निष्पक्ष, तार्किक, सख्त और ईमानदार होने के कारण न्यायिक व्यवस्था के मुखिया के तौर पर 13 महीने के संक्षिप्त कार्यकाल के बावजूद जस्टिस गोगोई कई अहम बदलाव ला सकते हैं.
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सुप्रीम कोर्ट के नये चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की देश के प्रति जवाबदेही सर्वोपरि है, इसका अंदाज जनवरी 2018 की ऐतिहासिक प्रेस कांफ्रेंस से ही स्पष्ट है. निष्पक्ष, तार्किक, सख्त और ईमानदार होने के कारण न्यायिक व्यवस्था के मुखिया के तौर पर 13 महीने के संक्षिप्त कार्यकाल के बावजूद जस्टिस गोगोई कई अहम बदलाव ला सकते हैं-
संपत्ति के सार्वजनिक ब्यौरे से पारदर्शिता और ईमानदारी
जस्टिस गोगोई सुप्रीम कोर्ट के उन 11 जजों में शामिल हैं, जिन्होंने अपनी संपत्ति का ब्यौरा कोर्ट के वेबसाइट पर सार्वजनिक किया है. जस्टिस रंजन गोगोई ने शेयर या म्युचुअल फंड में निवेश नहीं किया, इसलिए कंपनियों के मामलों की सुनवाई में उनसे निष्पक्षता की उम्मीद की जा सकती है. जस्टिस गोगोई की तर्ज पर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के बकाया 14 जज भी अपनी संपत्तियों का ब्यौरा सार्वजनिक करके, पारदर्शिता की नई मिसाल यदि पेश कर सकें तो न्यायपालिका के भ्रष्टाचार पर अंकुश लग सकता है.
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लंबित मामलों की सबसे बड़ी चुनौती
न्यायिक मामलों में विलंब की वजह से फौजदारी मामलों के ट्रायल के दौरान अधिकांश लोगों की उम्र ही खत्म हो जाती है और दीवानी मामलों में कई पीढ़ियों बाद फैसला आता है. देश की सभी अदालतों में 2.78 करोड़ मामले लंबित हैं, जिनमें 32.4 लाख मामले हाई कोर्ट में लंबित हैं. जस्टिस गोगोई ने अदालतों में लंबित मामलों को सबसे बड़ी चुनौती बताते हुए, समाधान के लिए एक्शन प्लान पर अमल करने की बात कही है.
गरीबों के लिए न्यायिक सहायता
जस्टिस गोगोई नालसा के कार्यवाहक चेयरमैन हैं, जिसके तहत गरीब और कमजोर वर्गों को न्यायिक मदद मिलती है. नालसा के राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम में 61,593 वकील रजिस्टर्ड हैं. जस्टिस गोगोई के 8 महीने के कार्यकाल में नालसा के 927 कैंप लग चुके हैं. नालसा के तहत 43 लाख मामलों को निपटाये जाने से, अदालतों की मुकदमेबाजी कम हुई है. चीफ जस्टिस बनने पर जस्टिस गोगोई संरक्षक बनकर, नालसा की गतिविधियों का और अधिक विस्तार कर सकते हैं.
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सख्ती के बावजूद न्यायिक सक्रियता के पक्षधर नहीं
सरकार, संसद और सुप्रीम कोर्ट के अधिकार और जिम्मेदारियां संविधान के अनुसार निर्धारित हैं. जस्टिस गोगोई सख्त और अनुशासनप्रिय होने के कारण न्यायिक दायरे के भीतर काम करने में यकीन करते हैं. यदि उन्होंने आदेश पारित कर दिया तो सरकार को उन पर बगैर टाल-मटोल के अमल करना ही पड़ेगा. दूसरी तरफ सरकारी नीतियों में दखलंदाजी के लिए फाइल की गई बेवजह की जनहित याचिकाओं (पीआईएल) की बाढ़ पर जस्टिस गोगोई के कार्यकाल में लगाम लग सकती है.
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सीनियर एडवोकेट्स का तिलस्म टूटने से मेरिट बढ़ेगी
जजों को कोलेजियम द्वारा नियुक्त किया जाता है जबकि सीनियर एडवोकेट्स को सुप्रीम कोर्ट की फुल बेंच द्वारा नियुक्त किया जाता है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनेक मामलों में महंगी फीस, बदजुबानी और बेवजह हस्तक्षेप के लिए कई सीनियर एडवोकेट्स की भर्त्सना की गई. पीआईएल और बड़ी कंपनियों के मामलों में सीनियर एडवोकेट्स द्वारा पैरवी से आम जनता के मामले दरकिनार हो जाते हैं.
सुधारों के तहत सीनियर एडवोकेट्स द्वारा मामलो की मेंशनिंग पहले ही बन्द हो गई है. जस्टिस गोगोई के चीफ जस्टिस बनने पर मामलों की मेरिट पर सुनवाई होने से, योग्य वकीलों को बढ़ावा मिलेगा. वीआईपी सुनवाई पर लगाम लगने के साथ पुराने लंबित मामलों पर जस्टिस गोगोई के कार्यकाल में जल्द फैसलों की आमद आने पर न्यायिक सुधारों की क्रांति का नया दौर शुरू हो सकता है, जिसकी देश को सख्त जरूरत है.
(लेखक विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं)
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)