सूर्य की ताकतों के सामने धार्मिक आस्था तो घुटने टेकती है लेकिन विज्ञान भी इसको सलाम करता है. आज इस खास रिपोर्ट में हम जानेंगे कि वो कौन सी शक्ति है, जो सूर्य को हमारी परंपरा में देवता बनाता है? ऐसा क्यों माना जाता कि खास तरीके से सूर्य की उपासना संतान प्राप्ति से लेकर असाध्य चर्म रोगों से मुक्ति दिलाता है?
Trending Photos
हमारी धरती पर उगता और डूबता सूर्य धार्मिक आस्था का बड़ा केन्द्र है. खासतौर पर चैत्र और कार्तिक महीने में. इन दोनों ही महीनों में सूर्य की उपासना 4 दिन के छठ व्रत के साथ पूरी होती है. ये वैसे तो देश के पूर्वी हिस्से में ज्यादा मनाया जाता है लेकिन आज की हमारी स्पेशल रिपोर्ट किसी खास त्योहार या व्रत के बारे में नहीं, बल्कि सूर्य की चमत्कारी शक्तियों के बारे में है. वो कौन सी शक्ति है, जो सूर्य को हमारी परंपरा में देवता बनाता है? ऐसा क्यों माना जाता कि खास तरीके से सूर्य की उपासना संतान प्राप्ति से लेकर असाध्य चर्म रोगों से मुक्ति दिलाता है? चलिए इस रिपोर्ट के जरिए समझते हैं सूर्य को लेकर आस्था के पीछे का पूरा विज्ञान.
ओलार मंदिर के रहस्य से हमारी जिज्ञासा सूर्य की रहस्यमयी शक्ति को लेकर बढ़ी, जिसका जिक्र हमारी धार्मिक परंपराओं में मिलता है. दरअसल देश में सूर्य के 12 आर्क मंदिर हैं. आर्क का मतलब हम सबने मैथ्स के ज्योमेट्री चैप्टर में पढ़ा है. ये वृत की परिधि पर मार्क किए गए हिस्से होते हैं. जानकारों के मुताबिक देश में सभी सूर्य मंदिरों का निर्माण, सूर्य की किरणों के आर्क यानी कोण के आधार पर कराया गया है. खगोलीय गणना के मुताबिक सूर्य मंदिरों के ये कोण इंसानों पर सूर्य की किरणों के बेहतर प्रभाव के अध्ययन के बाद तय किए गए.
13वीं शताब्दी यानी आज से करीब 800 साल पहले बनाए गए इस अद्भुत मंदिर के नाम में ही सूर्य का अर्क और कोण है, जिसकी वजह से इसे कोणार्क नाम दिया गया.
मंदिर के अन्दर सूर्य भगवान की मूर्ति को ऐसे रखा गया था कि उगते हुए सूर्य की पहली किरण उस पर आकर गिरती है. इस मंदिर को सूर्य देवता के रथ के आकार का बनाया गया है.
इसमें रथ में 12 जोड़ी पहिए हैं, जिसे 7 घोड़े खींचते हुए नजर आते हैं. ये 7 घोड़े 7 दिन के प्रतीक हैं. जबकि रथ के 12 पहिए साल के 12 महीनों के प्रतीक माने जाते हैं.
रथ के 12 में से चार पहियों को अब भी समय बताने के लिए धूपघड़ी की तरह इस्तेमाल किया जाता है. इसी आधार पर ये माना जाता है कि ये मंदिर सूर्य के साथ समय की गति को दर्शाता है.
कोणार्क मंदिर के बारे में ये मान्यता है कि कृष्ण के बेटे साम्ब ने कुष्ठ रोग से मुक्ति के लिए यहां भी 12 साल तक सूर्य की उपासना की थी. यही मान्यता बिहार के ओलार मंदिर की भी है.
ओलार मंदिर को पुराने समय में ओलार्क मंदिर कहा जाता था, जो देश के 12 आर्क सूर्य मंदिरों की कड़ी का हिस्सा है.
