'जय श्री राम' ही नहीं बल्कि राम के नाम से जुड़ा एक और नारा बंगाल चुनाव में अंदर ही अंदर चल रहा है, जो कम ही लोगों को सुनाई दे रहा है. ये नारा न तो कहीं लिखा दिखाई देगा और न ही कोई शख्स ये नारा लगाता दिखाई देगा. लेकिन इसका महत्व 'जय श्री राम' के नारे से कम नहीं है.
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आप सभी को ये तो पता होगा कि 'जय श्री राम' का नारा आज की तारीख में बीजेपी के लिए सबसे चर्चित नारा बन चुका है. ये नारा हिंदू वोटों को जोड़कर रखने के लिए भी है और ममता बनर्जी को चिढ़ाने के लिए भी. इस नारे को आप बीजेपी की रैली में भी आमतौर पर सुन सकते हैं. यही नहीं ये नारा बंगाल के छोटे-छोटे बच्चों की जुबान पर भी चढ़ चुका है.
लेकिन राम के नाम से जुड़ा एक और नारा बंगाल चुनाव में अंदर ही अंदर चल रहा है, जो कम ही लोगों को सुनाई दे रहा है. ये नारा न तो कहीं लिखा दिखाई देगा और न ही कोई शख्स ये नारा लगाता दिखाई देगा. लेकिन इसका महत्व 'जय श्री राम' के नारे से कम नहीं है. अब ये समझना भी जरूरी है कि ये नारा आखिर है किसका? तो आपको बता दें कि बंगाल चुनाव में ये नारा बीजेपी का नहीं बल्कि वाम दल के कार्यकर्ताओं का है. अब ये भी समझना जरूरी है कि वाम दल को राम से क्या लेना देना? वामपंथी आखिर राम के नाम से जुड़ा ये नारा क्यों लगाएंगे?
दरअसल, बंगाल चुनाव की ये जमीनी हकीकत है. क्योंकि ममता बनर्जी के 10 साल के शासन में TMC नेताओं ने सबसे ज्यादा किसी पर कहर बरपाया है तो वो हैं वामपंथी दलों के कार्यकर्ता. 2018 में बंगाल में हुए पंचायत चुनाव में बीजेपी के साथ-साथ वामपंथी कार्यकर्ताओं के साथ भी कम बुरा बर्ताव नहीं हुआ. बीजेपी की सरकार केंद्र में है ऐसे में पार्टी कार्यकर्ताओं के सपोर्ट में अमित शाह से लेकर तमाम बड़े नेता खड़े दिखे. लेकिन वामपंथी नेताओं ने अपने कार्यकर्ताओं को भगवान भरोसे छोड़ दिया.
2019 के लोक सभा चुनाव में बंगाल में बीजेपी की 18 सीटों पर जीत के पीछे भी इन वामपंथी कार्यकर्ताओं का अहम रोल था. 2019 के लोक सभा चुनाव में सिर्फ वामपंथी ही नहीं बल्कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने भी TMC को हराने में बीजेपी का साथ दिया. वैसे 2019 के लोक सभा चुनाव में बंगाल में कांग्रेस और वामपंथ ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था. इनके कैडर को पता था कि दोनों दल TMC का मुकाबला नहीं कर सकते, इसीलिए दोनों दलों के कार्यकर्ताओं ने बीजेपी को जिताने की भरसक कोशिश की.
2021 के विधान सभा चुनाव में भी कांग्रेस और वामपंथी दल गठबंधन के साथ चुनाव लड़ रहे हैं. लेकिन गठबंधन के नेताओं के रवैये देखकर उनके कार्यकर्ताओं में बेहद निराशा है. बंगाल में पहले फेज का मतदान हो चुका है लेकिन यहां न तो कांग्रेस न ही वामपंथ का कोई बड़ा नेता प्रचार के लिए आया. दोनों दलों के नेताओं की इस उदासीनता ने ही बंगाल में '2021 में राम... 2026 में वाम' के नारे को जन्म दिया है. ये नारा नेताओं का नहीं, वामपंथी कार्यकर्ताओं का है.
अब इस नारे का मतलब समझिए. इसका सीधा अर्थ तो ये है कि बंगाल में वामपंथी कार्यकर्ता 2021 के विधान सभा चुनाव में बीजेपी की सरकार चाहते हैं, लेकिन 2026 में ये वामपंथ की सरकार बनाने के लिए काम करेंगे. इसका एक अर्थ ये भी है कि पहले बंगाल की सत्ता से 2021 में TMC को हटाया जाए फिर 2026 में बीजेपी से निबटा जाएगा. बंगाल में पहले फेज के मतदान में चाहे पुरुलिया हो, बांकुड़ा हो, झारग्राम हो या फिर मिदनीपुर का इलाका, इस नारे के मुताबिक ही वामपंथी दलों के कार्यकर्ताओं ने मतदान किया है और आने वाले फेज में भी कांग्रेस और वामपंथी कार्यकर्ताओं का मूड कुछ इसी तरह का दिख रहा है.
2019 के लोक सभा चुनाव में इन्हीं वोटरों की वजह से बीजेपी का वोटबैंक 40% तक पहुंच गया था. यानी 2021 के विधान सभा चुनाव में बीजेपी को TMC को मात देने के लिए महज 2 से 3% वोट बढ़ाने की जरूरत है. अगर बीजेपी ऐसा करने में कामयाब रही तो, बंगाल में बीजेपी की सरकार तय है. यही नहीं केंद्रीय ऐजेंसी NIA द्वारा TMC नेता चक्रधर महतो की गिरफ्तारी से भी वामपंथी कार्यकर्ताओं का बीजेपी की तरफ झुकाव बढ़ेगा. ऐसा इसलिए, क्योंकि चक्रधर महतो पर 2009 में CPM के नेता के मर्डर का आरोप है. कुल मिलाकर 2021 के विधान सभा चुनाव में TMC को सत्ता से बेदखल करने के लिए वाम और राम एक हो गए हैं.
(लेखक रवि त्रिपाठी ज़ी न्यूज़ में सीनियर स्पेशल करस्पॉन्डेंट हैं)
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)