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नई दिल्ली: पौराणिक काल से देव भूमि बनारस (Varanasi) शहर का विशेष महत्व रहा है. गंगा नदी के किनारे बसी काशी की धरती में कई पवित्र घाट हैं. यहां रोजाना पूरी श्रद्धा से पूजा-आरती की जाती है. घाटों के शहर वाराणसी में एक घाट तुलसी घाट (Tulsi Ghat) है. कालांतर में इस घाट को 'लोलार्क घाट' (Lolark Ghat) कहा जाता है. इस घाट पर सूर्य भगवान का एक मंदिर भी है. कहते हैं कि लोलार्क कुंड में स्नान करने से संतान प्राप्ति की मनोकामना शीघ्र पूरी होती है.
तुलसी घाट का नाम संत तुलसीदास जी (Sant Tulsidas ji) के नाम पर रखा गया है. इसके पीछे भी एक खास वजह है. इस घाट से संत तुलसीदास जी का गहरा नाता है, जिसे आप आज भी देख सकते हैं. इस घाट पर ही संत तुलसीदास जी ने हनुमान मंदिर बनवाया था. कृष्ण लीला नाट्य मंचन (Krishna Leela Natya Manchan) की शुरुआत संत तुलसी दास जी द्वारा की गई थी. आइए जानते हैं कि क्यों श्रद्धालुओं को जीवन में एक बार तुलसी घाट जरूर जाना चाहिए-
कहा जाता है कि संत तुलसीदास जी ने अवधि भाषा में रामचरितमानस (Ramcharit Manas) की रचना इसी घाट पर की है. इतना ही नहीं, जब संत तुलसीदास जी रामचरितमानस की रचना कर रहे थे, तभी रामचरितमानस उनके हाथों से फिसलकर नदी में गिर गई थी. लेकिन आप जान कर दंग रह जाएंगे कि रामचरितमानस न तो गंगा नदी में डूबी और न ही नष्ट हुई, बल्कि गंगा नदी की सतह पर तैरती रही. तब तुलसीदास जी ने गंगा में कूद कर रामचरितमानस को पुनः ले लिया था.
यह वही घाट है, जहां पहली बार रामलीला का नाट्य मंचन किया गया था. इसके बाद तुलसी घाट (Tulsi Ghat) पर भगवान राम का मंदिर बनाया गया और यहां हर साल रामलीला (RamLeela) का नाट्य मंचन होने लगा. सबसे खास बात यह है कि इस घाट पर ही संत तुलसीदास जी पंचतत्व में विलीन भी हुए थे. तुलसीदास से जुड़े अवशेषों को आज भी इस स्थल पर सुरक्षित रखा गया है. इनमें हनुमान जी की मूर्ति, लकड़ी के खंभे और उनका तकिया है.
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इस घाट पर त्रेता युग (Treta Yug) के साक्षात दर्शन होते हैं. यहां पर्यटकों का तांता लगा रहता है. खासकर कार्तिक महीने में देव दीवाली मनाई जाती है इसलिए यहां भक्तों की ज्यादा भीड़ लगी होती है. इस समय यहां कृष्ण लीला का भी मंचन किया जाता है. इस कुंड के साथ मान्यता है कि लोलार्क कुंड में स्नान-ध्यान करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
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