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Laddu Gopal Namkaran story: पूरे भारत में जन्माष्टमी का त्योहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. भगवान श्री कृष्ण ने इसी दिन कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को बीच रात में रोहिणी नक्षत्र में जन्म लिया था. जन्माष्टमी का उत्सव हर साल भादो महीने में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाते हैं. वहीं इस साल यह उत्सव दो दिन (6-7 सितंबर) मनाया जाएगा. इस दिन का भक्तों को बेसब्री से इंतजार रहता है. जन्माष्टमी के दिन भक्त कान्हा को पूरे साज सज्जा के साथ तैयार करते हैं और उन्हें पालकी में बैठाते हैं.
जन्माष्टमी के दिन भगवान श्री कृष्ण ने जन्म तो लिया था पर इसके छह दिन के बाद उनका नामकरण किया जाता है. श्री कृष्ण को एक दो नहीं बल्कि कई नामों से जाना जाता है. जिसमें से एक नाम लड्डू गोपाल के पीछे बड़ी ही रोचक कहानी है. आइए इस कहानी के बारे में जानें.
क्यों कहते हैं श्री कृष्ण को लड्डू गोपाल
भगवान श्रीकृष्ण की ब्रज भूमि में उनका एक भक्त रहता था, जिसका नाम कुंभनदास जी था. कुंभनदास का एक पुत्र था, जिसका नाम था रघुनंदन. कुंभनदास भगवान श्रीकृष्ण की मुरलीधर के रूप की नित दिन पूजा किया करते थे. वह हर वक्त उनकी भक्ती में लीन रहते. साथ ही नियम से उनकी सेवा करते थे. यहां तक उनकी भक्ति और सेवा में कोई कमी ना रह जाए इसलिए वह शहर से कहीं बाहर भी नहीं जाते थे.
फिर एक बार उन्हें वृंदावन से भागवत कथा के लिए न्योता आया पर उन्होंने मना कर दिया. पर कुछ लोगों के जोर देने पर वह जाने के लिए इस बात पर तैयार हो गए कि वह हर दिन श्रीकृष्ण की सेवा करने के लिए वापस आ जाएंगे लेकिन उनके पीछे भगवान श्रीकृष्ण की सेवा में कोई कमी ना रह जाए इसके लिए कुंभनदास ने अपने बेटे को समझा दिया कि वह जो भोग भगवान को लगाते हैं वह तैयार कर दिया है तुम समय पर उसे श्रीकृष्ण जी को लगा देना.
इसलिए धारण किया ठाकुर जी ने बाल रूप
रघुनंदन ने अपने पिता की बात मानते हुए समय पर ठाकुरजी के सामने भोग की थाली रख दी और उनसे कहा कि आप भोग ग्रहण करें. दरअसल रघुनंदन भी एक बच्चे थे इसलिए उनके मन में यह ख्याल आया कि श्रीकृष्ण जी खुद आकर भोग अपने हाथों से खाएंगे. रघुनंदन ने बार बार भगवान से आग्रह किया कि वह आकर भोग ग्रहण करें. जिसके बाद वह उदास हो गए. इसके बाद ठाकुर जी ने बाल रूप धारण कर भोजन करने बैठ गए, जिसके बाद रघुनंदन बहुत खुश हो गए.
जब ठाकुर जी ने खा लिया पूरा प्रसाद
रात को कुंभनदास जी वापस जब घर आए तो उन्होंने अपने बेटे से पूछा कि क्या तुमने ठाकुरजी को भोग लगाया था! उन्होंने कहा हां, फिर कुंभनदास ने कहा लाओ प्रसाद दो तो रघुनंदन ने कहा वह तो पूरा खत्म हो गया है, ठाकुर जी ने पूरा प्रसाद खा लिया. कुंभनदास हैरान हो कर सोचने लगे कि जरूर रघुनंदन को भूख लगी होगी तो वह खुद पूरा प्रसाद खा गया होगा. यह घटना रोज घटने लगी. जिसके बाद उन्हें लगा उनका बेटा झूठ बोलना सीख गया है. जिसके बाद कुंभनदास ने एक दिन भोग तैयार किया और वह सारी घटना को छिप कर देखने लगे कि रघुनंदन उनके पीठ पीछे उस प्रसाद का क्या करता है.
रघुनंदन ने भी रोज की तरह ठाकुरजी को पुकारा जिसके बाद वह बालक रूप में आकर लड्डू खाने लगे. जिसके बाद कुंभनदास दौड़ कर उनके सामने उनके चरणों में आ कर गिर गए. इस दौरान ठाकुर जी के एक हाथ में लड्डू था और दूसरे हाथ का लड्डू उनके मुख में जाने ही वाला था कि वह उसी समय वह मूर्ति बन गए. इसके बाद से ही उनका नाम लड्डू गोपाल पड़ गया और इस रूप में पूरा जग उनकी पूजा करने लगा.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)