बुरा क्यों न मानें ऐसी होली का
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बुरा क्यों न मानें ऐसी होली का

दिल्ली के पॉश इलाकों मे जिस तरह से सीमन से भरे गुब्बारे छात्राओं को मारे गए वो हुड़दंगियों का घिनौना चेहरा सामने लाता है. होली के दिन लड़कियों का ज़रूरी काम से निकलना भी दूभर होता है.

बुरा क्यों न मानें ऐसी होली का

बुरा ना मानो होली है. ठीक है हम बुरा नहीं मानते है जब कोई प्यार से, इज्ज़त से रंग और गुलाल लगाता है. हम बुरा नहीं मानते हैं जब कोई रंग डालता है और उसमें वो हमारे जिस्म को यहां वहां छूने की कोशिश नहीं करता है. लेकिन होली के एक दिन पहल दिल्ली की सड़कों पर सैंकड़ों स्टूडेंट्स ने प्रदर्शन किया. उनकी आंखों में गुस्सा था, नाराज़गी थी और वो कह रही थीं कि हम बुरा क्यों ना माने. हां उन्हें ही नहीं बुरा हम सबको मानना चाहिए क्योंकि होली के नाम पर हुड़दंग, लड़कियों से बत्तमीज़ी को बर्दाश्त नही किया जा सकता है. दिल्ली में होली के नाम पर हुड़दंग का जो चेहरा सामने आया है वो बेहद शर्मनाक और घिनौना है. और ये हुड़दंग होली से पहले ही शुरु हो गया. 28 फरवरी को जीजस एंड मेरी कॉलेज की छात्रा पर चलती बस में सीमन यानि की वीर्य से भरे गुब्बारे फेंके गए. हद बेशर्मी की बात ये है कि छात्रा के बगल में बैठी एक महिला ने कहा कि बुरा ना मानो होली है. इस घटना से गुस्साई जीजस एंड मेरी कॉलेज की छात्राओं ने टीचर्स के साथ पुलिस हेडक्वॉर्टर पर प्रदर्शन किया. हाथों में लिए तख्तियों पर तीखे सवाल थे, वो पूछ रहीं थीं कि आखिर हम ऐसी होली का बुरा क्या ना मानें. 4 दिन के अंदर छात्राओं पर सीमन से भरे गुब्बारे फेंकने का ये दूसरा मामला है.

पर्दे पर दिखने वाली खूबसूरती के पीछे का सच

होली रंगो का त्योहार है, खुशी का उल्लास का, लेकिन जिस तरह से होली के बहाने लड़कियों, महिलाओं को निशाना बनाया जा रहा है वो बेहद शर्मनाक है. लड़कियों से ज़ोर जबरदस्ती की जाती है, छेड़छानी की जाती है. ऐसा लगता है कि होली में रंग लगाने के बहाने कुंठित लोग लड़कियों के जिस्म को टटोलना, छूना चाहते हैं. वो मौका तलाशते हैं कि होली के बहाने कैसे लड़की को शोषित किया जाए. ऐसा करने वाले हमारे करीबी रिश्तेदार, दोस्त ही होते हैं. होली पर गुब्बारों में पानी और रंग भरकर मारने में बच्चे और बड़े सब आगे रहते हैं. लेकिन ये गुब्बारे भी सड़क चलती लड़कियों के जिस्म के खास हिस्सों को निशाना बनाकर मारे जाते हैं. हैरानी इस बात की है कि ये सब होता है होली के नाम पर. होली जिससे जीवन में रंग घुल सकते हैं वो ज्यादातर औरतों, लड़कियों के लिए कभी ना कभी बुरा तजुर्बा बनकर रह जाती है.

