्वास के दिया गया दान निरर्थक होता है. मेहनत और ईमानदारी से कमाए गए धन या फिर उससे खरीदी गई वस्तु का दान पूरी तरह से फलित होकर सुख-समृद्धि देने वाला और जीवन से जुड़े दोषों को दूर करने वाला होता है.
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आश्विन मास का दान
प्रकृति के अनुसार तमाम ऋतुओं और महीनों के अपने विशेष दान होते हैं. बात करें आश्विन (Ashwin) महीने की तो इसमें कन्या के सूर्य में प्रतिदिन अपनी क्षमता के अनुसार निम्न चीजों का दान करना चाहिए.
1. तिल और घी का दान करना फलदायी माना जाता है.
2. आश्विन माह के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक पितरों से जुड़ा पितृ पक्ष (Pitra Paksh) होता है. इसमें अपने पितरों के निमित्त पिण्डदान करना चाहिए.
3. आश्विन माह के दौरान पड़ने वाले पितृ पक्ष में अपने माता-पिता और पूर्वजों की पुण्य तिथि पर योग्य ब्राह्मण को बुलाकर भोजन कराना चाहिए.
4. यदि इस कोरोना काल में ब्राह्मण भोजन के लिए उपलब्ध न हो पाएं तो उन्हें भोजन बनाने संबंधी खाद्य पदार्थ एवं वस्त्र आदि का दान करना चाहिए.
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5. आश्विन माह में इन सभी दान से प्रसन्न होकर पितर आशीर्वाद देते हैं, जिससे सुख-समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है.
6. आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से लेकर नवमी तिथि तक शारदीय नवरात्र (Navratri) का महापर्व मनाया जाता है. इस दौरान न सिर्फ शक्ति की साधना, उपासना, जप, हवन आदि का महत्व है बल्कि दान अत्यंत पुण्यदायी है. नवरात्र के दौरान कुंवारी कन्याओं को धन, वस्त्र, भोजन, फल, मिष्ठान आदि का दान देने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.
अधिमास का दान
इस साल अधिमास (Adhi Maas) भी पड़ रहा है, जिसे पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है. यह मास भगवान विष्णु को समर्पित है. अधिमास में विशेष रूप से पुआ बनाकर दान करने का अत्यंत महत्व है.