Ganpati Visarjan: बप्पा को श्रद्धा, आस्था और विश्वास के साथ करते हैं स्थापित, जानें क्यों करते हैं 10 दिन बाद विसर्जित?
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Ganpati Visarjan: बप्पा को श्रद्धा, आस्था और विश्वास के साथ करते हैं स्थापित, जानें क्यों करते हैं 10 दिन बाद विसर्जित?

Anant Chaturdashi: गणपति बप्पा को स्थापना के 10 दिन बाद विसर्जित किया जाता है. गणपति विसर्जन क्यों किया जाता है, इसकी जानकारी कम ही लोगों को होगी. ऐसे में आइए जानते हैं कि गणपति विसर्जन के पीछे क्या है मान्यता.

 

भगवान गणेश

Ganpati Bappa Morya: जिन गणपति को हम श्रद्धा, आस्था, विश्वास और प्यार के साथ स्थापित करते हैं, उनका विसर्जन भी गणेश उत्सव का एक अभिन्न अंग है, जिसके बिना गणेश उत्सव पूर्ण नहीं होता. भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश जी की प्रतिमा की स्थापना की जाती है और 10 दिन बाद अनंत चतुर्दशी को उसी गणेश प्रतिमा के विसर्जन के साथ इस गणेश उत्सव का समापन होता है. लगभग हर  व्यक्ति यह तो जानता है कि गणेश चतुर्थी को स्थापित की जाने वाली गणपति प्रतिमा को ग्यारहवें दिन यानी अनंत चतुर्दशी के दिन किसी बहती नदी, तालाब या समुद्र में विसर्जित भी किया जाता है, लेकिन बहुत कम लोग इस बात को जानते हैं कि आखिर गणपति विसर्जन क्‍यों किया जाता है. इस लेख में पढ़िए विसर्जन क्यों आवश्यक है.

साकार से निराकार रूप की यात्रा है स्थापना से विसर्जन 

गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणपति को सगुण साकार रूप में स्थापना के लिए प्रतिमा की विभिन्न प्रकार से पूजा-अर्चना, आराधना, पाठ करते हुए आह्वान किया जाता है. ये माना जाता है कि भगवान गणपति चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक सगुण साकार रूप में इसी मूर्ति में स्थापित रहते हैं. मान्‍यता है कि इस उत्सव के दौरान लोग जिस किसी भी इच्‍छा की पूर्ति करवाना चाहते हैं, वे अपनी इच्छाएं भगवान गणपति के कानों में कह देते हैं. फिर अंत में भगवान की इस मूर्ति को चतुर्दशी के दिन बहते जल, नदी, तालाब या समुद्र में विसर्जित कर दिया जाता है, ताकि भगवान गणपति इस भूलोक की सगुण साकार मूर्ति से मुक्त होकर निर्गुण निराकार रूप में देवलोक जा सके और देवलोक के विभिन्‍न देवताओं को भूलोक के लोगों द्वारा की गई प्रार्थनाएं बताकर लोगों की इच्छापूर्ति करा सकें.

गणेश के शरीर का तापमान कम करने को व्यास जी ने लगवाई थी कुंड में डुबकी  

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार श्री वेदव्यास जी ने महाभारत की कथा भगवान गणेश जी को गणेश चतुर्थी से लेकर अनंत चतुर्दशी तक लगातार 10 दिन सुनाई थी. यह कथा जब वेदव्यास जी सुना रहे थे, तब उन्‍होंने अपनी आखें बंद कर रखी थीं, इसलिए उन्‍हें पता ही नहीं चला कि कथा सुनने का ग‍णेश जी पर क्‍या प्रभाव पड़ रहा है. जब वेद व्‍यास जी ने कथा पूरी कर अपनी आंखें खोलीं तो देखा कि लगातार 10 दिन तक कथा यानी ज्ञान की बातें सुनते-सुनते गणेश जी का तापमान बहुत अधिक बढ गया है, उन्‍हें ज्‍वर हो गया था.  ऐसे में व्यास जी ने गणेश जी को निकट के कुंड में ले जाकर डुबकी लगवाई, जिससे उनके शरीर का तापमान कम हुआ. इसलिए मान्‍यता है कि गणेश स्थापना के बाद से अगले 10 दिनों तक भगवान गणपति लोगों की इच्‍छाएं सुनते-सुनते उनका तापमान इतना अधिक हो जाता है कि चतुर्दशी को बहते जल, तालाब या समुद्र में विसर्जित करके उन्हें फिर से शीतल किया जाता है.

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