अतीत की नदियां से होगा वर्तमान के जल संकट का समाधान
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अतीत की नदियां से होगा वर्तमान के जल संकट का समाधान

देश के बड़े हिस्से में जल के वर्तमान संकट के हल के लिए अब वैज्ञानिक अतीत की उन नदियों और नदीमार्गों की तरफ ध्यान केन्द्रित कर रहे हैं जो विभिन्न कारणों से विलुप्त हो गयी हैं या उनकी धारा सूख गयी हैं।

नयी दिल्ली: देश के बड़े हिस्से में जल के वर्तमान संकट के हल के लिए अब वैज्ञानिक अतीत की उन नदियों और नदीमार्गों की तरफ ध्यान केन्द्रित कर रहे हैं जो विभिन्न कारणों से विलुप्त हो गयी हैं या उनकी धारा सूख गयी हैं।

भूवैज्ञानिक प्रो. केएस वल्दिया की अध्यक्षता में ‘उत्तर-पश्चिम भारत में पुरा-जलधारा: समीक्षा एवं आकलन’ पर गठित समिति ने कहा है कि देश में ऐसी ढेर सारी पैलियोचैनल या पुरा-धारा हैं जिनमें अरबों घन मीटर ताजा पानी भंडार करने या देने की क्षमता है। इस समिति ने हरियाणा, दक्षिण पंजाब, राजस्थान और गुजरात में अपना अध्ययन संचालित किया और पाया कि इन राज्यों में 2200 किलोमीटर की लंबाई में पुरा-जलधारा फैली है और उनके पानी की गुणवत्ता आम तौर पर अच्छी है।

कभी सक्रिय रहीं नदियों या जलधाराओं के अवशेष को पुरा-धारा कहते हैं। दूसरे लफ्जों में, टैक्टोनिक प्लेट की सक्रियता या शक्तिशाली बाढ़ की वजह जब नदियां अपना मार्ग बदल देती हैं और नया रास्ता ढूंढ लेती हैं तो उनके परित्यक्त मार्ग को पुरा-धारा कहा जाता है। कुछ पुरा-धाराएं अब भी ताजा तलछटों में दबी पड़ी हैं। समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा, ‘हमारे देश के बड़े इलाके में मौजूद शुष्कता और अनेक उद्देश्यों के लिए पानी की आवश्यकता के संदर्भ में भूजल के समृद्ध भंडार के रूप में पुरा-धारा में बहुत संभावना है। वे दुनिया के कई हिस्सों में आपूर्ति के भरोसेमंद स्रोत साबित हुए हैं।’

समिति ने पाया कि कुछ पुरा-धाराएं ‘सूखी हैं, जबकि कुछ में पानी है।’ अहम बात यह है कि लगभग सभी को कृत्रिम रूप से सक्रिय किया जा सकता है और पानी से लबरेज किया जा सकता है। केन्द्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार समिति ने जिन जल-धाराओं का अध्ययन किया, उनमें से कुछ 50 मीटर से ले कर कुछ किलोमीटर चौड़ी और 10 फुट से ले कर 30 फुट चौड़ी हैं।

अधिकारी ने कहा, ‘इस तरह, आप पानी की मात्रा की कल्पना कर सकते हैं जो इन पुरा-धाराओं से हासिल की जा सकती है, शायद देश भर से अरबों घन मीटर ताजा पानी।’ समिति ने सिफारिश की है कि शुष्क इलाकों में कम बारिश और सिंचाई तथा अन्य उद्देश्यों के लिए ताजा पानी के ‘‘बेरोक-टोक दोहन’’ के मद्देनजर सरकार पुरा-धाराओं से पानी निकालने का नियमन करने के लिए कानून बनाए। समिति ने यह भी सलाह दी कि पुरा-धाराओं की सर्व-सतह नक्शों और भू-भौतिकीय सर्वेक्षणों और पुरा-धाराओं के इर्दगिर्द की स्थिति का एक नियमित डेटाबेस बनाए। इसने भूजलीय भंडारों के सटीक आकलन में मदद के लिए एक मिशन शुरू करने का भी प्रस्ताव पेश किया। समिति ने सरकार से आग्रह किया है कि वह सुपरिभाषित पुरा-धाराओं को पानी से लबरेज करने का काम शीर्ष प्राथमिकता से करे।

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