'जीवन की खोज' में निकला NASA का Europa Clipper, बृहस्पति के चंद्रमा की बर्फीली परत के नीचे झांकेगा, 5 बड़ी बातें
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'जीवन की खोज' में निकला NASA का Europa Clipper, बृहस्पति के चंद्रमा की बर्फीली परत के नीचे झांकेगा, 5 बड़ी बातें

NASA Europa Clipper Mission: अमेरिका की स्पेस एजेंसी, नासा ने 'यूरोपा क्लिपर' मिशन लॉन्च कर दिया है. यह स्पेसक्राफ्ट पता लगाएगा कि बृहस्पति के चंद्रमा 'यूरोपा' की परिस्थितियां जीवन का समर्थन कर सकती हैं या नहीं.

'जीवन की खोज' में निकला NASA का Europa Clipper, बृहस्पति के चंद्रमा की बर्फीली परत के नीचे झांकेगा, 5 बड़ी बातें

Europa Clipper Spacecraft: NASA का अंतरिक्ष यान बृहस्पति और उसके चंद्रमा, यूरोपा की यात्रा पर निकल पड़ा है. पृथ्‍वी से परे जीवन की तलाश में यह एक बड़ा कदम है. 'यूरोपा क्लिपर' नाम का यह स्पेसक्राफ्ट यूरोपा की बर्फीली परत के नीचे झांकेगा. माना जाता है कि इसकी सतह के काफी करीब एक महासागर है. ध्‍यान रहे कि यह स्पेसक्राफ्ट जीवन की खोज नहीं करेगा, बल्कि यह तय करेगा कि यूरोपा की परिस्थितियां जीवन के अनुकूल हैं या नहीं.

  1. NASA के Europa Clipper मिशन की जानकारी: 5.2 बिलियन डॉलर की लागत वाले इस मिशन को सोमवार को फ्लोरिडा स्थित केनेडी स्पेस सेंटर से लॉन्च किया गया है. Europa Clipper को बृहस्पति तक पहुंचने में साढ़े पांच साल लगेंगे. यह किसी दूसरे ग्रह का मुआयना करने के लिए बनाया गया अब तक का सबसे बड़ा अंतरिक्ष यान है. यह यूरोपा की सतह के 25 किलोमीटर के दायरे में रहकर अपनी जांच करेगा. जब इसके सौर पंख और एंटेना खुलते हैं, तो Europa Clipper लगभग एक बास्केटबॉल कोर्ट के आकार का होता है. बृहस्पति की सूर्य से दूरी के कारण सुपरसाइज्ड सौर पैनल की जरूरत पड़ती है. इसका वजन लगभग 6,000 किलोग्राम है. स्पेसक्राफ्ट के मुख्य भाग में नौ वैज्ञानिक उपकरण लगे हैं. इनमें रडार शामिल है जो बर्फ में प्रवेश करेगा, कैमरे जो लगभग पूरे चंद्रमा का नक्शा बनाएंगे. साथ ही यूरोपा की सतह और कमजोर वातावरण की सामग्री को बाहर निकालने के लिए उपकरण भी हैं.
  2. यूरोपा को ही क्यों चुना गया: यूरोपा, बृहस्पति के 95 ज्ञात चंद्रमाओं में से एक है. यूरोपा को 1610 में गैलीलियो ने खोजा था. यह लगभग हमारे अपने चंद्रमा के आकार का है. यह बर्फ की चादर में घिरा हुआ है जिसकी मोटाई 15 किलोमीटर से 24 किलोमीटर होने का अनुमान है. वैज्ञानिकों का मानना है कि यह जमी हुई परत एक महासागर को छुपाती है जो 120 किलोमीटर या उससे ज़्यादा गहरा हो सकता है. हबल स्पेस टेलीस्कोप ने सतह से गीजर जैसा कुछ निकलते हुए देखा है. जीवन के लिए पानी के अलावा कार्बनिक यौगिकों की जरूरत होती है, साथ ही एक ऊर्जा स्रोत की भी. यूरोपा के मामले में यह महासागर तल पर थर्मल वेंट हो सकता है. 
  3. कब और कैसे पहुंचेगा: Europa Clipper अगले साल की शुरुआत में मंगल ग्रह से गुजरेगा और फिर 2026 के अंत में पृथ्वी से गुजरेगा. यह 2030 में बृहस्पति पर पहुंचेगा. बृहस्पति की परिक्रमा करते हुए, यह यूरोपा के साथ 49 बार रास्ता पार करेगा. 
  4. रेडिएशन का खतरा: सूर्य से इतर, हमारे सौरमंडल में कहीं और की तुलना में बृहस्पति के आसपास अधिक रेडिएशन है. यूरोपा, बृहस्पति के रेडिएशन बैंड से होकर गुजरता है, जो इसे अंतरिक्ष यान के लिए खास तौर पर खतरनाक बनाता है. इसी वजह से क्लिपर के इलेक्ट्रॉनिक्स घने एल्यूमीनियम और जस्ता दीवारों के साथ एक तिजोरी के अंदर हैं.
  5. साथ गया संदेश: अंतरिक्ष में भेजे गए पहले के अंतरिक्ष यानों की तरह, यूरोपा क्लिपर भी धरती से संदेश लेकर गया है. इलेक्ट्रॉनिक्स तिजोरी के साथ एक त्रिकोणीय मेटल प्लेट है. एक साइड पर 104 भाषाओं में पानी को दर्शाया गया है. दूसरी तरफ चंद्रमा के बारे में एक अमेरिकी कवि की कविता है और एक सिलिकॉन चिप भी. इस चिप में उन उन 26 लाख लोगों के नाम हैं जिन्होंने इस मिशन के साथ जाने की इच्छा जाहिर की थी.

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