Zee जानकारी : 11 हजार 500 फीट से ज्यादा ऊंचाई पर उगाई जाने वाली सब्जियों का DNA टेस्ट
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Zee जानकारी : 11 हजार 500 फीट से ज्यादा ऊंचाई पर उगाई जाने वाली सब्जियों का DNA टेस्ट

DNA के खबरों वाले मेन्यू में अब हम आपको ऐसी सब्जियों के बारे में बताएंगे जिन्हें उगाना बच्चों का खेल नहीं है। ये सब्जियां 11 हज़ार 500 फीट से लेकर 17 हज़ार फीट की ऊंचाई पर उगाई जा रही हैं। ये सब्जियां ना सिर्फ देश के सैनिकों का पेट भरती है। बल्कि ये सब्जियां आकार में बहुत बड़ी और दाम में बहुत सस्ती हैं। इन सब्जियों पर हमारा DNA टेस्ट देखकर आपको लगेगा कि काश आप वीकेंड पर अपने घर के पास वाली सब्ज़ी मंडी के बजाय लेह और लद्दाख जाकर ये स्पेशल सब्ज़ियां खरीद पाते। 

Zee जानकारी : 11 हजार 500 फीट से ज्यादा ऊंचाई पर उगाई जाने वाली सब्जियों का DNA टेस्ट

नई दिल्ली : DNA के खबरों वाले मेन्यू में अब हम आपको ऐसी सब्जियों के बारे में बताएंगे जिन्हें उगाना बच्चों का खेल नहीं है। ये सब्जियां 11 हज़ार 500 फीट से लेकर 17 हज़ार फीट की ऊंचाई पर उगाई जा रही हैं। ये सब्जियां ना सिर्फ देश के सैनिकों का पेट भरती है। बल्कि ये सब्जियां आकार में बहुत बड़ी और दाम में बहुत सस्ती हैं। इन सब्जियों पर हमारा DNA टेस्ट देखकर आपको लगेगा कि काश आप वीकेंड पर अपने घर के पास वाली सब्ज़ी मंडी के बजाय लेह और लद्दाख जाकर ये स्पेशल सब्ज़ियां खरीद पाते। 

आपने भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री द्वारा दिए गए नारे जय जवान, जय किसान के बारे में ज़रूर सुना होगा लेकिन अब हम जिस विश्लेषण की शुरुआत कर रहे हैं। उसे देखने के बाद आपका मन कहेगाचजय जवान, जय किसान और जय विज्ञान। क्योंकि देश के वैज्ञानिकों ने देश के जवानों और किसानों के लिए एक ऐसा चमत्कार करके दिखा दिया है, जिसके बारे में आपने शायद कभी नहीं सुना होगा।

रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन यानी डीआरडीओ की एक लैब है जिसका नाम है, डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ हाई एटीट्यूड रिसर्च यानी डीआईएचएआर। डीआईएचएआर के वैज्ञानिकों ने -4 डिग्री तापमान से लेकर -20 डिग्री तक के तापमान में फलों और सब्जियों की खेती करने का विज्ञान पूरी दुनिया को दे दिया है।  

इन वैज्ञानिकों की मेहनत का नतीजा है कि अब लेह से लेकर सियाचिन तक करीब 78 तरह की सब्जियां उगाई जा रही हैं। इन सब्जियों में से 58 प्रतिशत सब्जियों की सप्लाई सेना के लिए होती है। जबकि बाकी की सब्जियां स्थानीय किसान सहकारी संस्थाओं की मदद से आसपास के बाज़ार में बेच देते हैं। ये सब्जियां सूरज की रौशनी में काम करने वाले ग्रीन हाउसेज में उगाई जाती हैं और इन सब्जियों का आकार भी मैदानों में उगाई जाने वाली सब्जियों से बहुत बड़ा होता है। उदाहरण के लिए लेह, लद्दाख और सियाचिन जैसी दुर्गम जगहों पर उगाया जाने वाला एक प्याज़ आधा किलो तक का हो सकता है।

