इंडियन मैचमेकिंग: भारत में जोडियां बनाने की समस्या की बस मुंह दिखाई जैसी
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इंडियन मैचमेकिंग: भारत में जोडियां बनाने की समस्या की बस मुंह दिखाई जैसी

सीमा अधिकांश मामलों में अपने प्रोफेशन के साथ ईमानदारी बरतती है. लेकिन इंडियन इकोसिस्टम ऐसा है कि उसे वो करना पड़ता है, जिसे वो कहती है- कॉम्प्रोमाइज या समझौता. 

इंडियन मैचमेकिंग: भारत में जोडियां बनाने की समस्या की बस मुंह दिखाई जैसी

नई दिल्ली: कुछ साल पहले कोरोना वायरस (Coronavirus) फ्री दुनियां में, एक विषाक्त रिश्ते से ताजा ताजा बाहर आई मैं- एक तरह से जबरिया रिश्ता. इमोशनली मोहपाश में 70 फीसदी भारतीय इसी तरीके में विश्वास करते हुए शादी कर लेते हैं- एक अरेंज मैरिज. मेट्रोमोनियल वेबसाइट ने उस लड़के के बारे में ऐसा कुछ भी ‘आउट ऑफ द बॉक्स’ नहीं बताया था, जिससे मैं दिल्ली कैफे में मिलने वाली थी, सो मिलना जरूरी हो गया था.

तीसरा सवाल इस ‘इंटरव्यू’ में मुझसे पूछा गया कि क्या मैं कुकिंग कर सकती हूं. चौथा सवाल था कि क्या इससे पहले मैं कभी रिलेशनशिप में रही हूं, ‘मीडिया में लड़कियां किसी के साथ भी सो जाती हैं’ (हां, उसने मुझसे ये भी कहा). मेरे सिर को अनौपचारिक पुष्टि में हिलते देख, उसने कहा, ‘ये अच्छा है कि तुमने मुझे बता दिया, लेकिन लगता है तुम रूल्स को नहीं जानतीं. दूसरों को ये बातें मत बताओ, वो इसे अच्छा नहीं समझते’.

वो आदमी जाहिर है वो मेरा नहीं हो सका. महज इसलिए क्योंकि वो कुकिंग नहीं कर सकता था और ये जानना बहुत अहम होता है कि कुकिंग कैसे होती है (उसके मुताबिक).

कुछ महीनों के बाद मेरे एक रिश्तेदार के भाई के सामने मुझे एक भावी पत्नी के रूप मे पेश किया गया. उसने मेरा रिश्ता ठुकरा दिया, (बस मेरी फोटो देखकर) क्योंकि मैंने चश्मा पहन रखा था और मैं मीडिया में काम करती थी (और मीडिया में चालाक लड़कियां होती हैं). इससे मेरे प्रयोगधर्मी माता-पिता को बुरा लगा और उन्होंने अपनी बेटी को एक ऐसे सेटअप में फिट करने का आइडिया छोड़ ही दिया, जो शादियों के आइडिया से अत्यधिक इस्तेमाल हो चुका है यानी अरेंज मैरिज. लेकिन शादी का आइंडिया नहीं छोड़ा.

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इस हिसाब से देखा जाए तो नई नेटफ्लिक्स सीरीज- इंडियन मैचमेकिंग- एक खूबसूरत फिल्म है. मैचमेकर सीमा तापाड़िया फ्रॉम मुंबई (जैसे वो मिलने वाली हर फैमिली को अपना परिचय देती है), अपनी तरह से इस सिस्टम को रंगती है.

यहां कोई घृणित रंगभेद नहीं है, ना ही जातिभेद का कोई इशारा है, ना ही परिवार का कोई दवाब (प्रीति और उसके बेटे अक्षय को छोड़कर). शायद इसलिए भी क्योंकि या तो ये परिवार अमेरिका में रहते हैं या फिर भारत के ऊंचे तबके से ताल्लुक रखते हैं.

