Khatu Shayam Baba: खाटू श्याम बाबा को क्यों माना जाता है हारे का सहारा, देश-विदेश से लोग लेकर आते हैं फरियाद
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Khatu Shayam Baba: खाटू श्याम बाबा को क्यों माना जाता है हारे का सहारा, देश-विदेश से लोग लेकर आते हैं फरियाद

Baba Khatu Shyam mystry:राजस्थान के सीकर जीले में स्थित खाटू श्याम के मंदिर में लोगों की बड़ी आस्था है. मान्यता है कि खाटू श्याम को भगवान श्री कृष्ण का कलयुगी अवतार माना जाता है. खाटू श्याम के एक नहीं बल्कि कई नाम हैं, जिनके पीछे कई रोचक तथ्य छीपे हुए हैं.

 

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Facts about Khatu Shyam Ji: राजस्थान के सीकर जिले में खाटू श्याम का मंदिर भक्तों के बीच लोकप्रिय हो रखा है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार खाटू श्याम कलयुग में भगवान श्री कृष्ण के ही अवतार माने जाते हैं. यहां पर लोग देश विदेश से अपनी मुराद लेकर आते हैं. 

खाटू श्याम के केवल एक नहीं बल्कि कई नाम हैं जैसे तीन बाण धारी, शीश के दानी और हारे का सहारा. आइए विस्तार में जानते हैं कि आखिर इनके इन नामों के पीछे कौन कौन से रोचक तथ्य छिपे हुए हैं!

जानें कौन है खाटू श्याम

बता दें कि खाटू श्याम कोई और नहीं बल्कि पांडवों में से भीम के पोते घटोत्कच के पूत्र हैं. इनका असली नाम बर्बरीक है. बर्बरीक में बचपन से ही एक वीर योद्धा गुण छिपा हुआ था. 

हारे का सहारा के पीछे का रोचक तथ्य

खाटू श्याम को हारे का सहारा इसलिए कहते हैं क्योंकि बर्बरीक ने अपनी माता से आज्ञा मांग कर महाभारत के युद्ध में हिस्सा लिया था. तब उनकी मां को यह आभास हो रहा था कि कौरवों की सेना अधिक होने की वजह से पांडव युद्ध हार सकते हैं. ऐसे में बर्बरीक की मां ने उन्हें युद्ध में हिस्सा लेने से पहले इस बात पर आज्ञा दी कि तुम मुझे वचन दो कि जो पक्ष युद्ध हार रहा होगा तुम उसी का साथ दोगे. यही वजह है कि खाटू श्याम को हारे का सहारा माना जाता है. 

ये है अन्य नाम के पीछे के तथ्य

खाटू श्याम को तीन बाण धारी इसलिए कहते हैं कि क्योंकि बर्बरीक से प्रसन्न हो कर भगवान शिव ने उन्हें तीन अभेद्य बाण दिए थे. यही वजह है कि खाटू श्याम को तीन बाण धारी भी कहते हैं. इन तीन बाणों में इतनी ताकत है कि महाभारत का युद्ध एक बार में इनसे खत्म किया जा सकता था. वहीं खाटू श्याम को शीश का दानी इसलिए कहते हैं क्योंकि भगवान श्री कृष्ण को पता था कि कौरवों की हार पर बर्बरीक उनका साथ देने आएंगे, जिसके बाद पांडवों का हारना तय था. इसलिए भगवान श्री कृष्ण ने ब्राह्मण का रूप धर बर्बरीक से शीश दान में मांग लिया. बर्बरीक ने बिना सोचे अपनी तलवार निकाली और अपना सिर उनके चरणों में अर्पित कर दिया. इसलिए उन्हें शीश दानी भी कहते हैं. 

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.) 

 

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