दिसंबर के महीने में भारत सरकार के नीति आयोग ने एक महत्वपूर्ण रिपोर्ट जारी की है जिसकी कहीं कोई चर्चा ही नहीं है. यह सतत विकास लक्ष्यों की रिपोर्ट है जो यह बताती है कि भारत में सतत विकास लक्ष्यों की वर्तमान स्थिति क्या है?
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दिसंबर के महीने में भारत सरकार के नीति आयोग ने एक महत्वपूर्ण रिपोर्ट जारी की है जिसकी कहीं कोई चर्चा ही नहीं है. यह सतत विकास लक्ष्यों की रिपोर्ट है जो यह बताती है कि भारत में सतत विकास लक्ष्यों की वर्तमान स्थिति क्या है? आपको बता दें कि सतत विकास लक्ष्य दुनिया भर में 2030 के लिए तय किए गए हैं जिनके आधार पर देश अपने विकास की रूपरेखा तय करके उन्हें पूरा करने के लिए वचनबद्ध हैं. इन 17 लक्ष्यों को दुनियाभर में वर्ष 2016 में मान्यता दी गई थी.
मिलेनियम डेवलपमेंट गोल्स (एमडीजी)
इससे पहले दुनियाभर में मिलेनियम डेवलपमेंट गोल्स (एमडीजी) तय किए गए थे, जिन्हें 2015 तक पूरा किया जाना था, गंभीर बात यह है कि वह पूरे नहीं हो पाए. सतत विकास लक्ष्यों के मामलों में भी इस रिपोर्ट ने जो कुछ बताया है, वह हमारे लिए चिंता में डाल देने वाला है. सबसे हैरानी की बात यह है कि सतत विकास लक्ष्यों की इस रिपोर्ट में भारत को 57 अंक दिए गए हैं. यानी माना जा सकता है कि आजादी के लंबे अर्से के बाद अब भी बहुत काम किया जाना बाकी है.
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2030 का लक्ष्य
राज्यवार स्थिति देखेंगे तो यह और खराब है. सतत विकास लक्ष्यों का सबसे पहला लक्ष्य नो पावर्टी है. यानी वर्ष 2030 तक हर जगह पर और सभी लोगों की गरीबी को खत्म करना. वर्तमान में इसे 1.25 डॉलर प्रतिदिन पर गुजारा करने वाले वालों के संदर्भ में आंका जाता है. इसके अलावा यह कहा गया है कि राष्ट्रीय परिभाषाओं के अनुरूप गरीबी के सभी आयामों के मद्देनजर सभी आयु-वर्ग के पुरुषों, महिलाओं और बच्चों में व्याप्त गरीबी को वर्ष 2030 तक कम से कम आधा कर लेना है.
देश में चुनावी माहौल बन रहा है और कई तरह के विमर्श सतह पर आ रहे हैं. चौकीदार और चोर जैसे ट्रेंड चल रहे हैं, लेकिन गरीबी, शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि और रोजगार जैसे विषयों को प्राथमिकता के साथ कोई नहीं छू रहा है. आखिर यह सवाल क्यों नहीं पूछा जाना चाहिए कि सतत विकास लक्ष्यों के सबसे पहले बिंदु नो पावर्टी का एजेंडा क्या है. आखिर क्यों बिहार, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, मणिपुर, उत्तर प्रदेश, दिल्ली जैसे राज्य सबसे खराब प्रदर्शन कर रहे हैं, यानी यहां सबसे ज्यादा गरीबी है.
नीति आयोग ने डॉ अरविंद पनगढिया की अध्यक्षता में 16 मार्च 2015 को भारत में गरीबी उन्मूलन के लिए एक कार्य दल का गठन किया गया था. इस दल का मुख्य काम गरीबी रेखा की सर्वमान्य परिभाषा तैयार करना, केन्द्र और राज्यों के बीच समन्वय करना, गरीबी उन्मूलन का रोडमैप तैयार करना और मौजूदा कार्यक्रमों की समीक्षा कर उनमें सुधार करना और गरीबी रोधी कार्यक्रमों और कार्यनीतियों के लिए सुझाव देना था. इसमें महत्वपूर्ण तो यह था कि गरीबी रेखा की सर्वमान्य परिभाषा तय कर ली जाती, क्योंकि इससे पहले देश में गरीबी के पैमाने क्या हों, इस पर बहुत विवाद रहा है. इस कार्यदल ने 11 जुलाई 2016 को अपनी रिपोर्ट भी सरकार को सौंप दी, लेकिन इसके बाद से अब तक यह रिपोर्ट विचाराधीन ही है, उसके आधार पर नीतियों में कोई खास बदलाव हुए हों, ऐसा कहीं नजर नहीं आया.
देश में गरीबी बढ़ी है या अमीरी, यह एक दूसरा सवाल है. देश में कितने गरीब लोग उस परिभाषा से बाहर आ गए, यह खबर कहीं पढ़ने में नहीं आती, लेकिन देश में अमीरी कितनी बढ़ी है, इसकी खबर जरूर हर साल हम पढ़ते हैं. यह देश का नहीं दुनिया का संकट है. बीते तीन—चार सालों में जो रिपोर्ट आई हैं वह लगातार इस बात की ओर इशारा कर रही हैं कि देश की दुनिया की आर्थिक संपदा कुछ ही तिजोरियों में कैद होती जा रही है.
भारत में दस प्रतिशत लोगों के पास देश की संपदा का तकरीबन 77 प्रतिशत हिस्सा है. हिंदुस्तान में ही कुल संपत्ति का आधे से ज्यादा केवल 1 प्रतिशत हाथों में है और करीब साठ प्रतिशत लोगों के पास ही महज 4.8 प्रतिशत दौलत है, रूपयों में यह संख्या कोई चालीस करोड़ बैठती है. इसके साथ ही एक बात और यह कि भारत में पिछले साल 18 नए धनकुबेर यानी अरबपति पैदा हो गए हैं, अब इन धनकुबेरों की संख्या बढ़तर 119 हो गई है.
सोचिए कि इसी गति और दिशा में चले तो जब दुनिया के सामने 2030 में सतत विकास लक्ष्यों की उपलब्धि पर जब हम रिपोर्ट पेश करेंगे तो इसके सबसे पहले बिंदु के जवाब में हम क्या लिखेंगे.
(लेखक राकेश कुमार मालवीय वरिष्ठ पत्रकार हैं)
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)