मातृ-शक्ति पूजन: एक शाश्वत परंपरा
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मातृ-शक्ति पूजन: एक शाश्वत परंपरा

मातृ-शक्ति पूजन: एक शाश्वत परंपरा

बचपन की एक घटना अब भी जेहन में ताजी है। उत्तराखंड के अल्मोड़ा से एक साधु हमारे घर आए थे। पिताजी केएक मित्र के वह दोस्त थे। जब वो घर आए तो उनसे परिवार के सभी लोग बातचीत करने लगे। मैं भी आध्यात्म की कुछ बातें पूछने लगा। चर्चा चलने लगी तभी मैंने भगवान शंकर और पार्वती को लेकर एक प्रश्न पूछा। बाबा ने बड़े ही प्यार से प्रश्न का चुटकियों में उदारण देते हुए निवारण कर दिया और मुझसे पूछ बैठे - क्या तुम दर्शन करना चाहते हो शंकर और पार्वती के? मैं हैरान रह गया। मेरे मुंह से निकला- हां। फिर उन्होंने मेरे मां-बाबुजी को एक तरफ सोफे पर बैठने के लिए कहा। फिर उन्होंने मुझसे दोनों के पैर छूकर आशीर्वाद लेने को कहा। मैंने वैसा ही किया। फिर उन्होंने समझाया - मां-बाप से बढ़कर कोई देवी-देवता नहीं है। इनका आदर करना सीख जाओगे तो भगवान तुम्हारे पास दौड़े चले आएंगे। लेकिन मुश्किल यही है कि मां-बाप का हृदय से आदर कलियुग में कितने लोग कर पाते है? उनका यही कहना था कि अगर कोई संतान अपने मां-बाप की पूजा (आदर) नहीं कर पाती तो फिर उसके पूजा-पाठ को भगवान भी स्वीकार नहीं करते। आठ साल की उम्र में उनके बातों के मर्म को मेरे लिए समझ पाना मुश्किल था। लेकिन अब उनकी कही बात का मर्म और उसका अर्थ थोड़ा-बहुत समझ में आता है।

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शास्त्रों और पुराणों में यह बात पढ़ने में आती है कि नारी का सम्मान हमेशा होना चाहिए। संस्कृत में एक श्लोक है- 'यस्य पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता: यानी जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं। हमारे ग्रंथों में अनेक महान, पतिव्रता व दृढ़ इच्छा शक्ति वाली महिलाओं का वर्णन मिलता है। महाभारत में कहा गया है कि जिस कुल में नारी का आदर नहीं होता उस कुल का सर्वनाश हो जाता है। महाभारत में भीष्म पितामह के मुताबिक स्त्रियां ही घर की लक्ष्मी हैं। पुरुषों को उनका भलीभांति सत्कार करना चाहिए। उसे प्रसन्न रखकर उसका पालन करने से स्त्री लक्ष्मी का स्वरूप बन जाती हैं। पौराणिक ग्रंथों में यह भी कहा गया कि जिस कुल में नारी की पूजा अर्थात सत्कार होता है उस कुल में दिव्य गुणों वाली संतान होती है और जिस कुल में स्त्रियों के पूजा नहीं होती वहां सभी क्रिया निष्फल हैl

आज के दौर में एक संतान का मां-पिता की पूजा करने वाली बात कई लोगों के गले तो बिल्कुल नहीं उतरेगी। खासकर उन लोगों के लिए जो अपनी उपलब्धियों के सिर्फ अपनी योग्यता पर रश्क करते हैं। उनका यह अहंकार और जमीर हर्गिज यह नहीं मानता कि उनके जीवन की कामयाबी में मां-पिता का भी कोई भूमिका भी रही है।

मुझे मां-बाप और बुजुर्गों के सम्मान से जुड़ी प्रतीक के रुप में अपनाई और आयोजित की जानेवाली हर परंपरा मुझेअच्छी लगती है। उम्र के इस पड़ाव पर मुझे ऐसा लगता है कि बुजुर्गों और बूढ़े होते मां-बाप को उतने ही सम्मान और हिफाजत से रखने की जरूरत है जिस तरीके से उन्होंने अपने अबोध बच्चे को पाला है। मैं सम्मान की इस विचारधारा का समर्थक हूं क्योंकि मैं इस बात को मानता हूं कि बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद उनकी संतान के लिए मायने रखता है।

ऐसा ही एक अद्भुत परंपरा को मैं राजस्थान के इकलौते हिल स्टेशन माउंटआबू में देखता हूं। मैं वहां अपने एक अभिन्न मित्र के बुलावे पर इस अद्भुत समारोह में शामिल होने के लिए हमेशा से जाता रहा हूं। वहां माहौल अद्भुत होता है जब एक संतान अपने मां-पिता की अराधना करती है। यह क्षण भावविभोर कर देनेवाला होता है। क्योंकि मातृ शक्ति की इस पूजा के मौके पर हर पल खास होता है जिसकी अनुभूति उस स्थान पर मौजूद रहकर ही महसूस की जा सकती है।

माउंटआबू के शंकर विद्यापीठ में मातृ शक्ति पूजन के जरिए महिलाओं के आदर और उनका सम्मान किए जाने का संदेश देने की परंपरा कई साल से चली आ रही है। शंकर विद्यापीठ के विद्यार्थियों में मातृ शक्ति पूजन देश में एक नई अलख जगाता है। महिलाओं को सम्मान देने और उनके आदर की यह परंपरा शंकर विद्यापीठ की बेहद पुरानी परंपरा है जिसमें शामिल होने के लिए हर साल भारी तादाद में देशभर से महिलाएं और उनके अभिभावक आते है।

मातृ शक्ति पूजन के दौरान विद्यार्थी अपने मां की पूजा करता है। अपने-अपने स्कूल के बच्चे एक थाल में तिलकऔर माला लेकर सबसे पहले अपनी मां के चरण स्पर्श करते है। तिलक लगाने के बाद अपनी मां को माला पहनाते है। अपने बच्चों को ऐसा करते देख कई मां की आंखों में आंसू की अविरल धारा बहती है। यह दृश्य सबको भाव-विभोर कर देने के लिए काफी होता है। ऐसा दृश्य सिर्फ हिंदुस्तान की पावन धरती पर ही देखने को मिल सकता है जहां शाश्वत संस्कृति की शाश्वत धारा बहती है। ऐसा मुमकिन है कि मेरी बातें कई लोगों के समझ में नहीं आ पाई हो। हो सकता है मैं उसे ठीक से समझा नहीं पाया हूं। मैं उनसे विनम्र अनुरोध करूंगा कि वह साल में एक बार होनेवाले इस मातृ पूजन परंपरा का साक्षात गवाह जरूर बने । हो सकता है कि आप इस दौरान कुछ ऐसा सीखे जो आपके परिवार की बेहतरी में सहायक हो, हो सकता है कि आप इस दौरान कुछ ऐसा महसूस करे जो आपके शख्सियत को बेहतर बनाने में अहम भूमिका निभाए।

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