ओलार मंदिर में सूर्य की चमत्कारी शक्ति को समझने से पहले, हम आपको बताते हैं, देश के उन 12 आर्क मंदिरों के बारे में, जो सूर्य किरणों के खगोलीय कोण गणना के आधार पर निर्मित किए गए हैं.
पहला उड़ीसा का कोणार्क
दूसरा देव का देवार्क
तीसरा ओलार का ओलार्क
चौथा पंडारक का पुण्यार्क
पांचवा अंगरी का औंगार्क
छठा काशी का लोलार्क
सातवां सहरसा का मार्केण्डेयार्क
आठवां उत्तराखण्ड कटलार्क
नौवां बड़गांव का बालार्क
दसवां चंद्रभागा नदी किनारे चानार्क
ग्यारहवां चिनाव नदी किनारे आदित्यार्क
बारहवां पुष्पावती नदी किनारे मोढेरार्क
वैज्ञानिक अध्ययन के मुताबिक भी सूर्योदय के साथ जल में खड़े होकर सूर्य को जल अर्पित करना सबसे लाभकारी होता है. ओलार मंदिर के महंत भी ये बताते हैं, सूर्य उपासना के साथ संतान उत्पति की संभावना के पीछे सिर्फ आस्था नहीं, इसके पीछे लंबा अध्ययन है.
ये तो हुआ सूर्य चमत्कार के रहस्य का एक पहलू. दूसरा पहलू है कुष्ठ जैसे असाध्य चर्मरोग को ठीक करने में सूर्य शक्ति का प्रभाव. जैसा कि ओलार और कोणार्क के सूर्य मंदिरों के बारे में मान्यता है कि यहां श्रीकृष्ण के पुत्र राजा साम्ब सूर्य उपासना कुष्ठ रोग से मुक्त हुए थे. इस रहस्य की पड़ताल के दौरान हमने जाना ओलार के एक तलाब के बारे में, जिसके चमत्कारी पानी की शक्तियां हैरान करती हैं. ओलार के सूर्यमंदिर के सामने मौजूद एक तालाब अब छोटा सा बचा है, लेकिन इसके पानी की शक्तियां अब भी बेहद चमत्कारी मानी जाती हैं. यहां आया हर श्रद्धालु यही मानता है- इसमें स्नान से उन्हें चर्म रोगों से छुटकारा मिलता है.
तालाब के पानी में गंधक? इस रहस्य को समझने के दौरान हमें एक ऐसा तथ्य मिला, जिसे विज्ञान भी नकार नहीं सकता. मंदिर के पुजारी बताते हैं कि पानी में गंधक की इस मात्रा की जानकारी पुरातत्व विभाग के विशेषज्ञों को मिली थी. अगर आप अब भी इसे आस्था मान रहे हैं, तो यहां कुछ वैज्ञानिक तथ्य जान लीजिए
ज्योतिष शास्त्र में गंधक को सूर्य का उग्र पदार्थ माना गया है.
रसायन शास्त्र में गंधक को ज्वलनशील पदार्थ माना गया है.
गंधक का इस्तेमाल आयुर्वेद की कई दवाओं में भी होता है.
शोधित गंधक से मिले पानी से नहाने से चर्मरोग ठीक होता है
तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि तालाब के पानी में गंधक की खास मात्रा होने की वजह से चर्मरोगों से लोगों को राहत मिलती हो. इसके लिए यहां कोई मंत्र या कर्मकांड की जरूरत नहीं होती.
ओलार के सूर्यमंदिर में दूसरी चमत्कारी शक्ति यहां चढ़ाए जाने वाले दूध की मानी जाती है. सूर्य देवता पर दूध चढ़ाने के बाद इसे खास तरीके से प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है. तो क्या सूर्यदेवता की मूर्तियों में कोई खास पदार्थ है, जो दूध में मिलकर इसे चर्मरोग के लिए चमत्कारी बना देता है? ये सवाल वैज्ञानिक जांच का विषय है, लेकिन यहां ओलार मंदिर में आस्था का सैलाब देखकर यही लगता है. कुछ सवालों को लोगों के विश्वास पर छोड़ देना चाहिए. लोग यहां मन्नतें पूरी होने को सूर्य देवता का चमत्कार मानते हैं, तो यही सही.