बजट 2018: देसी निवेशकों को लुभा नहीं पाए वित्त मंत्री अरुण जेटली
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बजट 2018: देसी निवेशकों को लुभा नहीं पाए वित्त मंत्री अरुण जेटली

इस बार के बजट की फौरन ही समीक्षा का काम बहुत कठिन लग रहा है. 

बजट 2018: देसी निवेशकों को लुभा नहीं पाए वित्त मंत्री अरुण जेटली

इस बार के बजट की फौरन ही समीक्षा का काम बहुत कठिन लग रहा है. वित्तमंत्री के बजट भाषण के शुरूआती आधा घंटे में जो कुछ भी कहा गया उसमें या तो पिछले एक साल या मौजूदा सरकार के चार साल की उपलब्धियों का ज़िक्र ही ज्यादा था. हालांकि ये बातें आर्थिक सर्वेक्षण में पहले ही बताई जा चुकी थीं. वैसे वित्तमंत्री को उन्हें दोहराने की जरूरत इसलिए पड़ी होगी क्योंकि इसी से पता चलता है कि इस बार सरकार कहां-कहां ज़्यादा रकम देने का इरादा रखती है. लेकिन पहली नज़र में अगले साल के लिए कोई क्रांतिकारी बजट प्रावधान दिख नहीं रहा है. 

गौरतलब है कि बजट का अपना मकसद अगले साल के खर्च के लिए धन का जुगाड़ करना होता है. यानी यह बताना होता है कि देश के किस-किस समर्थ और संपन्न तबके से पैसे की उगाही होगी. लेकिन वित्तमंत्री के भाषण में पहले यह बताया गया कि हम खर्च कहां-कहां करेंगे. खर्च की बात पहले इसलिए कि इससे सरकार को तालियां बजवाने में आसानी होती है. लेकिन सरकारी खर्च के एलान से भी अंदाजा लगता है कि वह क्या करना चाह रही है. और अगर हाल के हाल पता करना हो कि सरकार की मंशा का असर क्या होने वाला है तो उसका सबसे अच्छा संकेतक शेयर बाजार होता है.

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शेयर बाज़ार के उतार-चढ़ाव से ही पता चलता है कि देश का समर्थ और संपन्न तबका अपने लिए बजट को कैसा मान रहा है. यही समृद्ध तबका आर्थिक गतिविधियों का नियंता माना जाता है. जटिलताओं से भरपूर इस बजट के पेश होने के फौरन बाद यानी इतनी जल्दी विश्लेषण कर पाना कठिन काम है. फिर भी संकेतक के रूप में शेयर बाजार के रूख के आधार पर बजट की फौरी समीक्षा की जा सकती है.

शेयर बाजार के फौरी रूख से अंदाज़ा
बजट भाषण के आधे हिस्से के पढ़े जाने तक शेयर बाजार में कोई बड़ी हलचल नहीं दिखी. सेंसक्स जो लगभग 36 हजार के स्तर पर था वह ऊपर-नीचे होता रहा. जैसे-जैसे भाषण बढ़ा शेयर गिरने लगे. लगभग एक घंटे का भाषण गुज़रने के बाद सेंसक्स 200 अकं नीचे आ गया. थोड़ी देर के लिए 400 अंक  नीचे भी आया. हालांकि बजट जैसे भारीभरकम कार्यक्रम के दौरान यह आंकड़ा भी किसी बहुत बड़ी निराशा को नहीं बताता था. उसके बाद यह गिरावट खत्म भी हो गई. कुल मिलाकर कह सकते हैं कि जो बाजार बजट के जरिए देश में आर्थिक विकास की संभावना देखना चाह रहा था वह बिल्कुल भी खुश नहीं हुआ. दिन के आखिरी घंटों में जिस तरह से हर आधे घंटे में सेंसेक्स का आंकड़ा लाल और हरा रहा उससे यह भी अंदाजा लग रहा है कि निवेशकों को बजट अभी भी समझ में नहीं आ रहा है. बहरहाल,  फिलहाल इतना अंदाजा जरूर लगा सकते हैं कि देश में आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाने के मामले में इस बजट को उम्मीद बढ़ाने वाला नहीं माना जा रहा है.

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जब कैपिटल गेन टैक्स का ज़िक्र आया
शेयर बाजार में एक साल तक निवेश बनाए रखने वालों को मुनाफे पर टैक्स नहीं लगता था. ऐसा अंदेशा था कि यह छूट खत्म हो सकती है. इस अंदेशे के मुताबिक जैसे ही कैपिटल गेन टैक्स लगने का जिक्र आया तो थोड़ी देर के लिए शेयर बाजार गिरकर गोता लगाने लगा. हालांकि आधे घंटे में ही फिर संभलता नज़र आया. बहरहाल पूरे भाषण के दौरान सेंसेक्स ढ़ाई सौ अंकों के उतार से ज्यादा नहीं गिरा. यह बताता है कि शेयर बाजार यानी देश के छोटे-बड़े निवेशक इस बजट को यथास्थिति बनाए रखने वाला ही मान रहे हैं.

बहस चल रही है बजट के अच्छे-बुरे पर
वैसे पहले से अंदेशा था कि देश की माली हालत के मद्देनजर लोकलुभावन बजट की उम्मीद नहीं है. फिर भी हर सरकार के पास उपलब्ध संसाधनों का बंटवारा करने में अपनी न्यायपूर्ण नीयत जाहिर करने का मौका होता है. वंचित वर्गों को ज्यादा हिस्सा देने का मौका बजट ही होता है. लेकिन इस बार यह हिसाब लगाने में भी दिक्कत ही आ रही है. अर्थशास्त्री और आर्थिक मामलों के जानकार बजट का आगा-पीछा समझने में लगे हैं. मीडिया हर तबके के लोगों से उनकी राय लेने में लगा है. कई जटिलताओं से भरे और लंबे चैड़े बजट की तर्कपूर्ण समीक्षा में समय तो लगेगा ही.

 

(लेखिका, प्रबंधन प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ और सोशल ऑन्त्रेप्रेनोर हैं)

(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी हैं)

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