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नई दिल्ली: भगवान कृष्ण (Lord Krishna) ने अपने जीवन का सबसे ज्यादा समय मथुरा, द्वारका में बिताया. यहां की गली-गली से उनकी लीलाएं जुड़ी हुईं हैं लेकिन इससे इतर एक जगह ऐसी भी है जहां कृष्ण का दिल आज भी मौजूद है. इस मंदिर से जुड़ी कृष्ण लीलाएं सोचने पर मजबूर करती हैं. पुरी (Puri) के इस जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Temple) में भाई बलदाऊ और बहन सुभद्रा के साथ मौजूद भगवान कृष्ण से जुड़े रहस्य समझ से परे हैं.
इस मंदिर से जुड़े रहस्य चमत्कारिक हैं. इस मंदिर के सामने आकर हवा का रुख बदल जाता है, ताकि करीब में हिलोरे लेते समुंदर की लहरों की आवाज मंदिर के अंदर न जा सके. प्रवेश द्वार से एक कदम अंदर रखते ही समुद्र की आवाज सुनाई देना बंद हो जाती है. इतना ही नहीं मंदिर का रोजाना बदला जाने वाला ध्वज भी हमेशा हवा से उलटी दिशा में लहराता है.
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कहते हैं कि जब भगवान कृष्ण ने देह त्यागी तो अंतिम संस्कार के बाद उनका पूरा शरीर तो पंचतत्व में विलीन हो गया, लेकिन दिल सामान्य इंसान की तरह धड़कता रहा. यह आज भी जगन्नाथ मंदिर की मूर्ति में मौजूद है. भगवान के इस हृदय अंश को ब्रह्म पदार्थ कहा जाता है. प्रत्येक 12 साल में जब जगन्नाथजी की मूर्ति बदली जाती है, तो इस ब्रह्म पदार्थ को पुरानी मूर्ति से निकालकर नई मूर्ति में रख दिया जाता है. हालांकि, ऐसा करते समय बहुत सावधानी बरती जाती है.
ब्रह्म पदार्थ को नई मूर्ति में रखने के दिन पूरे पुरी शहर में ब्लैक आउट कर दिया जाता है. पूरे शहर में कहीं भी एक दीया भी नहीं जलाया जाता है. इस दौरान मंदिर परिसर को सीआरपीएफ घेर लेती है. यहां तक की मूर्ति बदलते समय पुजारी की आंखों पर भी पट्टी बांध दी जाती है. इस प्रक्रिया को आज तक किसी ने नहीं देखा है. मान्यता है कि यदि इसे कोई देख ले तो उसकी तत्काल मृत्यु हो जाएगी. जानकारी के मुताबिक ब्रह्म पदार्थ को पुरानी से नई मूर्ति में रखने वाले पुजारियों का कहना है कि ब्रह्म पदार्थ हाथों में उछलता से महसूस होता है, जैसे कोई जीवित खरगोश हो.
इस मंदिर के ऊपर से हवाई जहाज, हेलीकॉटर उड़ाने की अनुमति नहीं है क्योंकि मंदिर के ऊपर कभी भी पक्षी उड़ते नहीं दिखाई दिए. इसके अलावा सूर्य किसी भी दिशा में रहे मंदिर की परछाई आज तक किसी ने नहीं देखी.
(नोट: इस लेख में दी गई सूचनाएं सामान्य जानकारी और मान्यताओं पर आधारित हैं. Zee News इनकी पुष्टि नहीं करता है.)