कोरोना के चलते गोवर्धन परिक्रमा की हजारों वर्षों की परंपरा टूट गई.
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मथुरा: सनातन परंपरा में गोवर्धन पूजा और उनकी परिक्रमा का बहुत महत्व है. मान्यता है कि मथुरा में गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और मनुष्य जीवन-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है. हर साल आषाढ़ मास की पूर्णिमा पर यहां पर पांच दिवसीय मेला लगता है. इसे स्थानीय स्तर पर मुड़िया पूनो मेला कहा जाता है. मिनी कुंभ के नाम से प्रसिद्ध मेला देवशयनी एकादशी से शुरु होकर पूर्णिमा तक चलता है.
भगवान कृष्ण के स्वरूप हैं गिरिराज
गिरिराज को भगवान श्रीकृष्ण का स्वरूप माना जाता है ओर मुड़िया मेला के दौरान उनकी परिक्रमा की जाती है. गिरिराज वही पर्वत हैं जिसे भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी अंगुली पर उठा लिया था. जान लें कि जब गोकुलवासियों ने इंद्र की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करने का निश्चय किया तो इंद्र देव ने गोकुल में मूसलाधार बारिश शुरू करवा दी थी. जिसके बाद गोकुलवासियों को बचाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली से उठा लिया था. जिसके बाद सभी गोकुलवासी उसके नीचे आ गए और अंत में इंद्र का घमंड टूटा और उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से माफी मांगी थी.
कोरोना के चलते टूटी परिक्रमा की परंपरा
गिरिराज के देश-विदेश में करोड़ो भक्त हैं. गिरिराज के प्रति कुछ लोगों में इतनी आस्था है कि वे इस 21 किमी लंबे मार्ग की दंडवत परिक्रमा करते हैं. इस साल यह मुड़िया मेला 01 से 05 जुलाई को लगना था लेकिन कोरोना जैसी महामारी के चलते इसे निरस्त कर दिया गया. प्रशासन और संतों का मानना था कि मेले में आने वाली भीड़ के चलते संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ सकता था. ऐसे में लोगों को अपने घरों में रहकर गिरिराज की पूजा करने का आह्वान किया गया है.
गुरु के प्रति समर्पण का प्रतीक है मुड़िया मेला
मुड़िया मेला गुरु-शिष्य परंपरा का प्रतीक है. जिसमें संतजन अपने गुरु की याद में अपना मुंडन करवाते हैं. मान्यता है कि लगभग 500 साल पहले मथुरा के संतो ने अपने गुरु श्री पाद सनातन गोस्वामी की याद में अपना सिर मुंडन करवाकर 5 दिन की शोभा यात्रा निकाली थी. वल्लभ सम्प्रदाय से जुड़े वैष्णवमार्गी लोग अपने जीवनकाल में इस पवित्र पर्वत की कम से कम एक बार परिक्रमा अवश्य ही करते हैं. जिसके बाद से आज तक यह परंपरा चली आ रही थी लेकिन कोरोना महामारी के चलते इस बार ये यात्रा संभव ना हो सकी है.
कई पावन तीर्थों का है वास
गिरिराज की परिक्रमा मार्ग में कई प्रमुख स्थल पड़ते हैं. जिनमें गोविंद कुंड, पूंछरी का लौठा, जतिपुरा, कुसुम सरोवर, मानसी गंगा, दानघाटी, राधाकुंड आदि हैं. इन प्रमुख स्थानों में से एक राधाकुंड से तकरीबन तीन किमी दूरी पर गोवर्धन पर्वत है. जबकि मानसी गंगा पर गिरिराज का मुखारविंद है, जहां पर भक्त उनका विशेष पूजन करते हैं. गिरिराज की परिक्रमा जहां से शुरु होती है, वहीं पर एक प्रसिद्ध मंदिर है, जिसे दानघाटी मंदिर कहा जाता है. मान्यता है कि जो व्यक्ति अपने में पवित्र भाव से किसी मनोकामना को रखकर गिरिराज की परिक्रमा करता है, उसकी वह मनोकामना जरूर पूरी होती है.