शक्ति की साधना का प्रमुख स्थान है मां विंध्यवासिनी का पावन धाम, जहां पर माता सशरीर अवतरित हुईं थीं. यहां पर माता अपने तीनों रूप यानी महासरस्वती, महालक्ष्मी और महाकाली के रूप में विराजमान हैं. यही कारण है कि इसे महाशक्तियों का त्रिकोण भी कहा जाता है.
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नई दिल्ली: नवरात्र में शक्ति के प्रमुख स्थलों में दर्शन एवं पूजन का विशेष महत्व है. देश के प्रमुख शक्ति स्थलों में उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में मां विंध्यवासिनी का पावन धाम स्थित है. शक्ति की साधना और आराधना में देवी के इस पावन मंदिर का अत्यधिक महत्व है. नवरात्र के दौरान इस पावन धाम पर देवी के भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है. मां विंध्यवासिनी का भव्य मंदिर गंगा नदी के किनारे विंध्याचल की पहाड़ियों पर बना है.
तीन रूपों में विराजमान हैं माता
मां विंध्यवासिनी का यह मंदिर देश के 108 सिद्धपीठों में से एक है. विंध्याचल पर्वत पर निवास करने वाली माता यहां पर सशरीर अवतरित हुई थीं. यहां पर माता अपने तीनों रूप यानी महासरस्वती, महालक्ष्मी और महाकाली के रूप में विराजमान हैं. यही कारण है कि इसे महाशक्तियों का त्रिकोण भी कहा जाता है. इस पावन विंध्य धाम में मां विंध्यवासिनी के साथ मां काली और अष्टभुजा का मंदिर है. इस त्रिकोण के बारे में मान्यता है कि यदि यहां पर आने वाला व्यक्ति तीनों देवी के दर्शन नहीं करे तो उसे उसकी साधना का संपूर्ण फल नहीं मिलता है.
काले पत्थर की है देवी की प्राचीन प्रतिमा
मौजूदा समय में मां विंध्यवासिनी का जहां पर पावन धाम है, वहां पर कभी बड़ा जंगल हुआ करता था, लेकिन आज यहां की तीर्थ यात्रा काफी सुगम है. काले रंग के पत्थर से निर्मित देवी की मूर्ति काफी प्राचीन मानी जाती है. मंदिर में माता का दिन भर में चार बार श्रृंगार और आरती की जाती है. मां विन्ध्यवासिनी की चार आरती — मंगला आरती, दरबार आरती, राजश्री आरती और देव आरती में शामिल होने से चार पुरुषार्थ धर्म, काम, अर्थ व मोक्ष की प्राप्ति होती है. नवरात्र के अवसर माता के मंदिर में दुर्गा सप्तशती के पाठ करने का विशेष महत्व है.
चमत्कारों से भरा है मां का दिव्य धाम
मां विंध्यवासिनी के मंदिर से जुड़ी मान्यता है कि औरंगजेब के समय में जब भारत के तमाम मंदिर को तुड़वाया जा रहा था, उस समय एक विचित्र घटना घटी थी. औरंगजेब की सेना जब मां विंध्यवासिनी के मंदिर को तोड़ने के लिए आगे बढ़ी तो न जाने कहां से बड़ी संख्या में भौरों ने उस पर हमला बोल दिया था. इसके बाद औरंगजेब की सेना ने मंदिर तोड़ने का ख्याल छोड़ आगे बढ़ गई थी.
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