पुरातत्व विशेषज्ञ मानते हैं कि यहां एक समय विशाल मंदिर हुआ करता था, जिसका निर्माण पहली शताब्दी के शुरू में सरभपुरिया राजाओं द्वारा किया गया था.
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नई दिल्ली: देश के कोने-कोने में महादेव का वास है और उनके प्रसिद्ध मंदिरों में सालभर भक्तों का तांता लगा रहता है. बहुत कम लोग जानते हैं कि भगवान शिव के बहुत सारे मंदिर ऐसे भी हैं जिनकी खोज पुरातत्व विभाग के लोगों ने की है. छत्तीसगढ़ के महासमुंद में ऐसा ही एक शिव मंदिर है जिसे गंधेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है. इतिहास के जानकारों की मानें तो गंधेश्वर मंदिर में मौजूद का शिविलंग लगभग 2 हजार साल पुरानर है और इसकी सबसे खास बात ये है कि शिवलिंग से तुलसी के पत्तों सी खुशबू आती है. वहीं एक तथ्य ये भी है कि गंधेश्वर शिवलिंग द्वादश ज्योतिर्लिंगों वाले पत्थर से बना हुआ है.
पुरातत्व विशेषज्ञ मानते हैं कि यहां एक समय विशाल मंदिर हुआ करता था, जिसका निर्माण पहली शताब्दी के शुरू में सरभपुरिया राजाओं द्वारा किया गया था. 12वीं सदी में आए विनाशकारी भूकंप और बाद में चित्रोत्पला महानदी की बाढ़ में यह विशाल मंदिर तबाह हो गया. इतनी तबाही के बाद भी यह शिवलिंग सुरक्षित बच गया था. इस स्थान पर पुरातत्व विभाग पिछले कई सालों से खुदाई करा रहा है. यहां अब तक कई छोटे-बड़े शिवलिंग निकल चुके हैं.
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विशेषज्ञ मानते हैं कि मंदिर की जमीन के नीचे एक पूरी सभ्यता का इतिहास दफन है. विनाशकारी भूकम्प और बाढ़ की वजह से रेत और मिट्टी की परतें इलाके को दबाती चलीं गईं. पिछले साल हुई खुदाई में यहां से सिक्के, प्रतिमाएं, ताम्रपत्र, बर्तन, शिलालेख आदि मिले हैं. माना जाता है कि यहां से करीब 2 हजार साल पुरानी चीजें मिल रही हैं, जो पुरातत्व के लिहाज से अनमोहल धरोहर हैं.