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दिल्ली के पॉश इलाकों मे जिस तरह से सीमन से भरे गुब्बारे छात्राओं को मारे गए वो हुड़दंगियों का घिनौना चेहरा सामने लाता है. होली के दिन लड़कियों का ज़रूरी काम से निकलना भी दूभर होता है. मुझे याद है कि किस तरह होली के एक दिन पहले ऑफिस आते वक्त मेरी एक दोस्त को गुब्बारा मारा गया था. हालांकि हमारा समाज शायद इसे गलत नहीं मानता तभी तो बुरा ना मानो होली के नाम पर ये घटिया खेल चल रहा है. पानी, रंग से होते हुए गुब्बारों में सीमन भर गया है. आखिर क्या सोचकर ये किया गया होगा, कौन सा सुख मिला होगा एक लड़की पर सीमन फेंककर. शायद ये सिर्फ़ मज़े के लिए किया गया हो, लेकिन ऐसे ही लोग छेड़छाड़ से बलात्कार तक पहुंच जाते हैं. 

होली में बधाई देने के लिए लड़कियों की निजी तस्वीरों को गंदे तरीके से इस्तेमाल किया जाता है. व्हाट्सअप पर ऐसी तस्वीरों की भरमार है. और ये तस्वीरें भेजने वाले हमारे समाज के तथाकथित पढ़े लिखे, समझदार नौजवान हैं. दरअसल लड़कियों को लेकर समाज कभी भी संवेदनशील नहीं रहा है. लड़की सिर्फ़ भोग की वस्तु की तरह ही देखी गई है. त्योहार को त्योहार की तरह ही मनाया जाना चाहिए, लेकिन होली के बहाने महिलाओं का यौन शोषण तक होता है. कभी भांग के नशे में, तो कभी शराब के नशे में तो कभी रंगों के बहाने. पुलिस और प्रशासन को होली पर सुरक्षा के पुख़्ता इंतज़ाम करने चाहिए, लेकिन पुलिस भी चप्पे चप्पे पर हर इक शख्स पर नज़र नही रख सकती है तो ये हमारी आपकी ही ज़िम्मेदारी है.

इस ख़ामोशी का खामियाज़ा सबको भुगतना पड़ेगा!

एक बड़ी ज़िम्मेदारी लड़कियों की खुद की भी है, क्योंकि हमारे लिए होली कब बदरंग हो जाए कहा नहीं जा सकता है. होली जितना रंगीन त्योहार है उतना ही इसके बहाने बत्तमीज़ियां,छेड़छाड़ और अश्लीलता होती है. और ये सब करने वाले अजनबी नहीं बल्कि हमारे आसपास पहचान वाले, रिश्तेदार, दोस्त ही होते हैं. ऐसे में लड़कियां थोड़ा सा ध्यान रखकर बहुत हद तक इन चीज़ों से बच सकती हैं. अगर कोई रंग लगाने आता है तो हाथ-पैर ना चलाएं ना ही भागने की कोशिश करें क्योंकि ऐसा करने से सामने वाले को मौका मिलता है जोर जबरदस्ती करने का. कोई रंग गुलाल लगाता है तो उसे कहिए कि मैं खड़ी हूं आप आराम से रंग लगा ले, लेकिन हद में रहकर. लड़कियों के विरोध करने पर हुड़दंगियों को मौका मिलता है हमें यहां वहां छूने का तो बेहतर है कि हम ही उन्हें तमीज़ से होली खेलने का तरीका बताएं. 

हालांकि सच तो ये है कि लड़कियां खुद कितना भी बच कर क्यों न रहें इंसान के रूप में भेड़िए उन पर नज़रें गड़ाए ही रहते हैं, वो मौका मिलते ही अपने शिकार को दबोच लेते हैं. ये सब लिखते वक्त अफ़सोस हो रहा है कि एक त्योहार के दिन ऐसा लिखना पड़ रहा है, लेकिन सच हमेशा कड़वा होता है. और होली का एक चेहरा ये भी है. हमें आपको मिलकर त्योहारों के खुशनुमा चेहरे को बरकरार रखना है. तो होली खेलिए खुशियों के रंगों से, इश्क के रंग से, गुलाल से ताकि आपकी होली किसी की ज़िंदगी बेरंग ना कर जाए. रंगों का त्योहार सबके जीवन में खुशियां लाए इसी कामना के साथ हैप्पी होली.

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(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक विषयों पर टिप्पणीकार हैं)
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)

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