Trending Photos
नई दिल्ली: हमारे धर्म शास्त्रों में एकादशी का विशेष महत्व बताया गया है. हिंदू पंचांग (Panchang) के अनुसार हर महीने कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की 11वीं तिथि एकादशी के रूप में मनायी जाती है. एकादशी (Ekadashi) का दिन भगवान विष्णु (Lord Vishnu) का दिन होता है और इस दिन पूरे विधि विधान के साथ पूजा अर्चना और व्रत रखने से भगवान विष्णु के साथ ही देवी लक्ष्मी (Goddess Lakshmi) का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है जिससे जीवन की सारी समस्याएं दूर हो जाती हैं. हर साल फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को विजया एकादशी के नाम से जाना जाता है. इस बार विजया एकादशी 9 मार्च 2021 मंगलवार को है. विजया एकादशी का महत्व, पूजा का शुभ मुहूर्त और पूजन विधि के बारे में यहां पढ़ें.
एकादशी के व्रत को बेहद श्रेष्ठ माना जाता है और रामायण (Ramayan) और महाभारत जैसी पौराणिक कथाओं में भी एकादशी व्रत का वर्णन मिलता है. पद्म पुराण (Padm Puran) के उत्तरखंड में एकादशी व्रत की विधि और कथाओं का वर्णन किया गया है. इसमें बताया गया है कि विजया एकादशी (Vijaya Ekadashi) का व्रत महान पुण्य देने वाला है और इस व्रत को करने से व्यक्ति को अपने शत्रुओं को परास्त करने और सभी कार्यों में सफलता प्राप्त करने में मदद मिलती है, इसलिए इस एकादशी को विजया एकादशी के नाम से जाना जाता है. साथ ही इस व्रत को करने से पूर्व जन्म के पापों से भी छुटकारा मिल जाता है. ऐसी मान्यता है कि स्वंय भगवान राम ने लंकापति रावण से युद्ध करने से पहले इस व्रत को किया था.
ये भी पढ़ें- चुटकी भर नमक से दूर होगी वास्तु संबंधी कई दिक्कतें, ऐसे करें यूज
एकादशी तिथि प्रारंभ- 08 मार्च, 2021 को दोपहर 03.44 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त- 09 मार्च 2021 दिन मंगलवार दोपहर 03.02 मिनट पर
विजया एकादशी पारण मुहूर्त- 10 मार्च को सुबह 06:37 से 08:59 तक
अवधि- 2 घंटे 21 मिनट
(चूंकि उदया तिथि से दिन माना जाता है इसलिए एकादशी का व्रत मंगलवार 9 मार्च को मनाया जा रहा है)
ये भी पढ़ें- बुध ग्रह के राशि परिवर्तन का आप पर होगा कैसा असर, जानें
एकादशी का व्रत निर्जल रहकर, फलाहार करके या फिर एक समय सात्विक भोजन करके भी रखा जा सकता है. एकादशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर घर की सफाई और स्नान आदि कर लें और फिर व्रत का संकल्प लें. भगवान विष्णु की मूर्ति की स्थापना करें. धूप, दीप, चंदन, फल, फूल व तुलसी से श्री हरि की पूजा करें. भगवान विष्ण़ु को पीले फूल जरूर अर्पित करें. इसके बाद विष्णु जी की आरती करें. भगवान को पीली मिठाई का भोग लगाएं. भगवान विष्णु को केले चढ़ाएं और गरीबों को भी केले बांटें. भगवान विष्णु के साथ ही देवी लक्ष्मी की भी आराधना करें.
एकादशी की शाम तुलसी के पौधे के सामने दीपक जरूर जलाएं. अगले दिन यानी द्वादशी तिथि को व्रत खोलें.
ये भी पढ़ें- जानें किस ग्रह की वजह से हो सकती है कौन सी बीमारी
रामायण में जब भगवान श्रीराम अपनी वानर सेना के साथ लंका पर चढ़ाई करने के लिए आगे बढ़े तो उनके सामने विशाल समुद्र को पार करने की चुनौती थी. श्रीराम को कोई उपाय सूझ नहीं रहा था. फिर उन्होंने समुद्र से ही लंका पर चढ़ाई करने के लिए मार्ग मांगा, लेकिन वे असफल रहे. फिर उन्होंने ऋषि-मुनियों से इसका उपाय पूछा जिसके बाद ऋषियों ने श्रीराम को अपनी वानर सेना के साथ विजया एकादशी का व्रत करने का उपाय बताया. फिर श्रीराम ने फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को वानर सेना के साथ विजया एकादशी का व्रत किया और विधि विधान से भगवान विष्णु की पूजा की. कहा जाता है कि विजया एकादशी व्रत के प्रभाव से ही उनको समुद्र से लंका जाने का मार्ग प्रशस्त हुआ. विजया एकादशी व्रत के पुण्य से श्रीराम ने रावण पर विजय प्राप्त की. तब से ही विजया एकादशी व्रत का महत्व और बढ़ गया.