वरुण ग्रह को पहली बार 23 सितंबर, 1846 को दूरबीन से देखा गया था. उसके बाद इसे नाम दिया गया नेपच्यून. सूर्य से सबसे दूरी पर स्थित यह ग्रह हल्के नीले रंग का दिखाई देता है.
नेपच्यून प्राचीन रोमन धर्म में समुद्र के देवता थे. ठीक यही स्थान भारत में वरुण देवता का रहा है, इसलिए इस ग्रह को हिंदी में वरुण कहा जाता है.
इसके ऊपरी वातावरण में मीथेन गैस की अधिकता रहती है. वरुण पर बादल, तूफान साफ़ दिखाई देता है.
सौरमंडल के इस ग्रह में गैसों की अधिकता के कारण इसे ‘गैस दानव’ भी कहा जाता है.
वरुण ग्रह का तापमान बहुत अधिक ठंडा रहता है. सूर्य से दूर होने के वजह से इस ग्रह का तापमान -200 डिग्री से भी कम रहता है. ऐसे में यहां इंसानों की कल्पना भी नहीं किया जा सकता है.
वैज्ञानिकों की माने तो इस ग्रह के अंदरूनी भागों में एट्मॉस्फियरिक प्रेशर बहुत ज्यादा होता है. वरुण के वायुमंडल में संघनित कार्बन होने के कारण वहां हीरे की बारिश होती है.
इस विशालकाय ग्रह के चंद्रमाओं की संख्या 13 है. वरुण के उपग्रहों में से सबसे बड़ा उपग्रह ट्राइटन है.
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