COVID-19 से जुड़ीं गलत साइंटिफिक सूचनाएं कैसे बनी चीनी प्रोपेगेंडा का हथियार
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COVID-19 से जुड़ीं गलत साइंटिफिक सूचनाएं कैसे बनी चीनी प्रोपेगेंडा का हथियार

इस पर भी ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि अब तक SARS-CoV-2 के प्राकृतिक उद्गम का भी पता नहीं चला है. हालांकि इसका आधार चमगाद़ड़ों मे उत्पन्न होना बताया जा रहा है, अभी तक कोई मध्यवर्ती पोषक जानवर पहचाना नहीं जा सका है. इंटरनेशनल साइंस जनरल में छपी एक हालिया खबर के मुताबिक, प्रगति या उसके अभाव में, SARS-CoV-2 के प्राकृतिक उदगम का पता करने की प्रकिया की समीक्षा हुई थी.

COVID-19 से जुड़ीं गलत साइंटिफिक सूचनाएं कैसे बनी चीनी प्रोपेगेंडा का हथियार

 

राजनीतिक पॉलटिकल एजेंडे से प्रेरित पत्रकारों के बीच ये सामान्य सी आदत है कि वो पहले से तय नतीजे पर पहुंचाने वाले एक अफसाने को गढ़ने या बरकरार रखने के लिए तथ्यों या सुबूतों को गलत तरीके से इस्तेमाल करते हैं. अब लगता है कि साइंस भी उनकी उसी रणनीति का नया शिकार बन गई है. कोरोना जैसी वैश्विक महामारी की जिम्मेदारी से बचने के लिए चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने वैज्ञानिकों की बिरादरी और मुख्यधारा की मीडिया के बीच आक्रामक रूप से प्रचार किया कि ये बीमारी प्राकृतिक रूप से पैदा हुई है और जानवरों से मनुष्य में आई है.

उदाहरण के लिए, चीन के सरकारी नियंत्रण वाले सीजीटीएन मीडिया ग्रुप ने पॉली हायस के कोरोना वायरस पर लिखे लेख को दोबारा संशोधन के साथ छापा. पॉली हायस इंग्लैंड की वेस्टमिन्स्टर यूनीवर्सिटी में पैरासिटोलॉजी एंड माइक्रोबायलॉजी विभाग में लेक्चरर हैं. उनके लेख का शीर्षक था, ‘Here’s how Scientists know the corona virus came from bats and wasn’t made in lab’.

पुराना और संशोधित किया हुआ, दोनों लेख इस लाइन से शुरू होते हैं: स्पष्ट तौर पर SARS-CoV, जो कोरोना वायरस के लिए जिम्मेदार है, आनुवांशिक हेरफेर के कोई संकेत नहीं देता है. वो हायस का हवाला देते हैं, अगर वायरस जींस में बदलाव के जरिए लैब में बनाया जाता तो जीनोम डाटा में हेरफेर के कुछ संकेत मिलते. इसमें नए वायरस के आधार के तौर पर मौजूदा वायरल क्रम भी सुबूत के तौर पर शामिल है और साफ है कि जिन जेनेटिक एलीमेंट्स को लक्षित किया गया (या मिटाया गया) वो भी.

"लेकिन इस तरह के कोई सुबूत मौजूद नहीं हैं. ये बहुत ही असामान्य है कि ऐसी कोई तकनीक जिसे किसी वायरस में जेनेटिक बदलाव के लिए इस्तेमाल किया जाय, कोई जेनेटिक संकेत नहीं छोड़ती जैसे- डीएनए कोड के विशेष तौर पर पहचाने जाने योग्य टुकड़े." 

सबसे पहले तो, SARS-CoV-2 एक आरएनए वायरस है, जिसका मतलब https://www.rochester.edu/newscenter/covid-19-rna-coronavirus-research-4... , जो मानवों और अन्य स्तनधारियों में नहीं होता है, SARS-CoV-2 के लिए जेनेटिक मेटीरियल आरएनए (RNA) में एनकोडेड होता है, डीएनए (DNA) में नहीं. इसके अतिरिक्त, वायरसों में आनुवांशिक छेडछाड़ को पहचानना हमेशा से ही विवादित मसला रहा है. हालांकि मीडिया में लगातार ये विषवमन करते रहना कि आनुवांशिक छेडछाड़ हमेशा कुछ संकेत छोड़ जाती है, एक शहरी मिथक के स्तर पर पहुंच जाता है.

इस पर भी ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि अब तक SARS-CoV-2 के प्राकृतिक उद्गम का भी पता नहीं चला है. हालांकि इसका आधार चमगाद़ड़ों मे उत्पन्न होना बताया जा रहा है, अभी तक कोई मध्यवर्ती पोषक जानवर पहचाना नहीं जा सका है. इंटरनेशनल साइंस जनरल में छपी एक हालिया खबर के मुताबिक, प्रगति या उसके अभाव में, SARS-CoV-2 के प्राकृतिक उदगम का पता करने की प्रकिया की समीक्षा हुई थी.

