तन, मन और जीवन से जुड़े जल (Water) की महत्ता सभी धर्मों में बताई गई है ताकि देवता या अमृत स्वरूप इस अमृत तत्व को सहेज कर रखा जाए. आइए जानते हैं कि आखिर जल हमारी पूजा, साधना और इबादत से किस प्रकार जुड़ा है.
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नई दिल्ली: तन, मन और जीवन से जुड़े जल (Water) की महत्ता सभी धर्मों में बताई गई है ताकि देवता या अमृत स्वरूप इस अमृत तत्व को सहेज कर रखा जाए. पृथ्वी का लगभग 71 प्रतिशत हिस्सा जल से ढका हुआ है और इसमें से लगभग तीन प्रतिशत पानी ही पीने लायक है. मानव शरीर का एक बड़ा हिस्सा भी जल ही होता है. ऐसे में हमारे जीवन के लिए जल कितना महत्वपूर्ण है, शायद इसे बताने की जरूरत नहीं रह जाती है. जल की इसी महत्ता को समझते हुए लगभग सभी धर्मों में प्रकृति के इस अनमोल उपहार को संजोकर रखने की बात बताई गई है. प्राचीन ऋषियों और गुरुओं ने इसे धर्म से जोड़ दिया. आइए जानते हैं कि आखिर जल हमारी पूजा, साधना और इबादत से किस प्रकार जुड़ा है.
सनातन परंपरा में जल
सनातन (Sanatan) परंपरा के अनुसार, पंचभूत तत्वों में से एक जल को देवता के रूप में स्वीकार किया गया है. सदियों से जल हमारी संस्कृति, परंपरा और साधना का अहम हिस्सा रहा है. सनातन परंपरा में सबसे ज्यादा पवित्र माने जाने वाले गंगाजल (Gangajal) को अमृत के रूप में स्वीकार किया गया है. सनातन परंपरा में तो जीवन की शुरुआत से लेकर जीवन के अंत तक यह गंगाजल जुड़ा रहता है.
सिख परंपरा में जल
सिख (Sikh) धर्म में भी जल को अत्यंत पवित्र माना गया है. यही कारण है कि अमूमन गुरुद्वारों में बावणी ओर सरोवर देखने को मिल जाते हैं. गौरतलब है कि गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने पंज प्यारों के लिए जो अमृत तैयार किया था, उसमें से एक जल भी था. गुरुनानक जी के अनुसार, जीवन में जल ही सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण बताया गया है क्योंकि सब कुछ इसी से चलता है.
इस्लाम में जल
इस्लाम (Islam) में भी जल को अत्यधिक पाक (पवित्र) माना गया है. आब-ए-जमजम वह पवित्र जल है, जिसे प्रत्येक हज करने वाला बड़ी श्रद्धा के साथ पीता है. इस्लाम में पानी को अल्लाह की बेमिसाल रहमत माना गया है. मक्का-मदीना की यात्रा करने वाला हज यात्री जब अपने घरों को लौटता है तो वह अपने साथ आब-ए-जमजम जरूर लेकर जाता है. इसे वह अपने घर में बड़ी पवित्रता के साथ रखता है और पूरे घर में छिड़कता है.
ईसाई धर्म में जल
विभिन्न धर्मों की तरह ईसाई (Christian) धर्म में भी जल के बहुत मायने हैं. ईसाई धर्म (Christianity) में ईश्वर की प्रार्थना में जल का प्रयोग विशेष रूप होता है. शिशुओं के लिए बप्तिस्मा (Baptism) नामक किया जाने वाला संस्कार इसी जल के माध्यम से किया जाता है. ईसाई धर्म में होली वॉटर की जो परंपरा है, वह किसी भी चर्च में जाने पर उपल्ब्ध होती है. इस पवित्र जल को लोग अपने माथे से लगाते हैं और अपने ऊपर छिड़कते हैं.