इरफान जानते थे कि लोग उन्हें उनके किरदारों के लिए जानते हैं और वो चाहते भी यही थे कि उन्हें किरदारों के लिए ही पसंद भी किया जाए. इरफान का मानना था कि बजट फिल्म को बड़ा या छोटा नहीं बनाता. दर्शकों का प्यार बड़ी या छोटी फिल्म का पैमाना होता है.
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"जब इरफान फ्रेम में होते हैं तो कैमरे को इनकी आंखों के अलावा कुछ नजर नहीं आता."
इरफान की आंखों के बारे में ये कहना था ऐश्वर्या राय बच्चन का. वो ऐश्वर्या जिनकी खुद की आंखों को दुनिया की सबसे खूबसूरत आंखों का खिताब मिला है. इरफान से मेरी पहली लंबी मुलाकात ऐश्वर्या के साथ हुई थी. जब दोनों की फिल्म 'जज्बा' रिलीज होने वाली थी. ऐश्वर्या 5 साल के बाद सिल्वर स्क्रीन पर वापसी कर रही थीं. मां बनने के बाद ऐश्वर्या ने बहुत सोच-समझकर ये फिल्म चुनी थी और हर किसी को उन्हें ऑनस्क्रीन देखने का इंतजार था लेकिन अपनी को-एक्टर को मिल रहे ज्यादा ध्यान से इरफान बिल्कुल बेपरवाह थे.
इरफान जानते थे कि लोग उन्हें उनके किरदारों के लिए जानते हैं और वो चाहते भी यही थे कि उन्हें किरदारों के लिए ही पसंद भी किया जाए. जब मैंने उनसे पूछा कि ऐश्वर्या को मिल रहे अटेंशन से दिक्कत तो नहीं, तो तुरंत बोले, "नहीं, मुझे कोई परेशानी नहीं. हां, अगर योहान ('जज्बा' में इरफान के कैरेक्टर का नाम) पर लोगों का ध्यान नहीं गया तो बहुत बुरा लगेगा." ये साल 2015 की बात है. इरफान का करियर पीक पर था. पिछली रिलीज पीकू सुपरहिट थी. Jurassic World का भी वो हिस्सा थे.
एक तरह से अगर तुलना की जाए तो इरफान उस वक्त ऐश्वर्या से भी बड़े ग्लोबल स्टार थे, लेकिन स्टार कहलाने से ज्यादा वो एक बेहतरीन एक्टर कहलाना चाहते थे. मैंने उनसे ये भी पूछा कि उन्होंने रिडली स्कॉट और क्रिस्टफ़र नोलन जैसे फिल्मकारों की फिल्मों को मना कर 'The Lunchbox', 'पीकू' या 'जज्बा' क्यों की? इरफान ने बड़ी सहजता से जवाब दिया, "नफा-नुकसान कम देखता हूं, बस कहानी और किरदार जो पसंद आ जाए, वही फिल्म साइन करता हूं."
इरफान का मानना था कि बजट फिल्म को बड़ा या छोटा नहीं बनाता. दर्शकों का प्यार बड़ी या छोटी फिल्म का पैमाना होता है. हालांकि ऐसा नहीं है कि इरफान की यह सोच हमेशा से थी. शुरुआती संघर्ष के बाद जब इरफान को बड़े इंटरनेशनल प्रोजेक्ट्स मिले, तब उन्होंने हॉलीवुड में और काम पाने के लिए काफी प्रयास किया. किस्मत भी साथ देती चली गई. अमेरिका में एक एजेंट और मैनेजर मिल गया जिसके बाद तो उनके सपनों को पंख लग गए थे लेकिन इरफान को कलाकार के तौर पर एक पैटर्न में बंधना रास नहीं आया.
उन्होंने टॉम हैंक्स के साथ 'इन्फर्नो' की तो पाकिस्तान की मशहूर ऐक्ट्रेस सबा कमर के साथ 'हिंदी मीडियम' भी की. उन्होंने एंजेलीना जोली और नताली पोर्ट्मन के साथ काम किया तो साउथ की एक्ट्रेस पार्वती थिरूवोथु के साथ 'करीब-करीब सिंगल' कर डाली. इरफान के लिए फिल्में लोगों तक पहुंचने का जरिया थीं. एक एक्टर के तौर पर उनकी भूख बहुत ज्यादा थी. 2011 से 2017 तक उनका करियर बुलंदी पर रहा. 'जज्बा' की रिलीज के बाद हम लोग 2-3 बार और मिले.
अपने बढ़ते स्टारडम के बावजूद इरफान वैसे ही रहे. बेतकल्लुफ, स्टार होने के चोचलों से दूर, लेकिन 2018 ने सब बदल दिया. इरफान को न्यूरो एंडोक्राइन ट्यूमर हुआ. वो इलाज के लिए लंदन गए. उस दौरान एक तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हुई. दावा किया गया कि चेहरे को कपड़े से लपेटे इरफान हैं जो एक स्टेडियम में कोई मैच देख रहे हैं. कुछ दिन बाद कुछ दिन बाद इरफान ने एक अखबार के लिए लिखते हुए ये बताया कि लंदन में उनका अस्पताल लॉर्ड्स क्रिकेट ग्राउंड के सामने है.
ये इरफान के लिए एक अजीब इत्तेफाक था क्यूंकि वो बचपन में क्रिकेटर बनना चाहते थे लेकिन पैसों की कमी की वजह से खेलने का सपना अधूरा रह गया. शायद अस्पताल की खिड़की से दिखते लॉर्ड्स स्टेडियम ने ही इरफान के अंदर लड़ने का जज्बा जगाया. एक जुझारू खिलाड़ी की तरह उन्होंने शरीर में बैठे ट्यूमर से लड़ा. देश वापसी की. खुद को अंग्रेजी में कच्चा मानते हुए 'अंग्रेजी मीडियम' की शूटिंग की लेकिन जैसा इरफान ने अपनी आखिरी फिल्म की रिलीज से पहले एक ऑडियो मैसेज में कहा, "मेरे शरीर में कुछ अनवांटेड मेहमान बैठे हैं, उनसे वार्तालाप चल रहा है, देखते हैं ऊंट किस करवट बैठता है." अफसोस! ऊंट ने मुंह फेर लिया.
(अदिति अवस्थी ZEE NEWS की एंटरटेनमेंट डेस्क की हेड हैं)
(डिस्क्लेमर: इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखिका के निजी विचार हैं)