बेघरों की छाती पर कील ठोंकते बैंक
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बेघरों की छाती पर कील ठोंकते बैंक

देश के एक बड़े बैंक ने ऊंची इमारतों के शहर मुंबई में अपने सामने बड़ी-बड़ी कीलें ठुकवा दी. ऐसा इसलिए किया क्योंकि उसके सामने गरीब-गुरबे बैठ, लेट नहीं पाएं और बैंक की सुरक्षा चाक-चौबंद रहे.

बेघरों की छाती पर कील ठोंकते बैंक

देश के एक बड़े बैंक ने ऊंची इमारतों के शहर मुंबई में अपने सामने बड़ी-बड़ी कीलें ठुकवा दी. ऐसा इसलिए किया क्योंकि उसके सामने गरीब-गुरबे बैठ, लेट नहीं पाएं और बैंक की सुरक्षा चाक-चौबंद रहे. अलबत्ता हर फुटपाथ के आदमी को चोर की नजर से देखने वाली यह बैंके अपने बड़े चोरों के गले पर हाथ नहीं डाल पा रही हैं, जो करोड़ों रुपए हड़प जाने के बाद भी उड़कर दूर जा बैठे हैं. भला हो सोशल मीडिया का जो उसने इसे गरीबों की नजर से देखकर विरोध किया. देश की बेघर आबादी की छाती पर ठुकी यह कीलें हटा ली गई हैं.

मुंबई, दिल्ली, कोलकाता और जयपुर भोपाल सरीखे शहरों में एक बड़ी आबादी है जो फुटपाथ पर रहती है. ऐसा लगता है कि गांव, खेड़ों में बेघरबार नहीं होंगे... पर आंकड़े बताते हैं कि वहां भी बड़ी संख्या में लोग बेघरबार हैं. इस पृष्ठ भूमि में तो सरकार ने यह घोषणा भी की है कि 2022 तक वह सब के लिए आवास का बंदोबस्त कर देगी काम चल रहा है. देश में छतविहीन लोगों की स्थिति का लेखा-जोखा जनगणना 2011 के आंकड़ों में किया गया है. इसके मुताबिक वर्ष 2001 में देश में बेघर लोगों की जनसंख्या 19.43 

लाख थी, जो वर्ष 2011 में कम होकर 17.72 लाख रह गई है. इस दौर में देश में खूब शहरीकरण हुआ और उस अव्यवस्थित शहरीकरण के परिणाम स्वरुप शहरों में बेघर लोगों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. 2001 में शहरी इलाकों में 7.78 लाख बेघर लोग थे, यह संख्या दस साल बाद बढ़कर 9.38 लाख हो गई. ग्रामीण क्षेत्रों में बेघर लोगों की संख्या में कमी आई और ये 11.6 लाख से कम होकर 8.34 लाख रह गई. आप समझिए कि जब इस तरह से शहरों पर पलायन से उपजा दबाव बढ़ रहा होगा तो वह कहां जाएगा. शहर तो वैसे ही प्लानिंग के मारे हैं, अपनी विकास योजना में वह आधे तो खुदे ही पड़े रहते हैं. उस पर से हवा, पानी का बुनियादी इंतजाम भर जुटाने में उनका दम फूलने लगता है.

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गंभीर बात तो यह है कि यह पलायन रुकने का नाम नहीं ले रहा और अब से तीन-चार साल बाद जब एक बार फिर जनगणना होगी, तो यह संख्या निश्चित तौर पर और भी बढ़ रही होगी. ऐसे में लोगों को आसरा देने के क्या इंतजाम होंगे, सोचना होगा. 12वीं पंचवर्षीय योजना के तहत शहरी आवासों के लिए गठित तकनीकी समूह के मुताबिक, इस योजना (वर्ष 2012 से 2017) की शुरुआत में भारत में बुनियादी जरूरतों के साथ 1.88 करोड़ घरों की कमी थी. 11वीं पंचवर्षीय योजना में यह कमी 2.47 करोड़ थी. इतने घरों को बनाना इस स्पीड से क्या संभव हो पाएगा.

सर्वोच्च न्यायालय वर्ष 2010 से बेघर लोगों को आश्रय देने के लिए निर्देश दे रहा है. 20 जनवरी 2010 को पीयूसीएल बनाम भारत सरकार और अन्य के मामले में न्यायालय ने निर्देश दिए थे कि हर एक लाख की जनसंख्या पर एक ऐसा आश्रय घर होना चाहिए जिसमें सभी बुनियादी सुविधाएं, जैसे साफ़ बिस्तर, साफ़ शौचालय और स्नानघर, कंबल, प्राथमिक उपचार, पीने का पानी हों. अक्सर शिकायत की जाती है कि लोग नशे का सेवन करते हैं और बीमार होते है, इस मामले में निर्देश कहता है कि वहां नशा मुक्ति की व्यवस्था होना चाहिए. 

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सुरक्षा और सम्मान के नज़रिए से 30 फीसदी आश्रय घर महिलाओं, वृद्धों के लिए होना चाहिए. पर यह कहां तक संभव हो पा रहा है इसे आप जमीन पर जाकर देख लीजिए. अब जबकि गर्मियों में लू का प्रकोप होगा तब कुछ लोगों की लू लगने से मौत की खबरें भी आएंगी. यदि हमारे समाज का व्यवहार गरीब लोगों की इन जुगाड़ की जगहों पर भी कील ठोंकने का रहा तो सोचिए फिर कि यह बेघर समाज कहां जाएगा.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं) 

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