एक मूली 2 किलो की, एक टमाटर 400 से 500 ग्राम का और एक पत्ता गोभी का वज़न औसतन 3 से 4 किलो तक होता है। गर्मियों में जब पूरे देश में फूल गोभी और पत्ता गोभी जैसी सब्जियां दुर्लभ हो जाती हैं और उनके दाम आसमान छूने लगते हैं। तब डीआईएचएआर की मदद से लेह और लद्दाख के स्थानीय किसान इन सब्जियों की फसल उगा रहे होते हैं। और ये सब्जियां स्थानीय बाज़ार में बहुत सस्ते दामों पर उपलब्ध होती हैं। मई से सितंबर तक उगाई गई सब्जियों में से करीब 58 प्रतिशत भारतीय सेना को दी जाती है। 

पिछले कुछ दिनों से हमारे देश में एक बहस चल रही है और वो बहस ये है कि सेना और अर्धसैनिक बलों के जवानों को जो खाना मिलता है उसकी क्वालिटी अच्छी नहीं होती है। इन खबरों के सामने आने के बाद हमारी टीम ने उस सप्लाई चेन पर एक रिसर्च किया जिसके ज़रिए लेह-लद्दाख और सियाचिन जैसे दुर्गम स्थानों पर तैनात सेना के जवानों तक खाने-पीने की वस्तुएं पहुंचाई जाती हैं।  

रिसर्च के दौरान हमें डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ हाई एटीट्यूड रिसर्च के बारे में पता चला। इस संस्थान के वैज्ञानिक दिन रात एक करके भारतीय सेना के जवानों तक ये सब्जियां पहुंचाने में लगे रहते हैं। ये वैज्ञानिक नए-नए रिसर्च करके खराब से खराब मौसम में ये सब्ज़ियां उगाते हैं। फिलहाल एलओसी के पास कारगिल से लेकर सियाचिन तक करीब 75 ग्रीनहाउसेज में ये सब्जियां उगाई जा रही हैं। वैज्ञानिकों ने जो तकनीक विकसित की है उसे लद्दाख ऑटोनामस हिल डेवलपमेंट काउंसिल की मदद से स्थानीय किसानों तक पहुंचाया जा रहा है।

इतनी ऊंचाई पर, इतने कम तापमान में सब्जियां उगाने और उन्हें स्टोर करने की सुविधा सिर्फ भारत और नार्वे के पास है। यानी भारत के वैज्ञानिक अगर चाहें तो वो दुनिया के ऊंचे से ऊंचे पर्वत और सूखे से सूखे रेगिस्तान में भी करिश्मा करके दिखा सकते हैं। 

इस ख़बर में विश्वसनीयता के पैमानों की बात करें तो। पहला पैमाना ये है कि हमारा रिपोर्टर मौके पर मौजूद है या नहीं तो इस ख़बर में हमारे रिपोर्टर मौके पर मौजूद थे। हमारी टीम ने वर्ष 2007, वर्ष 2014 और वर्ष 2016 में इस विषय पर ग्राउंड रिपोर्टिंग की थी और आज इस रिपोर्ट को तैयार करते हुए हमने वर्ष 2014 की ऑन द स्पॉट रिपोर्टिंग का इस्तेमाल किया है।

दूसरा पैमाना है ख़बर सत्यापित है या नहीं तो इस खबर की पुष्टि हमने डीआरडीओ की वेबसाइट से भी की है। यानी ये खबर पूरी तरह से सत्यापित है। तीसरा पैमाना है एक्सपर्ट की राय - और इस ख़बर में एक्सपर्ट्स के तौर पर उन वैज्ञानिकों और किसानों की राय शामिल हैं। जो इतने ये सब्जियां उगा रहे हैं। और चौथा पैमाना ये है कि इस ख़बर में दिखाए गये वीडियो पर भरोसा किया जा सकता है या नहीं तो हम आपको बता दें कि इस ख़बर में जो तस्वीरें आप देखेंगे वो ज़ी न्यूज़ के कैमरे से रिकॉर्ड की गई हैं। हमने कुछ रिप्रेजेंटेटिव वीडियोज का इस्तेमाल भी किया है ताकि आप विषय की गंभीरता को समझ सकें। इसलिए ख़बर में दिखाई गई तस्वीरों पर आप भरोसा कर सकते हैं।

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