कहते हैं सत्ता अक्सर मानसिकता बदल देती है, सोचने का नजरिया बदल देती है.। अक्सर ऐसा देखा गया है कि विपक्ष में रहते हुए कोई भी राजनीतिक दल जिन मुद्दों को हथियार बनाता है सत्ता में आऩे के बाद उन्ही हथियारों की काट तलाशने में जुटा रहता है।
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वासिंद्र मिश्र
एडिटर (न्यूज़ ऑपरेशंस), ज़ी मीडिया
कहते हैं सत्ता अक्सर मानसिकता बदल देती है, सोचने का नजरिया बदल देती है.। अक्सर ऐसा देखा गया है कि विपक्ष में रहते हुए कोई भी राजनीतिक दल जिन मुद्दों को हथियार बनाता है सत्ता में आऩे के बाद उन्ही हथियारों की काट तलाशने में जुटा रहता है।
बीते दिनों में केन्द्र की नई सरकार के कर्ताधर्ताओं का रुख भी इसी सियासी परम्परा को आगे बढ़ाने के संकेत दे रहा है। मोदी सरकार के मंत्री भी अब कांग्रेसी भाषा बोलते नजर आ रहे हैं। वो भाषा जिसे लेकर विपक्ष में रहते हुए खासा शोर मचाया था, फिर मुद्दा चाहे कोलगेट का रहा हो कालेधन का रहा हो या फिर सीएजी की कार्यप्रणाली का।
10 साल तक सत्ता में रही यूपीए सरकार और बीते साढ़े पांच महीनों से सत्ता में बैठी एनडीए सरकार दोनों में कालेधन और सीएजी के मुद्दे पर हैरान करने वाली कुछ समानताएं देखने को मिली हैं। यूपीए ने कालेधन पर अंतर्राष्ट्रीय समझौतों का हवाला देते हुए कालेधन के कारोबारियों का नाम बताने से मना किया था तो एनडीए सरकार ने भी वही किया। ये और बात है कि कोर्ट की सख्ती की आगे एक ना चली और नाम देने पड़े। दूसरा मामला सीएजी का है। यूपीए जब तक सत्ता में थी सीएजी की रिपोर्टों ने उसकी नींदे उड़ाई हुई थीं। कांग्रेस के नेता तब सीएजी पर सवाल उठाया करते थे। अब दौर बदल चुका है। अब सत्ता में बीजेपी है लेकिन हैरानी ये कि बीजेपी के दिग्गज नेता अरुण जेटली भी अब कांग्रेस वाली भाषा बोलते हुए सीएजी को हद में रहने की नसीहतें दे रहे हैं।
जाहिर है सवाल तो उठेंगे, सवाल ये कि आखिर इस नसीहत का मतलब क्या है। कल तक सत्ता से बाहर रहते हुए जेटली साहब को सीएजी पर कांग्रेसियों का सवाल उठाना संवैधानिक संस्थाओं का अपमान लगता था तो अब क्यों नहीं लगता। वैसे ये पहली बार नहीं है जब अरुण जेटली का रुख उनकी बदली हुई सोच का इशारा दे रहा हो। कोलगेट मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कोल ब्लॉक रद्द कर दिए तो सरकार अध्यादेश लेकर आई। कालेधन के मामले में सरकार की दलीलें और कोर्ट की सख्ती के बाद दिखी बेबसी की मिसाल भी सामने है। भूमि अधिग्रहण का मामला भी कमोबेश ऐसा ही है। किसानों के हितों की अनदेखी करने का आरोप बीजेपी विपक्ष में रहते हुए अक्सर यूपीए सरकार पर लगाती रहती थी लेकिन अब सत्ता में आने के बाद सरकार जो सीधे किसानों से जुड़े प्रावधानों को बदलने की तैयारी कर रही है। बहाना मैन्युफैक्चरिंग ग्रोथ के प्रभावित हो जाने का है। लेकिन सवाल वही है कि पासा पलटने के अलावा क्या बदला है बीते दिनों में जो विपक्ष में थे सरकार में आ गए हैं तो क्या सत्ता ने मानसिकता बदल दी है। नीतियों के लिए सोचने का नज़रिया बदल दिया है या फिर शोर मचाना और बात है और सरकार चलाना और...।