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नई दिल्ली: ग्लेशियर (Glacier) टूटने की घटनाएं दुनियाभर में होती रहती है. कई जगह इससे भारी तबाही भी देखने को मिलती है. उत्तराखंड की आपदा (Uttarakhand Glacier Disaster) ने पूरे देश को दहला दिया है. लेकि क्या आप जानते हैं कि इससे बचने का तरीका भी है और इसकी जानकारी भी पहले मिल सकती है. इसके लिए हर ग्लेशियर पर कुछ खास तकनीक और ढांचागत वैज्ञानिक विकास करना जरूरी है. अगर ये सब न हो तो ग्लेशियर (Glaciers Lake Outburst And Its Prediction) से आने वाली बा़ढ़ से कैसे बचा जाए.
सबसे पहले जिस जगह पर बर्फीली झील यानी ग्लेशियर (Glaciers Lake Outburst And Its Prediction) की वजह से झील बन रही है वहां पर मौजूद पानी को धीरे-धीरे करके निकाला जाए. झील की दीवार में छेद करके पानी निकालने से एकसाथ तेजी से पानी के बहने का खतरा नहीं रहता. पंप या साइफन करके झील से पानी निकाला जा सकता है. या फिर नहर भी एक अच्छा विकल्प है जिसे बनाकर बर्फीले बांध का पानी निकाला जा सकता है.
कजाकिस्तान के अलाताउ में बोगातिर झील (Bogatir Lake in Alatau, Kazakhstan) के साथ अनोखा तरीका अपनाया गया था. झील के आउटफ्लो (Lake Outflow) यानी बहाव की दिशा में खुदाई कर दी गई थी. इसके बाद वहां बम लगाए गए. और फिर उन्हें उन्हें फोड़ दिया गया. इससे झील में जमा 7 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी दो दिन में बह गया. और तेजी से झील का पानी कम हो गया. ऐसा ही पेरू में भी किया गया. वहां ग्लेशियर के नीचे घाटी में सावधानी से कटिंग की गई. वहां भी इस तरह से दो दिनों में 10 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी निकला.
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ग्लेशियर से बनी झील के निचले हिस्से में जहां से पानी के बहने की आशंका है, वहां पर पत्थर, कॉन्क्रीट या स्टील की मदद से आउटफ्लो बना कर भी आपदा को रोका जा सकता है. लेकिन ये बहुत टफ प्रोसेस है क्योंकि अक्सर ऐसी ग्लेशियर झीले दुर्गम स्थानों पर होती हैं. वहां तक इतना लॉजिस्टिक ले जाना सम्भव नहीं हो सकता है. ऐसे में स्थानीय स्तर पर मौजूद निर्माण लायक चीजें जैसे स्थानीय पत्थर आदि की मादा लेना बेहतर है. इस पत्थरों के गैबियन यानी तारों के जाल से बांधते हुए नहर जैसा बनाया जा सकता है.
इसके अलावा अमेरिका के वॉशिंगटन में स्थित माउंट सेंट हेलेंस के पास स्पिरिट झील (Spirit Lake, Mount St. Helens, Washington, USA) में भी ऐसा ही हादसा हुआ था. तब इस झील से पानी निकालने के लिए 20 ताकतवर पंपिंग सेट लगाए गए. 30 महीने तक चले इस प्रक्रिया से झील तो खाली हुई लेकिन 80 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च हो गए. लेकिन अपने यहां हिमालय के पहाड़ों में यह संभव नहीं है. क्योंकि इतनी ऊंचाई तक बिजली की सप्लाई हर जगह संभव नहीं है. लेकिन झील की बर्फीली दीवार के दूसरी तरफ टर्बाइन लगाकर इसका खर्च बचाया जा सकता है.
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झील की बर्फीली दीवार के निचले हिस्से की तरफ छेद करें. छेद करने से पहले वहां पर टर्बाइन लगा दें तो पानी के फ्लो से वह तेजी से घूमेगा, इससे बिजली पैदा होगी. उसी बिजली से पंप चलाए जा सकते हैं, जो कि ऊपर से बर्फीली झील का पानी खींच रहे होंगे. ऐसे में नियंत्रित तरीके से बर्फीली झील का पानी कम खतरे के साथ निकाला जा सकता है.
ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (Glacial Lake Outburst Flood - GLOF) की भविष्यवाणी भी हो सकती है लेकिन उसके लिए कई तरह के साइंटिस्ट, हाई रिसर्च, मशीनों, यंत्रों और पैसों की जरूरत पड़ती है. और सबसे पहले जरूरी है कि ग्लेशियरों का डिजिटल डेटा अपने पास मौजूद हो. साथ ही बड़े नक्शे हो जिनका आकार 1:63,360 से लेकर 1:10,000 स्तर का हो.
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खतरनाक ग्लेशियरों की रिस्क रिपोर्ट भी विस्तार में होनी चाहिए. ताकि समय-समय पर ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (Glacial Lake Outburst Flood - GLOF) में आ रहे बदलावों का पता चल सके. इनके लिए जरूरी है कि एरियल सर्वे होते रहे. इससे पता चलेगा कि ग्लेशियर में कहां और कितनी टूट-फूट या दरार है
ग्लेशियर या ग्लेशियर से बनी झील के आसपास निगरानी के लिए ड्रोन की मदद से तस्वीरें लेना और फिर उन इलाकों में कैमरे लगाकर छोड़ना जरुरी है ताकि हमें सही स्थिति की जानकारी मिलती रहे. साथ ही मोशन और वाइब्रेशन सेंसर लगाया जाना भी जरूरी है जिससे ग्लेशियर में किसी तरह की हलचल या वाइब्रेशन हो तो ये सेंसर्स निगरानी केंद्र को सूचित कर दें. ताकि तुरंत एक सायरन बजाकर इलाके के लोगों को अलर्ट किया जा सके.
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