सीमा अधिकांश मामलों में अपने प्रोफेशन के साथ ईमानदारी बरतती है. लेकिन इंडियन इकोसिस्टम ऐसा है कि उसे वो करना पड़ता है, जिसे वो कहती है- कॉम्प्रोमाइज या समझौता. उसके मुताबिक, और वो इसे काफी कहती है, लड़की को कॉम्प्रोमाइज करना पड़ता है. इसलिए उसकी क्लाइंट अपर्णा, जब राजी नहीं होती तो वह कहती है कि वो अपनी एप्रोच में नेगेटिव है और उसे बदलना पड़ेगा (जाहिर है उसकी तरफ देखकर नहीं, बल्कि कैमरे की तरफ देखकर).

जब अपर्णा थोड़ा सा झुकती है, तब सीमा कहती है कि अब वो उसमें एक पॉजीटिव चेंज देख रही है. एक शादी का ख्याल क्या-क्या नहीं करवा सकता है.

इसी सीरीज मे इतनी ही मीन मेख निकालने वाला एक आदमी भी है, लेकिन वह एक पुरुष है. इसलिए हमें उसके लिए ‘नेगेटिव’ जैसे शब्द नहीं सुनने को मिलते. यह सिर्फ इतना है कि वो मीन मीख निकालने वाला है.

इसमें एक मां का लाडला भी है. अक्षय, जो कि भारत में होने वाले ईडिपस कॉम्पलेक्स का सबसे बड़ा उदाहरण है (हालांकि ये बेहत अजीब लगता है). उसकी मां महिला है, जो भारतीय जनजाति की सदस्यता यहां ले सकती है, उसका ब्लडप्रैशर हमेशा हाई रहता है क्योंकि उसका 25 साल का बेटा अभी तक कुंवारा है. उसकी मांग थी कि, ‘लड़की को थोड़ा फ्लेक्सिबल होना पड़ेगा’, और उसको एक ऐसी लड़की मिल जाती है, जो फ्लिक्सेबल है, एडजस्टिंग है और सुंदर भी, और क्या चाहिए?

भारतीयों में दो तरह के जुनून में से एक है बॉलीवुड और दूसरी इसकी लव स्टोरीज. मूवीज में सालों से वही लवस्टोरी पैकेजिंग और रिपैकेजिंग अलग-अलग फॉर्म में प्यार में पड़ने के तरीकों के साथ पेशा किया जाता रहा है, ‘इंडियन मैचमेकिंग’ शादियों के विषय पर होने के बावजूद इसका लव से कोई लेना देना नहीं है.

लोग सीरीज को ‘बिंग-हेट-वॉचिंग’ मोड (एक बार में ही सीरीज के कई एपिसोड्स देखना, ना पसंद आते हुए भी) में देख रहे हैं, और ईमानदारी से कहूं तो इसे देखना अजीब था लेकिन मुझे आनंद आ रहा था. मुझे पता था कि ये खराब था, लेकिन मैं इस अजीब लगने का भी आनंद ले रही थी. 

भारत में कोई अपर्णा नहीं होगी, 34 साल की आत्मविश्वास से लबरेज वकील नहीं होगी, जो अपने आदर्शों के अनुकूल अपने लिए एक पति चाहती है. एक टिपिकल इंडियन घर में महीने में उसे 100 बार उसकी उम्र याद दिलाई जाएगी, बताया जाएगा कि उसकी उम्र निकल रही है, मां बनने में दिक्कत आएगी और अगर वो इन हमलों से बच गई तो उस पर दवाब बनाया जाएगा कि उसकी जैसी पंसद वाले जिस पहले लड़के से वो मिले, उससे ही शादी कर ले. लेकिन अपर्णा को इस सीरीज में अच्छी पसंद मिलती है, अक्षय को भी और बाकी सभी को.