इस लेख के मुताबिक बैट कोरोना वायरस RATG 13 और RmYN02 SARS-CoV-2, ये दो वायरस SARS-CoV-2 के सबसे करीब के फिर भी थोड़े दूर सम्बंधी हैं, जिनके जीनोम SARS-CoV-2 के जीनोम से क्रमश: 96 फीसदी और 93 फीसदी तक मिलते हैं. हालांकि RATG 13 96 फीसदी SARS-CoV-2 से मिलता जुलता है, ये रिसेप्टर बाइंडिंग डोमेन है जो एंजाइम-2 रिसेप्टर (ACE2) को ह्यूमन एंजियोटेंसिन में बदलते हुए बांधने की इजाजत वायरस को देता है, का स्ट्रक्चर अलग होता है और बताता है कि RATG 13 प्रभावी ढंग से ह्यूमन ACE2 को बांध नहीं सकता है.

नेचर की खबर ये भी नहीं बताती कि RmYN02 का RBD केवल 61.3 फीसदी सीक्वेंस ही SARS-CoV-2 से पहचान करता है, यानी कि लगता नहीं है कि RmYN02 मानव कोशिकाओं को बांध भी सकता है. अगर बैट कोरोना वायरस का कोई भी सम्बंधी मानव कोशिकाओं को प्रभावी ढंग से नहीं बांध पाता है और कई मध्यवर्ती पोषक जानवर भी नहीं पाया गया है तो फिर कैसे SARS-CoV-2 ने इतनी घनिष्ठता से मानव संक्रमण कर दिया, यहां तक कि शुरुआती मामलों में भी?

मानव संक्रामकता और संक्रामक तत्वों के लिए ऐसी ''पूर्व-अनुकूलता' को आनुवांशिक हेरफेर के जरिए आसानी से समझाया जा सकता है. 2015 में यूनीवर्सिटी ऑफ नॉर्थ केरोलीना के राल्फ बारिक और वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी की 'वैट वुमेन' झेंग ली शी ने मिलकर एक साइंटिफिक लेख लिखा था, जिसमें एक नए नए अलग थलग किए गए कोरोना वायरस ( SHC014) के RBD और SARS-CoV-2 के आधार के कॉम्बीनेशन की व्याख्या की.

इस प्रयोग के माध्यम से एक नया नोवेल वायरस अस्तित्व में आया, चिमेरा SHC014-MA15, जो अनुकूलित मॉडल का उपयोग कर मानव संक्रामकता का परीक्षण करने पर दोनों में एक मजबूत वायरल प्रतिकृति दिखाता है, विट्रो और विवो दोनों में. गहरा नैदानिक प्रभावों की क्षमता वाले सिंगल अमीनो एसिड्स को कई प्वॉइंट पर बदलकर ऐसी ही बढ़त मानव संक्रामकता और पैथोजेनिसिटी मे भी पाई जा सकती है, ऐसे बदलाव जो प्राकृतिक बदलावों से अन्यथा अविभेद्य हो सकते हैं. अंत में SARS-CoV-2 की आनुवांशिक हेरफेर का सबसे खास संकेत एक फ्यूरिन पॉलीबेसिक दरार की मौजूदगी है, एक ऐसा स्ट्रक्चर जो कोरोना वायरस के किसी भी सम्भावित पूर्वज में उपस्थित नहीं है.

वास्तव में SARS-CoV-2 से फ्यूरिन पॉलीबेसिक दरार साइट का कृत्रिम निष्कासन मानव की कार्यक्षमता को प्रभावित नहीं करता है. इससे पता चलता है कि इस उद्देश्य के लिए इसकी आवश्यकता नहीं है, एक प्राकृतिक विकासवादी प्रतिक्रिया के दौरान सकारात्मक प्रकट होने की संभावना नहीं है. ऐसी फ्यूरिन पॉलीबेसिक क्लीवेज साइटों के कृत्रिम मिलन के लिए तकनीकों का उपयोग 10 सालों से किया जा रहा है.

वैज्ञानिक या मीडिया की 'पारंपरिक बुद्धिमत्ता' और चीनी प्रोपेगेंडा के विपरीत इस बात के पर्याप्त प्रमाण हैं कि कोविड 19 महामारी कोरोना वायरस आनुवांशिक हेरफेर का परिणाम है.

(लॉरेंस सेलिन, पीएचडी अमेरिकी सेना के एक रिटायर्ड कर्नल हैं. उन्होंने पहले यूएस आर्मी मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ इनफेक्शियस डिजीज में अपनी सेवाएं दी हैं और फार्मा इंडस्ट्री में बेसिक और क्लीनिकल रिसर्च भी की है. उनका ई-मेल आईडी Lawrence.sellin@gmail.com है)    

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