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Vat Purnima 2024 Vrat Katha: हर साल ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को वट सावित्री पूर्णिमा की पूजा की जाती है. इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी उम्र की कामना करते हुए व्रत रखती हैं. इस पूजा को भी वट सावित्री व्रत के समान ही अखंड सौभाग्य के लिए जाना जाता है.
वट सावित्री पूर्णिमा का व्रत वट सावित्री कथा के बिना अधूरी मानी जाती है. इसलिए आज हम विस्तार में वट सावित्री पूर्णिमा की तिथि, मुहूर्त और कथा के बारे में जानेंगे.
वट सावित्री पूर्णिमा व्रत की सही तिथि और मुहूर्त
चंद्रोदय पूर्णिमा तिथि से लिया जाए तो पंचांग के अनुसार चंद्रोदय 21 जून को होगा. इसलिए शुक्रवार के दिन व्रत रखना शुभ होगा. इस दिन शुभ योग की बात करें तो ज्येष्ठा नक्षत्र में सुबह 6 बजकर 42 मिनट तक है जो शाम के 6 बजकर 19 मिनट तक रहेगा. शुभ मुहूर्त की बात करें तो सुबह 11 बजकर 55 मिनट से दोपहर 12 बजकर 51 मिनट तक का शुभ योग है. सुहागिन इसी शुभ योग में पूजा करती हैं तो वह और अधिक फलदायी होगा.
जानें वट पूर्णिमा की व्रत कथा
वट पूर्णिमा व्रत की पूजा सावित्री और उनके पति सत्यवान के लिए जाना जाता है. पूजा के बाद कथा को सुनने का प्रचलन है जिसके बाद ही पूजा और व्रत पूरी मानी जाती है. पौराणिक कथा की मानें तो एक बार की बात है राजा अश्वपति की पुत्री सावित्री थीं, जो कि अति सुंदर होने के साथ ही स्वभाव की भी अच्छी थीं. उनका विवाह सत्यवान नामक एक युवक से कर दिया गया था.
सत्यवान बहुत ही धर्मात्मा और भगवान को मानने वाला एक सच्चा भक्त था. एक बार नारद जी ने सावित्री से आ कर कहा कि सत्यवान की आयु बहुत की कम है. जिसके बाद सावित्री ने सत्यवान के जीवन के लिए कठिन तपस्या करना शुरू कर दिया. पर समय पूरा होने के बाद यमराज सत्यवान के प्राण लेने आ गए. सावित्री ने अपने पतित्व के बल पर यमराज को रोक लिया. जिसके बाद यमराज ने सावित्री से वरदान मांगने को कह दिया.
सावित्री ने यमराज से तीन वरदान मांगे. तीसरे वरदान में सावित्री ने पुत्र का वरदान मांगा. जिसके बाद यमराज ने उन्हें वह भी वरदान दे दिया. पति के बिना यह वरदान अधूरा था. जिसके बाद यमराज को सावित्री को सत्यवान के प्राण लौटाने पड़े.
वट सावित्री पूर्णिमा का महत्व
वट सावित्री पूर्णिमा या वट पूर्णिमा दोनों ही पूजा पति की लंबी उम्र की कामना के लिए किया जाता है. इस पूजा में देवी सावित्री के साथ ही सत्यवान और वट पेड़ की पूजा की जाती है. यह पूजा वट सावित्री व्रत के समान ही होती है. इन दोनों पूजा में अंतर बस यह है कि वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ अमावस्या को करते हैं जो कि सावित्री पूर्णिमा व्रत से 15 दिन पहले होता है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)