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मैं तजुर्बे के साथ कहती हूं, मेरे एक कजिन ने जो खुद चश्मा पहनता है, एक लड़की को केवल इसीलिए लगभग खारिज कर दिया क्योंकि वो भी चश्मा पहनती थी. एक कजिन ने अपने 11 साल पुराने लंबे रिश्ते को केवल अलग जाति होने की वजह से खत्म कर दिया. एक और कजिन रोज जंग लड़ता है क्योंकि वो तमिल ब्राह्मण है और उसकी बीवी ‘डार्क’ है.

एक दोस्त ने खुद स्वीकारा कि चार साल तक उसने एक लड़की को डेट किया और पांचवे साल पापा की पसंद की लड़की से शादी कर ली.

अक्सर संस्कृति और परंपरा के नाम पर और हमेशा परिवार के नाम को बचाए रखने, लंबा चलाने की आड़ में, कभी-कभी स्त्री रोग के नाम पर, मैचमेकिंग हर किसी की जिंदगी में एक टाइमलाइन थोपती है. सो 23 से 28 साल की वो रेंज है, जब तुम्हें शादी कर लेनी चाहिए, और अगर आप 31 के ऊपर की हैं तो आपको समझौते करने पड़ेंगे. आपकी पसंद पर, नापसंद पर और जो भी इन दोनों के बीच में आए उन पर. इंडियन मैचमेकिंग में सीमा तापाड़िया उन परिवारों को हैंडल करती हैं, जो लड़के से 7 साल बड़ी लड़की पर भी ऐतराज नहीं जताते और लड़की-लड़के को उसकी सेलरी के चलते खारिज कर सकती है.

ये सीरीज सोसायटी को आइना दिखाती है. ये वो है जो भारत में होता है- अपने माता-पिता की तरफ देखो, अपने पड़ोसियों को और अपने रिश्तेदारों को, मैं शर्त लगा सकती हूं कि उनमें से 80 फीसदी ने अरेंज मैरिज की होगी, सितारों और ग्रहों की चाल देखने के बाद, कुंडली मिलाने के बाद. ‘इंडियन मैचमेकिंग’ वास्तव में एक सुंदर फिल्म है.

सोशल मीडिया में अपर्णा को लेकर लोग कुछ ज्यादा ही जजमेंटल हो गए हैं, जो केवल अपनी शर्तों के साथ अपनी जिंदगी जीना चाहती है. वह अपने लिए कभी रिग्रेट महसूस नहीं करती. वह कॉमेडी से नफरत करती है और इसे कहती भी है. वो समझौता नहीं करने जा रही, और वो इसे कहती है. लेकिन हम एक शादी में कॉम्प्रोमाइड और एडजस्टमेंट के कॉन्सेप्ट के साथ इतना जुड़ चुके हैं कि हम तर्क नहीं देख सकते.

‘इंडियन मैचमेकिंग’ भारत के इतने बड़े मैचमेकिंग सिस्टम की बस मुंह दिखाई जैसा है. असल में तो ये बहुत ज्यादा पेचीदा, श्रमसाध्य और मानव इमोशंस के लिए अपमानजनक है, खासतौर पर लड़कियों के लिए. ये गुण और दोष का मोल भाव करने वाला है, और कुंडलियों व दोनों जेंडर्स के लिए पहले से तय नियमों के आधार पर होता है. और इमोशनल और यौन संगतता, एक शादी में सबसे जरूरी फैक्टर, वो हमेशा के लिए पीछे रह गए हैं.

सीमा तापाड़िया एक इंटेलीजेंट बिजनेस हस्ती हैं, वो सामाजिक मान्यता की इस जरूरत को समझती हैं, और इससे जरूरत के लायक पैसा भी कमाती हैं. वो कोई समस्या नहीं है, सीरीज कोई समस्या नहीं है, समस्या हैं हम.

(लेखिका मूवी रिव्यूज लिखती हैं, बॉलीवुड के लिए उनके अंदर बड़ा जुनून है, वो नेशनल, इंटरनेशनल खबरों में रुचि रखती हैं और ये उनके व्यक्तिगत विचार हैं)

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